11 December 1926 को Delhi हमारे देश भारत की राजधानी में एक लडकी का जन्म हुआ, जिसका नाम Shanti रखा गया। Shanti एक खुशहाल बच्ची की तरह बडी होने लगी, लेकिन जब Shanti 4 साल की हुई तब वो अचानक बदल गई। आमतौर पर चार साल के बच्चे सवाल करते हैं,ये क्या है? ये क्यों है?। दुनिया में जो भी उन्हें दिखता है, उन पर सवाल करते हैं, खेलते-कूदते हैं, मिट्टी खाते हैं। लेकिन शांति देवी चार साल की हुईं तब उन्होंने बोलना शुरू ही किया था और छोटी सी उम्र में वो अपने माता-पिता से दुनिया के बारे में पूछने के बजाय, अपने पिछले जन्म की बातें बताती थी। वो अपने माता पिता से अपने ‘असली घर’, ‘असली माता-पिता’ के बारे में बताने लगी।
जहाँ एक तरफ बच्चे स्कूल में Numbers, words आदी सीखते हैं, दोस्त बनाते हैं। वही शांति देवी अलग थीं, वो स्कूल जाकर वहां अपने पति के बारे में बातें करतीं और कहती कि उनका एक बच्चा भी है। उन्होंने स्कूल में कहा कि, उनका पति मथुरा में रहता है और शांतिदेवी मथुरा की ही भाषा में बातें करती थी। शांति देवी की बातें सुनकर और उनकी हरकतें देखकर, किसी को समझ नहीं आ रहा था कि, इस बच्ची को ऐसा क्या हुआ है और वो ऐसी बातें क्यों कर रही है और शांति देवी के दूर के रिश्तेदार बाबू बीचन चंद्र उनसे मिलने पहुंचे। बाबू बीचन दरियागंज, दिल्ली के Ramjas High School के Professor थे। उन्होंने शांति देवी से बात कि और कहा कि अगर वो अपने पिछले जन्म के पति का नाम बता दे तो वो उसे मथुरा ले जाएंगे और शांति देवी ने अपने पिछले जन्म के पति का नाम बताया केदारनाथ चौबे। उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि, उनका असली नाम Lugdi devi था और उन्होंने अक्टूबर, 1925 में एक बेटे को जन्म दिया और उसके 10 दिन बाद ही उनकी मौत हो गई।
छोटी सी 4 साल की बच्ची शांतिदेवी ने न सिर्फ़ अपने पिछले जन्म के पति का नाम बताया, बल्कि ये भी बताया कि वो दिखते कैसे थे।
शांति ने बताया कि, उसके पति चश्मा लगाते थे, गोरे थे और उनके बाएं गाल पर बडा तिल था।
बीचन चंद्र ने केदारनाथ चौबे को चिट्ठी लिखी और पूरी घटना बताई। केदारनाथ ने चिट्ठी के जवाब में लिखा कि शांति देवी जो भी कह रही हैं वो सच है। बीचन चंद्र और शांति देवी दिल्ली में ही रह रहे केदारनाथ के भाई कांजिवन से मिले। शांतिदेवी ने कांजिवन को पहचान लिया और कहा कि, वो केदारनाथ के चचेरे भाई हैं।
केदारनाथ अपने बेटे और तीसरी पत्नी के साथ शांति देवी से मिलने पहुंचे। लेकिन क्योंकी किसी के लिए भी Shanti ती बीत पर विश्वास करना आसान नही था, इसलिए केदारनाथ और उनका बेटा शांति से अलग-अलग मिले। केदारनाथ ने शांति देवी को बताया कि वो केदारनाथ के बड़े भाई हैं। लेकिन शांति देवी ने उन्हें पहचान लिया। शांति देवी ने केदारनाथ के बेटे नवनीत लाल को भी पहचान लिया था।
केदारनाथ ने अकेले में शांति देवी से बात कि, तब बाद में उन्होंने दावा किया कि वो Lugdi devi ही हैं। केदारनाथ का ये कहना था कि शांति ने उसे कुछ ऐसी बातें बताईं, जो Lugdi devi के अलावा कोई नहीं जानता था। केदारनाथ और उनका बेटा कुछ दिन दिल्ली रुककर वापस मथुरा लौट गए। शांति देवी दुखी हो गईं और कुछ दिन बाद अपने माता-पिता से मथुरा ले चलने की ज़िद की। शांति देवी ने दावा किया कि, वो अपने पुराने घर का पता उनको बता सकती है। उन्होंने ये भी बताया कि, उनका एक रुपये-पैसों से भरा डब्बा भी उस घर पर गड़ा हुआ है।
शांति देवी का केस चर्चा का विषय बना हुआ था। देश के कई लोग इस केस के बारे में अख़बार में पढ़ रहे थे, शांति देवी और लुग्दी देवी पर बातें हो रही थीं और ये अजीबो-ग़रीब कहानी महात्मा गांधी के कानों तक भी पहुंची। उन्होंने इस केस की जांच के आदेश दिए। 15 नवंबर, 1935 में शांति देवी, कई researchers के साथ मथुरा के लिए निकली। उन लोगों ने शांति देवी को मथुरा का एक अजनबी दिखलाया और शांति देवी ने उस शख़्स के पैर छुकर सबको हैरान कर दिया। क्योंकी वो शख़्स उनके पति का बड़ा भाई था। घर पहुंचने के बाद शांति देवी ने भीड़ में अपने ससुर को पहचान लिया और ये भी बताया कि, घर पर कहां पैसा छिपा है। वहां लोगों को एक गमला मिला लेकिन पैसे नहीं मिले। शांति देवी अड़ गई कि पैसे वहीं थे, बाद में केदारनाथ ने बताया कि उन्होंने पैसे निकाल लिए थे।
पूरी investigation के बाद रिपोर्ट में कहा कि, शांति देवी ही लुग्दी देवी/लुग्दी बाई है। कुछ लोगों के लिए ये एक धार्मिक चमत्कार था, लेकिन कोई भी ये साबित नहीं कर पाया कि, आख़िर छोटी सी शांति देवी को लुग्दी देवी की ज़िन्दगी की इतनी बातें कैसे याद थी।
एक 4 साल की बच्ची जिसे उसकी पिछला जन्म याद है और कितनी कठिनाइयो का सामना करके उसने अपनी ये बात पूरे देश के सामने prove की, इन Shanti devi को हम सबका सलाम है।
और फिल्म karan Arjun जिसमें karan Arjun का पुनर्जन्म दिखाया गया था, हो सकता है कि इस बार बेटो का नही बल्कि माँ का पुनर्जन्म हो, और उस माँ की कहानी Shanti devi की कहानी से inspired हो।
Happy reading!!