मुंबई का एक don हुआ करता था जिसका नाम अब्दुल करीम खान शेर खान उर्फ करीम लाला था, मुंबई अंडरवर्ल्ड का वो नाम, जिससे हर कोई वाकिफ था. 1960 के दशक में मुंबई में उसका नाम माला की तरह जपा जाता.
अफगानिस्तान में कुनार प्रांत के रहने वाले, करीम खान का जन्म 1911 में हुआ. ये साफ नहीं है कि वो किस साल मुंबई आया. वो 1930 दशक के आखिर और 1940 दशक के शुरू में पेशावर से मुंबई पहुंचा. हुसैन जैदी की किताब, ‘डोंगरी टू दुबई: सिक्स डिकेड्स ऑफ मुंबई’ के मुताबिक, 7 फीट लंबे पाश्तुन करीम खान ने अपने करियर की शुरुआत डॉक में काम करके की. दक्षिण मुंबई में जुए का एक अड्डा खोलने के बाद करीम खान मुंबई की इस अंधेरी दुनिया का हिस्सा बना. धंधे की मांग ने उसे सूदखोर बना दिया. जुआ खेलने आने वालों को वो ब्याज पर पैसे देने लगा. और इस तरह करीम खान का नाम बदलकर करीम लाला हो गया.
1950 और 60 के दशक में, लाला ने जबरन वसूली, शराब की तस्करी, किराएदारों को बेदखल करने, सोने की तस्करी और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों के बीच धीरे-धीरे अपना कारोबार फैलाया. करीम लाला पैसा लेकर अलग-अलग पक्षों के बीच विवादों को सुलझाने का भी काम करने लगा. दक्षिण बंबई में पठानों की बड़ी संख्या और उसके नेता के रूप में लाला के साथ, ‘पठान गिरोह’ काफी मजबूत हो गया.
1970 के दशक के आसपास, करीम लाला हाजी मस्तान और वरदराजन मुदलियार के साथ आ गया.
तमिलनाडु से आने वाला वरदराजन ने हाजी मस्तान की मदद से अवैध शराब बेची, कई जुए के अड्डे खोले और डॉक कार्गो की चोरी भी की. धारावी और सायन-कोलीवाड़ा जैसे क्षेत्रों में वो बड़ा नाम बन गया.
वहीं, करीम लाला, पिधोनी, नागपाड़ा, कामठीपुरा और नागदा जैसे दक्षिण बंबई के इलाकों में अपना धंधा करता . लाला ने प्रॉफिट के बदले तस्करी के सामान की सुरक्षा के लिए प्रस्ताव पर हाजी मस्तान के साथ काम करने का फैसला किया. Kamathipura से आपको गंगूबाई याद आई ही होगी, gangubai की मदद Karim लाला करता है तो वो Karim लाला यहीं था.
जैसा कि हुसैन जैदी ने अपनी किताब ‘डोंगरी टू दुबई: सिक्स डिकेड्स ऑफ मुंबई माफिया’ में लिखा है- तीनों ने एक तरह से 1970 और 1980 के बीच, मुंबई पर राज किया.
अपने अवैध धंधों के अलावा, करीम लाला के तीन वैध बिजनेस भी मुंबई में चलते थे. उसके पास दो होटल-अल करीम होटल और न्यू इंडिया होटल थे. इतना हीं नहीं, उसके पास न्यू इंडिया टूर्स एंड ट्रैवल्स नाम की एक ट्रैवल और पासपोर्ट एजेंसी भी थी.
1960 में खुदाई खिदमतगर और पख्तूनिस्तान जिगर-ए-हिंद संगठनों को शुरू करने के बाद उसका राजनीतिक लोगों से बातचीत बढ़ने लगी. इन संगठनों की शुरुआत उसने पठानों को काम दिलवाने के लिए की.
अब लाला का सूरज दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन जैसे गैंगस्टर्स के उदय के साथ डूबना शुरू हुआ, लाला की शख्सियत फीकी पड़ने लगी. 20 फरवरी 2002 को दिल का दौरा पड़ने से करीम लाला की मौत हो गई.
लेकिन Karim लाला का शराब का काम चलता रहा क्योंकि वो gangubai के हाथ था. बाकी कामों को Hazi मस्तान और उनकी gang ने आगे बढ़ाया. उस समय के मुंबई के don की बात करने जाये तो एक के बाद एक कड़ी जुड़ने ही लगती है क्योंकि मुंबई पैसे पर टिका है और पैसा सिर्फ legal काम से नहीं आता , इसलिए अगर मुंबई सपनों का शहर है तो इसकी एक साइड मुंबई illegal काम की एक मजबूत कड़ी है, आप पूरे दुनिया जहां में कोई भी illegal काम करो , उसकी कड़ी किसी ना किसी तरह मुंबई से जुड़ ही जायेगी. क्योंकि Karim लाला सोने की तस्करी भी करता था लेकिन उस पर उसकी उतनी अच्छी कमांड नहीं थी ,.जितनी की शराब में थी. इसलिए सोने की तस्करी के लिए एक अलग don निकला जो Roudi thangam था, जिस पर rocking स्टार की कहानी को कहीं हद तक रखा गया है. तो आपको क्या लगता है क्या मुम्बई पर कब्जा करना इतना आसान है जो एक साथ इतने सारे don ने मुंबई को अपनी रानी बना रखा था? आपके विचार को comments section में जरूर बताये. हम फिर मिलेंगे एक नई post के साथ, तब तक खुश रहें और सेफ रहें. Bye.
Manisha Jain