Varanasi, एक शहर जिसे Hinduism, Ganga नदी के लिए जाना जाता है और एक holy place माना जाता है। Varanasi में रहने वाले Dr. Dharam Pratap का एक मुगलों की पुरानी और बहुत rare paintings का collection हुआ करता था। उनके मुग़ल लघुचित्रों (miniature) का collection पुराने painting tradition के तीसरे Kangra Valley phase से related है। Kangra style राजस्थानी और गुजराती कामुकता (sensuousness) के फिर से उभरने का प्रतीक है, जो कि जहांगीर के मुग़ल दरबार में Miniatures (लघुचित्रो) के दिनों में अपने फारसी influence की वजह से कम popular हो गई थी। और Dr. Dharam Pratap, उन old miniatures, Paintings के जाने माने collector थे।
सन 1971 में उनके collection से कुछ rare old painting और miniatures की चोरी हो गई। Antiques और indian rare traditional jewels की चोरी लोगों के लिए धंधा बन गई थी और जब किसी भारी और दिखने में चमकती हुई चीज कीबात आती है, तब तो हर कोई उनकी चोरी को मान लेता है। लेकिन pratap की old paintings को वो तवज्जु नही मिली जो शायद किसी jewellery की चोरी को मिलती।
जब rare paintings की चोरी की रिपोर्ट पहली बार वाराणसी पुलिस के पास दर्ज की गई थी, तो उनमें से कई ने सोचा था कि छोटी, पुरानी पेंटिंग्स तो worthless होंगी। तो उन्हे कोई चुरा कर भी क्या ही हासिल कर लेगा। पुलिस ने मामला seriously नही लिया और चोरी का सुराग ना मिलने पर वाराणसी पुलिस ने एक साल के efforts के बाद मामले को बंद कर दिया और तब डॉ. प्रताप ने अफवाहें सुनीं कि जांच कर रहे पुलिसकर्मियों को तो यकीन भी नहीं हो रहा था कि चोरी हुई है। क्योंकी उन्हे उन special, old और rare paintings की value ही पता नही है और वो नही जानते थे कि पूरी दुनिया में मोगुल Miniatures के best private collections में से एक Pratap Singh का collection माना जाना जाता है। इसलिए डॉ प्रताप ने फिर से investigation शुरू कराने के लिए एक Campaign शुरू किया, जिसकी पुकार finally CBI तक पहुंच पाई।
सन 1977 में CBI ने investigation, डॉ प्रताप के घरेलू नौकरों से पूछताछ के साथ शुरू हुई। एक नए सिरे से जांच की गई तो पता चला की घर के नौकरों ने ही ये बात leak की और चोरों की मदद भी की थी। सीबीआई के मुताबिक, घर के कुछ नौकरों को local criminals ने काम पर लगाया था, जिनका connection वाराणसी, दिल्ली और कलकत्ता के डीलरों से था और तब उन्होंने मिलकर एक well planned चोरी की। CBI के पुछताछ के बाद पता चला कि जिन paintings को पुलिस meaningless समझ रहे थे, वो बहुत ही किमती और special painting थी और यह बात पुलिस ने अगर पहले ही गौर कि होती तो ये मामला सालों पहले ही सुलझ गया होता और pratap के साथ नाइंसाफी नही होती।
Antiques, paintings, मूर्तियाँ इनकी illegal smuggling को लोगों ने धंधा बना लिया और इतनी अच्छी strategy और research होती है कि इस तरह की cases, कई filmmakers को inspire कर देती है और कभी इसका उल्टा हो जाता है कि फिल्ममेकर्स की imagination से चोर inspire हो जाते है।
Saaho फिल्म की शुरूआत भी एक चोर को पकडने से हुई थी। हालांकि saaho ने अपनी identity reveal ना होने का फायदा उठाया और खुद ही पुलिस बनकर, चोर को ढुंढने लगा।
तो हो सकता है Saaho 2 में filmmaker किसी antiques theft के real case और story से inspire होकर फिल्म की शुरूआत कर दे, जिसमें पुलिस की लापवाही का नतीजा भी दिखाया जाए। क्योंकी 1971 में वाराणसी में डॉ. धरम प्रताप के collection से चोरी हुए rare मुगल miniatures CBI ने बड़ी संख्या में ढुंढ निकाले। सीबीआई को वाराणसी और दिल्ली में चोरी हुई painting मिली लेकिन उन्हें कोलकाता के डीलर के पास कुछ नहीं मिला और ये अगर possible हो पाया था, तो सिर्फ खुद Collector Dharam Pratap की वजह से हुआ था। क्योंकी police ने तो पहले से ही अपने हाथ खडे कर दिए थे। ना Pratap campaign के सहारे आवाज उठाते और ना CBI को इतनी बडी चोरी की खबर लगती।
चोरी का आरोप सात लोगों पर लगाया गया, जिसमें वाराणसी के एक वकील का 30 साल का बेटा हैदर भी शामिल था, जो डेढ़ साल तक सीबीआई से बचता रहा।
तो हो सकता है कि Saaho 2 में इस बार चोरी हो और वो Antique miniatures की हो। पर असली चोर Saaho होगा या कोई और ये देखने वाली बात होगी।