1971 की लड़ाई किसी world war से कम नहीं थी और भारत ने उसे बहुत ही वीरता से जीता भी। बहुत सैनिक शहीद हुए और अपनी वीरता से इस जीत में जान डाल दी। आज हम आपको एक ऐसे ही सैनिक के बारे में बताएंगे जिसकी बहादुरी ने पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए।
भैरों सिंह राठौड़ का जन्म 1941 में सोलंकिया तला गांव ,शेरगढ़ जिला, जोधपुर, राजस्थान में हुआ था। अपनी जरूरी शिक्षा करने के बाद भैरों सिंह 1963 में BSF( सीमा सुरक्षा बल) में शामिल हो गए।
उनकी पत्नी का नाम प्रेम कंवर था और उनकी शादी 1973 में हुई । इनका एक बेटा और बेटी है और बेटे का नाम सवाई सिंह है। यह हिंदू धर्म से थे और राठौड़ राजपूत थे।
1971 में भैरो सिंह को longewala post पर भेजा गया था, लांस नायक के रूप में । वहां वो 14 वीं बटालियन की तीसरी पलटन की डेल्टा कंपनी का हिस्सा थे । इस war से उनकी बटालियन को मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी, जो आज ब्रिगेडियर है, उनकी पंजाब रेजीमेंट की तीसरी बटालियन को उनकी कंपनी के 120 लोगों की team से बदला गया था। क्योंकि भैरों सिंह बचपन से ही रेगिस्तान में पले बढ़े तो उन्हें उस area का बहुत अच्छा ग्यान था। इसलिए जब भी हमारी सेना round के लिए निकलती थी तो भैरों सिंह हमेशा साथ जाते थे। ये order उनके seniors का था । 1971 में, 4 December की रात को longewala में भैरों सिंह की post पर पाकिस्तानी सेना ने attack किया।
बस फिर क्या था ,उन्होंने अपनी सूझबूझ से लड़ाई की।
Attack होते ही इंडियन आर्मी तुरंत वहां के लोगों को बचाने में लग गई, ऐसे ही भैरो सिंह ने एक मुस्लिम परिवार को बचाया जो border पर रहते थे। लेकिन एक व्यक्ति बहुत परेशान था, क्योंकि उनकी कुरान घर में रह गई था और वह जलने लगा था। भैरव सिंह बिल्कुल निडर होकर उस जलती हुई आग में कूद गए और कुरान को बचाया। ये कोई action स्टंट्स से कम नहीं था । जब भैरों सिंह ने कुरान लौटाई और उन्हें उस मुस्लिम ने धन्यवाद कहा , तो उस पर उन्होंने कहा कि “यह तो हमारा धर्म था”। वीर होने के साथ-साथ उन्होंने एक अच्छे इंसान होने की भी मिसाल दी। हमेशा धर्म को लेकर जो लड़ाई होती है उसे भैरों सिंह ने एक झटके में खत्म कर दिया। सब लोगों को बचाने के बाद वे वापस लड़ाई लड़ने के लिए चले गए ।
पर वो War बहुत भयानक चला। BSF के रिकॉर्ड के मुताबिक,23 पंजाब के light machine gunner के मारे जाने के बाद भैरों सिंह ने LMG पर कब्जा कर लिया और लगातार 6-7 घंटे तक गोलीबारी की। उन्होंने दुश्मन की सेना को बहुत भारी नुकसान पहुंचाया, बस एक हल्की machine gun से पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए और लड़ते-लड़ते ऐसे ही सवेरा हो गया।
उनके साथ सेना की 23 पंजाब रेजिमेंट के 120 जवानों की कंपनी ने बहुत अच्छी लड़ाई लड़ी। पाकिस्तानी सैनिकों की brigade और tank regiment को उन्होंने धूल चटा दी। कोई emergency support नहीं था, यहां तक कि सैनिकों को पीछे हटने के लिए भी कहा गया पर वो नहीं माने। दोस्तों क्या आप सोच सकते हैं कि 2000 लोग कैसे हैं 125-26 जवानों से लड़ेंगे ? उस वक्त पीछे हटने का order मिलने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी ,यह बहुत बड़ी बात है। इस बात के लिए पूरी indian army को सलाम है।
ये बहुत surprising बात है, पर सच में हमारे 125-26 जवानों ने 2000 पाकिस्तान सैनिकों और टैंक रेजिमेंट की पूरी कंपनी को लोंगेवाला पोस्ट पर रोक दिया था और उन्हें दिन में तारे दिखा दिए थे। सुबह होते ही indian air force ने कमाल दिखाया और पाकिस्तानी tank और regiment पर भारी बमबारी की। दुश्मन सेना एयर attack से परेशान होकर पीछे हट गई । आखिरकार रात भर लड़ाई करने के बाद indian air force attack कर पाने में सफल हुई क्योंकि रात के अंधेरे में air force के लिए ये काम मुश्किल था, वो attack नहीं कर पा रही थी। पर सवेरा होते ही और सैनिक भी लोंगेवाला पोस्ट पर आकर लड़ने लगे और आखिरकार हमने जीत पा ही ली, पर इसमें भैरों सिंह का बहुत important role था। वो इसलिए, क्योंकि उन्होंने पाकिस्तानी सेना को राजस्थान के border में पैर तक नहीं रखने दिया और बता दिया कि indian army कभी नहीं हारती। यह हमारी आर्मी का हौसला ही था, जो इतने मुश्किल हालातों में भी इतनी वीरता के साथ लड़ पाई और दुश्मन सेना को border से ही वापिस भगा दिया।
भैरों सिंह youth को भी हमेशा indian army में हिस्सा लेने के लिए advise देते थे। उनके मुताबिक देश के लिए जान देना बहुत शान की बात थी। लड़ाई खत्म होने के बाद उनकी पोस्ट बढ़ती रही और वो 1987 में Naik के पोस्ट से retire हो गए। 80 साल के होने के बावजूद वो daily yoga करते थे, दूसरों को भी fit रहने की सलाह देते थे।
14 दिसंबर, 2022 को लकवा का दौरा पड़ने के कारण उन्हें hospital में भर्ती कराया गया और 19 दिसंबर को उन्होंने आखिरी सांस ली। फिर 20 दिसंबर को उनका अंतिम संस्कार किया गया पूरे सम्मान के साथ । उनकी dead body को BSF office में लाया गया था जहां सभी soldiers ने श्रद्धांजलि दी। दोस्तों, जिंदगी हो तो ऐसी हो कि, हम अपने देश के लिए कुछ कर पाए । पैसे तो सब कमा लेते हैं, पर इज्जत कमाना बहुत मुश्किल है और भैरों सिंह ने वो इज़्ज़त कमाई है।
उनकी वीरता के लिए उन्हें 1972 में sena medal भी मिला था। कभी आपने सोचा कि border फिल्म में भैरो सिंह का किरदार असल में किसके जीवन पर बनाया गया? जी हां, ‘बॉर्डर’ फ़िल्म में सुनील शेट्टी का किरदार भैरों सिंह राठौड़ पर ही based था। इस बात से उनके परिवार वालों को दिक्कत भी थी क्योंकि उन्हें लगा कि शायद उनके पिता के किरदार के साथ justice नहीं किया गया। पर कोई बात नहीं, भैरों सिंह हमारे दिल और दिमाग में हमेशा जिंदा रहेंगे और उनकी वीरता हमारे आने वाली generation लिए एक मिसाल है।
यह तो थी एक real जवान की कहानी, पर 2023 में शाहरुख खान की फिल्म jawan आ रही है। इसकी कहानी भी शायद ऐसी ही हो सकती है। हम सबको इसका बेसब्री से इंतजार है और क्या पता शायद ये फिल्म सच में blockbuster हो जाए।
Kshamashree dubey