Thumbnail title- desh bhakti में डूबा एक नौजवान?
RRRR- Jyoti Arora
15 मई,1907 का वो ऐतिहासिक दिन जब एक तरफ़ .भारत के प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन का उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में जन्म हुआ तो दूसरी और भारत का सूरमा कहे जाने वाला एक ऐसा नौजवान पैदा हुआ जिसकी रगो में खून नहीं बल्कि देश के प्रति आज़ादी की लहर दौड़ा करती थी और उसका नाम “सुखदेव” था और उनके पिताजी का नाम रामलाल और माताजी का नाम श्रीमती लल्ली देवी था। उनके भाई का नाम मथुरादास थापड था और भतीजे का नाम भरत भूषण थापड़ था। सुखदेव और भगतसिंह में प्काफ़ी गहरी दोस्ती थी,और दोनों जीवन के last moments तक एक साथ रहे थे।बचपन से ही सुखदेव ने ब्रिटिश राज के अत्याचारों को समझना शुरू कर दिया था,इसलिए उन्हें अपने देश में आज़ादी की need की बहुत पहले ही समझ आ गई थी, इसी कारण उन्हे आज एक क्रांतिकारी के तौर पर याद किया जाता हैं। Sukhdev “hindustan socialist association के सदस्य थे और वे पंजाब और उत्तर भारत के अन्य शहरों में क्रांतिकारी गतिविधियाँ सम्भालते थे। उनका जीवन देश और देश हित को पूरी तरह समर्पित था, उन्होंने लाहौर ,जो की पाकिस्तान का मशहूर शहर है ,वहाँ national college में युवाओं को भारत का गौरवशाली इतिहास बताकर उनमे देश भक्ति जगाने का काम भी किया था।
Sukhdev ने तब बहुत सी क्रांतिकारी क्रिया-कलापों में participate करना शुरू कर दिया था , क्योंकि उनके लिए घर से पहले अपना देश था और यूएनबी activities में से एक 1929 में केदियों की भूख हड़ताल भी हैं, जिसने ब्रिटिश सरकार की अमानवीय चेहरे को उजागर किया था। हालांकि Sukhdev को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में हमेशा उस घटना के लिए याद किया जाता हैं और किया जाता रहेगा जिसने देश में तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक prospective को ही बदलकर रख दिया था। वह था सुखदेव,राजगुरु और भगत सिंह की फांसी,जो कि उन्होंने सोच समझकर चुना था और सच में सुखदेव की फांसी देश के लाखों युवाओं को देश हित के लिए जान देने हेतु प्रेरित किया।Sukhdev को फांसी लाहोर षड्यंत्र के कारण दी गयी थी .
लाहोर षड्यंत्र का मुख्य कारण simon commission था।1927 में ब्रिटिश सरकार ने एक कमीशन का गठन किया,जिसका काम भारत में आकर यहाँ की political conditions को analyse करना और इस commission को lead ,simon कर रहे थे,इसलिए इसे “simon commission के नाम से जाना जाता हैं। लेकिन इस committee में कोई भी भारतीय नहीं था,इसलिए पूरे भारत में इसका विरोध होने लगा था।उन दिनों देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे दल दो हिस्सों में बंट चुके थे, जिन्हें गरम दल और नरम दल कहा जाता था। गरम दल के नेता lala lajpat roy ,Simon commission के विरोध में एक रैली को सम्बोधित कर रहे थे, तभी jemas Scott ने वहां लाठी चार्ज शुरू कर दिया ,जिसके कारण lalaji को भी कई चोटें आई, लेकिन उनका भाषण बंद नहीं हुआ। lalaji ने कहा “मुझ पर लगने वाली एक-एक लाठी,अंग्रेजो के ताबूत में लगने वाले एक-एक कील के समान होगी” और इसके साथ उस सभा में वन्दे मातरम का जयघोष होने लगा ।lalaji इस रैली में भयंकर चोटिल हो गये थे और उनकी स्थिति गंभीर हो गई थी। नवम्बर 1928 तक देश ने एक महान स्वतन्त्रता सेनानी खो दिया और इसी वजह से “indipeneende ऑफ़ India leag “की भारत में स्थापना हुई।इस पूरी गतिविधि पर सुखपाल और उनके साथी नजर रखे हुए थे,लालाजी की देहांत ने उन लोगो को बहुत नाराज़ कर दिया।british government ने scott के खिलाफ action और lalaji की मौत की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया और यह बात Sukhdev और उनके साथ पार्टी के अन्य सदस्यों को बुरी तरह से चुभ गई, इसीलिए उस Scott से बदला लेने के लिए सुखदेव ने भगत सिंह और राजगुरु के साथ मिलकर एक योजना बनाई.
18 दिसम्बर 1928 को bhagat singh और shivaram rajguru ने Scott की गोली मारकर हत्या करने का plan बनाया था लेकिन ये plan उस तरीके से सफल नहीं हो सका जैसा सोचा गया था और गोली गलतफहमी में J.P sanders को लग गयी और इस घटना में bhagat Singh का सहयोग Sukhdev और chandrashekhar azad ने किया था। कारण इस घटना के बाद british police sukhdev,azad, bhagat Singh और rajguru के पीछे लग गयी।Sanders की हत्या के बाद लाहौर में पुलिस ने हत्या के आरोपियों की खोज शुरू कर दी,ऐसेमें इन क्रांतिकारियों के लिए वहां रुककर अपनी पहचान छुपाए रखना मुश्किल हो रहा था,ऐसे में पुलिस से बचकर भागने के लिए sukhdev ने bhagwati charan bohra की मदद मांगी जिसमे भगवती चरण वोहरा ने अपनी पत्नी (जिनका नाम दुर्गा था और जो क्रान्तिकारियो में दुर्गा भाभी नाम से विखाय्त थी) और अपने बच्चे की जान जोखिम में डालकर उनकी मदद की. इस तरह से भगत सिंह वहां से बच निकले. और कालान्तर में सुखदेव को इस पूरे प्रकरण के कारण ही लाहौर षड्यंत्र में सह-आरोपी बनाया गया।क्रांतिकारियों की गतिविधियों को देखने के लिए और उन पर नियंत्रण करने के लिए British government सरकार ने defence India act के तहत पुलिस के अधिकारों को बढ़ाने योजना बनाई,जिसके कारण क्रांतिकारीयों का जीवन मुश्किल होने लगा था और में इस act का motive क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डालना और यातना देना था। हालांकि इस act को तब उस अधिनियम के अंतर्गत रखा गया था जिसमे आमजन की हितों की रक्षा का ध्यान रखा जाता था। इससे अंग्रेजों ने आमजन में खुदके लिए सहानुभूति और सहयोग हासिल करने की कोशिश की,और जनता के बीच क्रांतिकारी गतिविधयों को लेकर गलत संदेश जाने लगा।
इन सबके कारण क्रांतिकारियों की समस्याएं बढ़ने लगी थी इसलिए इस एक्ट के जवाब में “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” ने केंदीय विधान सभा में बम गिराने की योजना बनाई और सच में औगुस्ते वैल्लेंट द्के through ,French assembly में बम गिराने से भगत सिंह प्रेरित थे,इसलिए उन्होंने ये idea दिया था। इस बम विस्फोट का उद्देश्य किसी को हानि पहुँचाना नहीं था,बल्कि यह एक योजना थी जिससे इस act का ना केवल विरोध किया जा सके,बल्कि व्बड़े level पर पार्टी के उद्देश्यों को प्रचारित किया जा सके, इसलिए bhagat Singh और उनके साथियों ने इसके बाद पुलिस को आत्म-समर्पण करने का फैसला किया,जिससे कि पूरे देश को अंग्रेजों के इरादों का पता चल सके.
पार्टी की पहली मीटिंग में यह निर्णय किया गया कि भगत सिंह को रशीया जाना चाहिए और बटुकेश्वर दत्त और को ये काम करना चाहिए
सुखदेव को जब ये बात पता चली कि बम ब्लास्ट करने के बाद भगत सिंह को रशीया भेजने का सोचा जा रहा हैं तो उन्होंने भगत सिंह को एक और मीटिंग बुलाने को कहा.दूसरी मीटिंग में ये तय किया गया कि बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह विधान सभा में बम फैकेंगे. इस तरह 8 अप्रैल 1929 को दोपहर 12.30 बजे जब नई दिल्ली की विधान सभा में सर जोर्ज चेस्टर पब्लिक सेफ्टी बिल में विशेष अधिकारों की घोषणा करने के लिए खड़े हुए, उसी वक्त भगत सिंह और दत्त ने असेम्बली में बम फैक दिए और “ इन्कलाब जिंदाबाद” के नारे लगाये. इसके बाद “गूंगों और बहरों को सुनने के लिए आवज़ ऊंची होनी चाहिए” के पत्रक भी हवा में उछाले.हालांकि बम से किसी को चोट नहीं आई थी,इसका पुष्टिकरण खुद ब्रिटिश सरकार ने भी किया था. भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने इसके बाद पुलिस को आत्म-समपर्ण कर दिया.
12 जून 1929 को कोर्ट द्वारा, bhagat singh और vatukeshvat dutt दत्त पर जीवन भर कारावास का फैसला दिया गया. उसी समय इन पर लाहौर का भी केस चल रहा था इसलिए इन्हे लाहौर भेजा गया।लाहौर जेल में चलने वाली सुनवाई आगे नहीं हो सकी क्युकी जेल में मिलने वाले ख़राब गुणवत्ता के खाने को और जेलर के अमानवीय व्यवहार के लिए कैदियों ने भूख हड़ताल शुरू कर दी.कैदियों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया और क्रांतिकारी खाने के लिए दिए गए बर्तनों को बजाकर “मेरा रंग दे बसंती चोला” गाना गुनगुनाते थे. इसका नेतृत्व भगत सिंह कर रहे थे,और उनका साथ सुखदेव राजगुरु,जतिंद्र नाथ जैसे कई क्रांतिकारी दे रहे थे.यह भूख हड़ताल 13 जुलाई `1929 को शुरू की गई और 63 दिन तक चली थी जिसमें jatinder nath शहिद हो गए, और जनता में इसके कारण भयंकर आक्रोश फ़ैल गया.इस पूरे घटनाक्रम में सुखदेव भी शामिल थे,जेल में उन्हें और अन्य कैदियों को जबरदस्ती खिलाने की कई कोशिशे की गयी और बहुत प्रताड़ित भी किया गया लेकिन वो कभी अपने कर्तव्य पथ से विचलित नहीं हुए।
लाहौर षड्यंत्र केस के लिए निर्णय 7 अक्टूबर 1930 को सुनाया गया जिसमें भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गयी थीं।लाहौर षड्यंत्र के लिए सुखदेव,भगत सिंह और राजगुरु को 24 मार्च 1931 को फांसी की सजा देनी तय की गयी थी, लेकिन 17 मार्च 1931 को पंजाब के होम सेक्रेट्री ने इसे 23 मार्च 1931 कर दिया. क्योंकि ब्रिटिश सरकार को डर था कि जनता को यदि इनकी फांसी का समय पता चला तो एक और बड़ी क्रांति हो जायेगी, जिससे निबटना अंग्रेजो के लिए मुश्किल होगा.
इस कारण सुखदेव,भगत सिंह और राजगुरु को निर्धारित समय से एक दिन पूर्व ही फांसी दे दी गई और इनके शवों को केरोसिन डालकर सतलुज नदी तट पर जला दिया गया. इस बात की पूरी देश में निंदा हुयी, क्युकी उन तीनों को फंसी से पहले अंतिम बार अपने परिवार से भी नहीं मिलने दिया,ऐसे में देश में क्रांति और देशभक्ति का ज्वार उठाना स्वाभाविक था.इस तरह सुखदेव थापड़ जब मात्र 24 वर्ष के थे तब अपने की आहुति के साथ देश को वो संदेश भी दिया जिसके लिए सदियों तक देश उनका आभारी रहेगा. और इसी कारण 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता हैं.
RRRR- JYOTI ARORA
This is a story of our freedom fighters and this kind of story you can see and assume in RRRR because the connection between both stories are the same.So keep watching and stay tuned .