एक ऐसी कहानी जिस पर सुनकर भी विश्वास करने का मन ना करें, ऐसी कहानी है Natwarlal की। नटवरलाल का जन्म बिहार के सिवान गांव में हुआ था। नटवरलाल का असली नाम था मिथिलेश बाबू। नटवरलाल के पिता रेलवे में काम किया करते थे और माता घर संभालती थी।
12 अलग-अलग राज्यों में नटवरलाल पर जितने भी criminal cases चल रहे हैं उन सभी में नटवरलाल के 52 अलग-अलग नामों का विश्लेषण है। इन सभी अलग-अलग नामों से उसने ठगी की। नटवरलाल ने पहली बार ठगी अपने ही पड़ोसी के साथ की थी जब उसने अपने ही पड़ोसी के draft में भेजे हुए कागजों से उसके signature copy करके 1 महीने के अंदर उसके account से हजार रुपे तक निकाल दिए थे। जब इस बात का अंदाजा उसके पड़ोसी को लगा तो बैंक वालों ने उन्हें सीधा बता दिया कि मिथिलेश ही उनके पैसे निकाल रहा है इसके बाद मिथिलेश के पिता ने उन्हें बहुत मारा जिस पर नाराज होकर मिथिलेश कोलकाता चला आया। कोलकाता बनने के बाद उसने अपनी LLB की पढ़ाई जारी रखी और एक सेठ के बेटे को पढ़ाने लगा। एक दफा जब इसको पैसों की जरूरत थी और इसने सेठ से पैसे मांगे तो सेठ ने मना कर दिया। इस पर नटवरलाल ने उसे साढ़े चार लाख का चूना लगाया और ठगी करके भाग गया।
इसके बाद नटवरलाल ने 3 को ही अपनी जिंदगी बना लिया ऐसा कोई भी industrialist नहीं था जो नटवरलाल से न ठगा गया हो। Tata , Birla, Dhirubhai Ambani सभी इसके जाल में कई बार कर चुके थे अभी NGO के नाम पर तो कभी किसी बड़े नेता के personal secretary के नाम पर कई बड़ी-बड़ी दुकानों को नकली demand draft दिखाकर लूटा गया। यहां तक कि नटवरलाल ने पूरे 3 बार ताजमहल के जाली कागज बनाकर उसे अंग्रेजों को बेच दिया। ताजमहल के कागज बनवाने के लिए उसने उस समय के president Dr Rajendra Prasad की हूबहू hand writing copy करके उसके सरकारी कागज और stamp लगाकर ना केवल अंग्रेजों को भेजें बल्कि संसद भवन भी भेज दिए। इसके अलावा इस पर दो बार राष्ट्रपति भवन और एक बार संसद भवन बेचने के लिए भी cases दर्ज किए गए।
नटवरलाल के cases की सुनवाई पूरी हो गई थी केवल और 19–20 cases के लिए उसे 113 साल की सजा सुनाई गई थी और बाकी सभी cases की सुनवाई पूरी होनी बाकी थी। पर नटवरलाल ने केवल अपने जीवन के 20 साल ही जेल में काटे और बाकी पूरे जीवन में पुलिस को भी ठगता ही रहा।
Natwarlal को आज तक पुलिस पकड़ नहीं पाई। 84 साल के नटवरलाल को जब जेल में रखा गया था तब उसके पैरों में बहुत दिक्कत होने लगी। Court ने order दिए की AIIMS में ले जाकर उसका इलाज करवाया जाए । कई महीनों से नटवरलाल खुद चल फिर तक नहीं पा रहा था इसी के चलते 3 पुलिस वालों को उसके साथ उसको AIIMS दिल्ली checkup कराने भेजा । जब station पर उतरे तो एक पुलिस वाला ambulance मंगवाने के लिए चला गया । दूसरा पुलिस वाला टिकट checking counter पर चला गया और तीसरे पुलिस वाले से नटवरलाल ने चाय की दरख्वास्त लगाई । पुलिस वालों ने सोचा कि जो व्यक्ति महीनों से खड़ा भी नहीं हो पा रहा है वह कहां है कुछ कर पाएगा । इसी बात का फायदा उठाते हुए जैसे ही तीसरा पुलिस वाला चाय लेकर वापस आया तो उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। 19 जून 1996 को पुलिस ने आखिरी बार नटवरलाल को देखा था और उसके बाद उसका कभी पता नहीं लगाया जा सका।
ऐसे ही छल से भरी होने वाली है bade miyan chote miyan 2 ki kahani।
Ab jaate jaate aapko aapki fayda ki baat btaana chahti hu , toh agar aap bhi cinema ki duniya se judna chahte hai aur kaam karna chahte hai toh description box mei diye gye job link par click kare aur iss opportunity ka zarur fayda uthaye.
Apoorva