मेजर सोमनाथ अपने पिताजी की राह पर चलते हुए उन्हें अपने देश के लिए अपनी जान तक दे दी थथी । मेजर सोमनाथ शर्मा 31 जनवरी 1923 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के दाढ़ में पैदा हुए थे, उनके पिता अमरनाथ शर्मा भारतीय सेना में मेजर जनरल थे और बाद में वो इंडियन आर्म्ड मेडिकल सर्विसेज के पहले डायरेक्टर जनरल भी बने थे. मेजर शर्मा के अंकल कैप्टन केडी वासुदेव भी फौजी थे, वो द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापानी हमलावरों के खिलाफ रिवर स्लिम को बचाते समय शहीद हुए थे. सोमनाथ शर्मा ने देहरादून के प्रिन्स ऑफ़ वेल्स रॉयल मिलिट्री कॉलेज में दाखिला लेने से पहले, शेरवुड कॉलेज, नैनीताल में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की थी और बाद में उन्होंने रॉयल मिलिट्री कॉलेज, सैंडहर्स्ट में अध्ययन किया था अपने बचपन में सोमनाथ शर्मा जी भगवद गीता में कृष्ण और अर्जुन की शिक्षाओं से प्रभावित हुए थे, जो उनके दादा द्वारा उन्हें सिखाई गई थी। 22 फरवरी saal 1942 को रॉयल मिलिट्री कॉलेज से स्नातक होने पर, श्री सोमनाथ शर्मा की नियुक्ति ब्रिटिश भारतीय सेना की उन्नीसवीं हैदराबाद रेजिमेन्ट की आठवीं बटालियन में हुई थी जिसके बाद 23 अक्टूबर 1947 की सुबह दिल्ली के पालम एयरपोर्ट से सैनिकों और हथियारों को श्रीनगर पहुंचाया गया. 31 अक्टूबर को मेजर सोमनाथ शर्मा भी श्रीनगर पहुंचा दिए गए थे, उस समय मेजर शर्मा के दाहिने हाथ में प्लास्टर चढ़ा था, क्योंकि हॉकी खेलते समय उनका हाथ फ्रैक्चर हो गया था. डॉक्टरों ने आराम करने की सलाह दी थी. पर देशभक्त का दिल कहां मानता है, दुश्मन दरवाजे पर हो तो घाव और दर्द नहीं दिखता है। मेजर शर्मा ने युद्धक्षेत्र में जाने की अनुमति मांगी, लेकिन उनके कमांडर ने पहले तो उनको बहुत समझाया लेकिन बाद में उनको मंजूरी मिल गई थी. उन्हें उनकी यूनिट का कमांड सौंप दिया गया था जिसके बाद मेजर शर्मा ने जब गिनती की तो पता चला कि उनका एक-एक जवान सात-सात दुश्मनों से संघर्ष कर रहा था. तत्काल उन्होंने ब्रिगेडियर सेन को और टुकड़ी भेजने की रिक्वेस्ट की क्योंकि मेजर शर्मा को बडगाम पोस्ट की वैल्यू पता थी और वो उस पोजिशन को छोड़ना नहीं चाहते थे. अगर ये पोस्ट चली जाती तो शायद श्रीनगर भारत के हाथ से निकल जाता. कश्मीर घाटी भारत से अलग हो जाती, लेकिन मेजर शर्मा और उनकी टीम ने ऐसा होने नहीं दिया था एक हाथ में प्लास्टर लगा होने के बावजूद मेजर शर्मा हर पोस्ट पर दौड़-दौड़कर सैनिकों का हौसला बढ़ा रहे थे और बीच-बीच में दुश्मन पर गोलियां बरसा रहे थे. उनकी फॉरवर्ड प्लाटून खत्म हो चुकी थी, लेकिन बाकी सैनिकों ने मेजर शर्मा को हौसले को देखते हुए जंग जारी रखी. इस बीच मेजर शर्मा सभी लाइट ऑटोमैटिक मशीन गनर्स के पास मैगजीन पहुंचाने का काम करने लगे, ताकि गोलियां खत्म न हों किसी भी पोस्ट पर और दुश्मन के शरीर को हिंदुस्तानी गोलियां चीरती रहें, कुछ ऐसा ही हाल बॉबी देओल ने कर दिया था सोलिडर मूवी में अपने दुश्मनों का और अगर मूवी के इस पार्ट में भी मेकर्स ऐसे मज़बूत पर्सनैलिटी की लाइफ पर मूवी बनाते हैं तो वो ऑडियंस पर जरूर ये फिल्म अपना एक अलग ही छाप छोड़ेगी।
उन्होंने बर्मा में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अराकन अभियान में जापानी सेनाओं के विरुद्ध लड़े और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने अराकन अभियान बर्मा में जापानी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की। उस समय उन्होंने कर्नल के एस थिमैया की कमान के तहत काम किया, जो बाद में जनरल के पद तक पहुंचे और साल 1957 से साल 1961 तक सेना में रहे। सोमनाथ शर्मा को अराकन अभियान की लड़ाई के दौरान भी भेजा गया था और अराकन अभियान में उनके योगदान के कारण उन्हें मेन्शंड इन डिस्पैचैस में स्थान मिला।अपने सैन्य कैरियर के दौरान, श्री सोमनाथ शर्मा, अपने कैप्टन के॰ डी॰ वासुदेव जी की वीरता से काफी प्रभावित थे और कैप्टन वासुदेव जी ने आठवीं बटालियन के साथ भी काम किया, जिसमें उन्होंने मलय अभियान में हिस्सा लिया था, जिसके दौरान उन्होंने जापानी आक्रमण से सैकड़ों सैनिकों की जान बचाई एवं उनका नेतृत्व किया।
दरअसल, आजाद होने के कुछ दिन बाद ही भारत बडगाम युद्ध का गवाह बना था और उस वक्त बडगाम में सैकड़ों कबाइली बड़ी तादात में कश्मीर घाटी में प्रवेश कर रहे थे और उनका मकसद एयरफील्ड पर कब्जा करना था, ताकि सेना ना पहुंच सके. भारत में घुसपैठ कर रहे कबालियों को ढूंढने के लिए कुमाउं रेजिमेंट की एक बटालियन को वहां तैनात किया गया और कमांड मेजर सोमनाथ शर्मा के हाथ में थी. लेकिन, 3 नवंबर को पेट्रोलिंग के दौरान, दोपहर ढाई बजे कबालियों की मूवमेंट से वो दुश्मन से घिर गए. मेकर्स मूवी को और देशभक्ति की भावनाएं देने के लिए घर से संबंधित कुछ ऐसा सीन दिखा दे जिसे दर्शक आसानी से फिल्म से खुद को अच्छे से कनेक्ट कर पाएंगे। जब तक अन्य बटालियन वहां पहुंचती, उससे पहले वो और उनकी रेजिमेंट शहीद हो चुकी थी. लेकिन उन्होंने 200 कबालियों को मौत के घाट उतार दिया और कश्मीर घाटी में कबाइलियों को अधिकार होने से बचा लिया. इस बीच मेजर शर्मा ने मुख्यालय को एक संदेश भेजा. उन्होंने कहा कि हम संख्या में बहुत कम है. दुश्मन हमसे सिर्फ 45-46 मीटर की दूरी पर है, हम सब भयानक गोलीबार के बीच हैं, लेकिन हम अपनी जगह से एक इंच भी नहीं खिसकेंगे. हम आखिरी गोली और आखिरी जवान के रहने तक घुसपैठियों को जवाब देते रहेंगे. इसके थोड़ी देर बाद ही मेजर सोमनाथ शर्मा एक मोर्टार विस्फोट में शहीद हो गए और वो खुद आखिरी सांस तक लड़ते रहे. उनकी इस वीरता और पराक्रम के लिए मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. ये कहानी हो सकती है आने वाली फिल्म सोल्जर 2 की, आपको ये कहानी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएगा और तब तक आप अपना ध्यान रखिए और हमेशा मुस्कुराते रहीए।
Chandan Pandit