किस soldier का nickname था ‘ Bull’?
ये कहानी है कर्नल नरेंद्र कुमार की, जिसने भारत के लिए Siachen Glacier को कैसे secure किया।
Army में, वे उन्हें ‘बुल’ कुमार के नाम से जानते थे, जो की mostly उनकी thick और muscular गर्दन की ताकत की वदह से उनके साथी ने उन्हे दिया था। कर्नल नरेंद्र कुमार ने National defence academy में, फिर देहरादून में, पहले मुक्केबाजी मैच के दौरान यह नाम मिला। उनके opponent एक senior cadet, S.F Rodriguez, जो आगे चलकर army cheif बने। कर्नल कुमार fight तो हार गए, लेकिन तब से उन्हे ‘बुल’ नाम से जाना जाने लगा।
और एक bull की तरह, उन्हे challenges इतने पसंद है कि दूसरों को दिखने से पहले ही, वो दूर से ही उसे सूँघ लेते है, और single mindedly ही बिना किसी consequenses के बीरे सोचे, वो निकल पडते थे। उनके इन्हीं गुणों की वजह से आज Siachen Glaciar, भारत का part बन पाया है।
कर्नल कुमार की वीर गाथा 1978 की है, जब उन्होंने ग्लेशियर के लिए एक बड़ा अभियान चलाया। ये भारत के सियाचिन ग्लेशियर पर पाकिस्तान के मंसूबों को fail करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू करने के 6 साल पहले की बात है। इसमें कोई doubt नहीं है कि वो पहाड़ों को अच्छी तरह से जानते थे, क्योंकि वो कुमाऊँ रेजिमेंट में थे, जिसकी वजह से कुमाऊँ की ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों में उन्होने अपने miltary career का बेहतर हिस्सा बिताया था।
लेकिन ग्लेशियर सिर्फ एक सुंदर पहाड़ नहीं है, वो आपको सुन्न और मार भी सकता हैं।
उस वक्त गुलमर्ग में सेना के हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल (HAWS) के कमांडेंट के रूप में तैनात कर्नल कुमार को पता था कि वो uncharted territory में जा रहे हैं।
लेकिन risk होने के बावजूद भी kumar वहां जाना चाहता था क्योकी उनके पास कुछ रिपोर्टें थीं जिनमें अमेरिकी ने अपने adventure maps में सियाचिन को पाकिस्तान के हिस्से के रूप में दिखाया हुआ था।
कुमार और उनकी टीम ने जो plan बनाया था, कि वो ग्लेशियर पहाड को ढुंढेंगे, और उसके सबसे lowest point, जहां बर्फ पानी में पिघल जाती है, तक पहुंचना था, और फिर sources तक पहुंचने के लिए 77 किमी की खतरनाक दरारों, पहाड़ों, दर्रों और बर्फ से ढकी चोटियों पर चढ़ना था।
कर्नल को पता था कि risk बहुत ज्यादा है, क्योकी ये मिशन भारत के strategic outreach के भविष्य का फैसला कर सकता है और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और 1962 के बाद चीन द्वारा कब्जा किए गए indian area के बीच में दिक्कत खडी कर सकता है। सबसे अच्छा तो यह है कि उनके पास कोई नक्शा नहीं है। और वो अंधेरे में चल रहे थे। उनके पास उन चोटियों का एक rough idea था, जिन्हें दशकों पहले अंग्रेजों ने नाम दिया था।”
मोटी रस्सियों से एक-दूसरे से बंधे हुए, उस कठोर इलाके में हफ्तों तक ट्रेकिंग करते हुए, कर्नल कुमार ‘सिया कांगरी’ चोटी पर चढ़ने वाले पहले भारतीय बने, जो सियाचिन ग्लेशियर का शानदार scene दिखाता है।
लेकिन टीम को वहां surprise ये मिला की, एक japenese mountain expedition भी वही थी, जिसकी Pakistan military ने मदद की थी। Army Headquarter को situation report भेजे जाने
के बाद टीम, तेजी से बर्फ के बहाव से बचते हुए area का चार्ट बनाने के लिए चोटी से चोटी तक गई।
बुल कुमार ने 1984 तक और भी अभियान को lead किया, और frostbite के कारण उन्होने पैर की चार उंगलियां खो दीं। लेकिन उनका बलिदान waste नहीं जाना था।
खुफिया जानकारी ने Army headquarter को convice किया कि पाकिस्तानी सियाचिन और पास के soltiro ridge की ऊंचाइयों पर कब्जा करने की योजना बना रहे थे।
जिससे Army headquarter ने 1984 की गर्मियों में एक बड़े ऑपरेशन का plan बनाने के लिए तुरंत तैयार हो गए। कुमाऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन को इकट्ठा किया गया और ऑपरेशन मेघदूत के लिए चुना गया, जिसमें कुमार के नक्शों, फिल्मों और are की पूरी knowledge थी।
13 अप्रैल, 1984 को आखिरकार ऑपरेशन मेघदूत शुरू हो गया। इतिहास में पहली बार भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर अपना दावा ठोका था। तगड़े col. narender तब, Glaciar के दो major passes – ‘सिया ला और ग्योंग ला’ – को secure करने के लिए ग्लेशियर तक गए थे, जहाँ पर अभी भी पाकिस्तानी अपने सैनिकों को फैला रहे थे।
Col. Narender ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर, और सिया कांगरी से आने वाले रास्ते को देखते हुए साल्टोरो रिज को ऊपर उठाया, ताकि भारत को ग्लेशियर की कमान सौंपी जा सके। अपनी 7.62 मिमी राइफलों के चारों ओर जमे हुए हाथों के साथ, भारतीय सैनिकों ने दुनिया के सबसे ऊंचे battlefield में military के पैर जमाने के लिए ये लड़ाई की।
Very Good Movie