RRRR

मंगलोर की संन्धि से भी अंग्रेजों और मैसूर युद्ध समाप्त नहीं हो पाया दोनों पक्ष इस सन्धि को चिरस्थाई नहीं मानते थे। 1786 ई. में लार्ड कार्नवालिस भारत का गवर्नर जनरल बना । वह भारतीय राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के मामले में सामर्थ नहीं था लेकिन उस समय की परिस्थिति को देखते हुए उसे हस्तक्षेप करना पड़ा क्योंकि उस समय टीपू सुल्तान उनका प्रमुख शत्रु था इसलिए अंग्रेजों ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए निजाम के साथ सन्धि कर ली इस पर टीपू ने भी फ्रांसीसियो से मित्रता के लिए हाथ बढ़ाया ताकि दक्षिण में अपना वर्चस्व स्थापित करें। कार्नवालिस जानता था कि टिपु के साथ उसका युद्ध अनिवार्य है इसलिए वह महान शक्तियों के साथ मित्रता स्थापित करना चाहता था। उसने निजाम और मराठों के साथ सन्धि कर एक संयुक्त मोर्चा कायम किया और इसके बाद उसने टीपू के खिलाफ युद्ध कि घोषणा कर दी इस तरह तृतीय मैसुर युद्ध प्रारम्भ हुआ यह युद्ध दो वर्षों तक चलता रहा प्रारमँभ में अंग्रेज असफल रहे लेकिन अन्त में उनकी विजय हुई। मार्च 1792 ई. में श्री रंगापटय कि सन्धि के साथ युद्ध समाप्त हुआ टीपू ने अपने राज्य का आधा हिस्सा और 30 लाख पौंड संयुक्त मोर्चे को दण्ड स्वरूप दिया इसका सबसे बड़ा हिस्सा कृष्ण ता पन्द नदी के बीच का प्रदेश निजाम को मिला।

 

कुछ हिस्सा मराठों को भी प्राप्त हुआ जिससे उसकी राज्य की सीमा तंगभद्रा तक बढ़ गई, शेष हिस्सों पर अंग्रेजों का अधिकार रहा टीपू सुल्तान ने जायतन के रूप में अपने दो पुगों को भी कार्नवालिस को सुपुर्द किया। इस पराजय से टीपु सुल्तान को भारी क्षति उठानी पड़ी उनका राज्य कम्पनी राज्य से घिर गया तथा समुद्र से उनका सम्पर्क टुट गया।

 

टीपु सुल्तान रंगापट्टी की अपमानजनक सन्धि से काफी दुखी थे और अपनी बदनामी के कारण वह अंग्रेजो को पराजित कर दूर करना चाहते थे, प्रकृति ने उन्हें ऐसा मौका भी दिया लेकिन भाग्य ने टीपु का साथ नहीं दिया। जिस समय इंग्लैण्ड और फ्रांस में युद्ध चल रहा था ,इस अंतरराष्ट्रीय विकट परिस्थिति से लाभ उठाने के लिए टीपू ने विभिन्न देशों में अपना राजदुत भेजे। फ्रांसीसियों को उसने अपने राज्य में विभिन्न तरह की सुविधाएं प्रदान कर अपने सैनिक संगठन में उन्होने फ्रांसीसी अफसर नियुक्त किये और कुछ फ्रांसीसियों ने अप्रैल 1798 ई. में अंग्रेजों के विरुद्ध टीपू की सहायता की। फलत: अंग्रेज और टीपु के बीच संघर्ष आवश्यक हो गया। इसी समय लार्ड वेलेजली बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया था। उन्होनें टीपू कि शक्ति को कुचलने का निश्चय किया टीपु के विरुद्ध उसने निजाम और मराठों के साथ गठबंधन करने कि चेष्टा की निजाम को मिलाने में वह सफल हुए लेकिन मराठों ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया 1798 में निजाम के साथ वेलेजली ने सहायक सन्धि की और यह घोषणा कर दी जीते हुए प्रदेशों में कुछ हिस्सा मराठों को भी दिया जाएगा। पुर्ण तैयारी के साथ वेलेजली ने मैसूर पर आक्रमण कर दिया इस तरह मैसुर का चौथा युद्ध प्रारंभ हुआ। और टीपू सुल्तान वीरता के साथ आखिर तक युद्ध करते करते मृत्यु को प्राप्त हुए। मैसूर पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया इस् प्रकार 33 वर्ष पुर्व मैसुर में जिस मुस्लिम शक्ति का उदय हुआ था सिर्फ उसका अन्त ही नहीं हुआ बल्कि अंग्रेज मैसुर युद्ध का नाटक ही समाप्त हो गया। मैसुर जो 33 वर्षों से लगातार अंग्रेजों कि प्रगति का शत्रु बना था अब वह अंग्रेजों के अधिकार में आ गया था। अंग्रेज और निजाम ने मिल कर मैसुर का बंटवारा कर लिया। मराठों को भी उत्तर पश्चिम में कुछ प्रदेश दिये गये लेकिन उन्होंने लेने से इनकार कर दिया,शेष मैसुर पुराने हिन्दु राजवंश के एक नाबालिग लड़के को सन्धि के साथ दिया जिसके अनुसार मैसुर की सुरक्षा का भार अंग्रेजों पर आ गया वहाँ ब्रिटिश सेना तैनात किया गया सेना का खर्च मैसुर के राजा ने देना स्वीकार किया। इस नीति से अंग्रेजों को काफी लाभ पहुँचा मैसुर राज्य बिल्कुल छोटा पड़ गया और दुश्मन का अन्त हो गया ब्रिटिश कम्पनी की शक्ति में काफी वृद्धि हुई । फलत: मैसुर चारों ओर से ब्रिटिश राज्य से घिर गया इसका फायदा उन्होनें भविष्य में उठाया जिससे ब्रिटिश शक्ति के विकास में काफी सहायता मिली और एक दिन उसने सम्पूर्ण हिन्दुस्तान पर अपना अधिपत्य कायम कर लिया ।

 

1791 में रघुनाथ राव पटवर्धन के कुछ मराठा सवारों ने शृंगेरी शंकराचार्य के मंदिर और मठ पर छापा मारा। उन्होंने मठ की सभी मूल्यवान सम्पत्ति लूट ली। इस हमले में कई लोग मारे गए और कई घायल हो गए।शंकराचार्य ने मदद के लिए टीपू सुल्तान को अर्जी दी। शंकराचार्य को लिखी एक चिट्ठी में टीपू सुल्तान ने आक्रोश और दु:ख व्यक्त किया। इसके बाद टीपू ने बेदनुर के आसफ़ को आदेश दिया कि शंकराचार्य को 200 राहत धन  मतलब नक़द धन और अन्य उपहार दिये जायें। शृंगेरी मन्दिर में टीपू सुल्तान की दिलचस्पी काफ़ी सालों तक जारी रही, और 1790 के दशक में भी वे शंकराचार्य को खत लिखते रहे। टीपू के यह पत्र तीसरे मैसूर युद्ध के बाद लिखे गए थे, जब टीपू को बंधकों के रूप में अपने दो बेटों देने सहित कई झटकों का सामना करना पड़ा था। यह सम्भव है कि टीपू ने ये खत अपनी हिन्दू प्रजा का समर्थन हासिल करने के लिए लिखे थे।



Comment Your Thoughts.....

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Post

Soldier 2

Gulmarg ki taraf se aaye 600-700 ghuspethiye , jisme Pakistani army ke soldiers bhi shaamil the, unhone Major Somnath Sharma ki D company ko teeno

Read More »
Mr. India 2

Mr India 2

अनिल कपूर और श्रीदेवी की फिल्म मिस्टर इंडिया को रिलीज हुए 35 साल हो गए हैं। 25 मई, 1987 को रिलीज इस फिल्म की ने

Read More »

Soldier 2

भारत कभी अपने पहले सैनिक की कहानी नहीं भूल सकता है कि कैसे उन्होंने अपने देश अपने हक के लिए लड़ा था। जब जब बात

Read More »

Bollygrad Studioz

Get the best streaming experience

Contact Us

41-A, Fourth Floor,

Kalu Sarai, Hauz Khas,

New Delhi-16

 

011 4140 7008
bollygard.fti@gmail.com

Monday-Saturday: 10:00-18:00​