Ind-pak partition के दर्द से हुई दोस्ती!
सलमान राशिद और मोहिंदर प्रताप सहगल दो एक दुसरे से अंजान बच्चे जिन्होंने Ind Pak Partition का भयानक सफर अपनी आंखो से देखा था। और दोनों किसी वजह से जीवन भर एक-दूसरे की तलाश करते रहे।
2008 में, राशिद लाहौर, भारत के जालंधर वाले अपने दादा के घर की तस्वीर लेकर पाकिस्तान से निकल पड़े। राशिद एक travel writer है, जिसके लिए ये 80 मील की दूरी तय करना आसान है। लेकिन ये पाकिस्तान से भारत की trip, एक personal trip है।
उनके पिता और कुछ रिश्तेदार 1947 में हुए partition में बच गए थे, जिसमें ब्रिटिश इंडिया का खात्मा हुआ था। लेकिन Rashid को पास कुछ सवालो का जवाब नही था, जैसे उनके दादा-दादी की मृत्यु कैसे हुई, और उनकी मौसी के साथ क्या हुआ?
Subcontinent के Hindu Majority India और Muslim Majority Pakistan में division होने के बाद से किसी ने भी उन लोगो से नहीं सुना था। और ये division दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा Mass Migration हुआ है।
Rashid जाना चाहता था कि उसको बाकी के बचे हुए परिवार के साथ क्या हुआ, लेकिन उनके घर में बंटवारे को लेकर बिल्कुल सन्नाटा रहने लगा। किसी ने कभी इसके बारे में बात नहीं की। रशीद को बस इतना ही बताया गया कि वो परिवार मर गया होगा, क्योंकि जालंधर में कोई मुसलमान जिंदा नहीं बचा था।
लेकिन क्योकी राशिद के दिल में अभी भी एक उम्मीद थी की वो लोग मरे नही होंगे और सरहद पार Safely जी रहे होंगे। और उसके इन सब सवालो का जवाब खोजने को लिए वो खुद ही निकल पडा।
200 सालो के शासन के बाद, जैसे ही अंग्रेजों ने भारत छोड़ा, उन्होंने एक territory को दो भागों में divide कर दिया, जिसका दर्द पीढ़ियों तक चलने वाला है।
इस land को कैसे divide किया जाए, ये ब्रिटिश वकील सिरिल रैडक्लिफ ने अपनी पहली और only भारत यात्रा में पाँच सप्ताह में ही decide कर लिया था। और तभी तुरंत ही, सदियों से एक साथ रहने वाले हिंदुओं, सिखों और मुसलमानों के बीच दंगे भड़क उठे। Approx. 1 मिलियन लोग मारे गए, और 20 मिलियन तक लोग बेघर हुए। उस वक्त women ने अपहरण, जबरदस्ती धर्म परिवर्तन और बलात्कार के साथ बहुत बड़ी कीमतें चुकानी पड़ी थी।
Survivors का कहना है कि new borders के पार भागना उन्हे temporary लग रहा था, क्योकी ये समझ से बाहर था कि वो कभी वापस घर नहीं जा सकते थे। लोगो ने किसी तरह अपने आप को संभाला ही था कि एक quarter century बाद, एक और bloodshed division किया गया, जब east पाकिस्तान, independent बांग्लादेश बन गया।
राशिद की तरह, कई परिवारों ने partition के दर्द को भूलने की कोशिश की। लेकिन संकट हमेशा मौजूद है, भारत और पाकिस्तान के बीच constant tension से लेकर नई दिल्ली में मुसलमानों के खिलाफ हुए mob violence तक हर जगह उस partition की legacy चल रही है।
जब दुनिया का ज्यादातर हिस्सा लॉकडाउन में चला गया, तो “संडे स्टोरीज़” नाम से फेसबुक लाइव sessions शुरू किया गया, जहां भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के academics, writers और historians ने कई सारे तरीकों पर चर्चा की, partition ने south asia को कैसी shape दी है। सीरीज़ के दूसरे सीज़न के दौरान, राशिद ने जालंधर में “घर” जाने की बात कही, एक ऐसा शहर जिसे उन्होंने कभी नहीं देखा था, लेकिन हमेशा अपना महसूस किया।
जालंधर में उन्हें अपना पुश्तैनी घर मिला, जहां छह दशक बाद भी आस-पड़ोस के लोग उनके दादाजी को प्यार से “हमारे डॉक्टर साहब” के रूप में याद करते थे।
रशीद जब सिर्फ अपने दादा जी के घर की photo के साथ जालंधर पहुचा, तो वो जैसे जैसे उये clues मुलते गए, वो उनके पिछे पिछे चल दिया। उसने एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अपना रास्ता बनाया, किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में जिसके पास उसके सारे सवालो का जवाब था।
एक दिन, उसके दादा के घर के नीचे काम करने वाले दुकानदार ने बताया कि पड़ोस में कोई है जो राशिद से मिलना चाहता है।
जो की सहगल है, जो partition के वक्त सिर्फ 13 साल के थे। लेकिन जैसे ही वो दोनो मिले, और सहगल उससे माफी मांगता है। “सबसे पहले, मुझे माफ़ी माँगनी होगी, क्योंकि वो सब मेरे पिता की गलती थी।”
राशिद को यह जानने में 61 साल लग गए कि उनकी मौसी को मार दिया गया था, और सहगल के पिता ने उन्हें मार डाला था। बारह परिवार एक साथ एक कमरे मेम छिपे हुए थे, और उन पर बेरहमी से गोली चलाई गई थी। 12 परिवार के सभी सदस्य मारे गए। और फिर उनकी dead bodies को एक ठेले मे भर कर, अंतिम संस्कार कर दिया गया था।
राशिद जिस सवाल की खोज में आया था, उसका जवाब उसे मिल गया था। और उसकी माफी मामगने के लिए ही सहगल, राशिद से मिलना चाहता था।
अपने पूरे जीवन के लिए, सहगल ने अपने पिता के अपराध को और राशिद ने अपने पिता के दर्द को ढोया है।
और दोनो के दर्द ने सहगल और राशिद के बीच एक अच्छी दोस्ती बना दी थी।
हालाकी उसके कुछ साल बाद ही सहगल का निधन हो गया था, लेकिन इससे पहले कि दोनो का tragic connection एक genuine friendship मे बदल गया था। राशिद और उनकी पत्नी ने भारत की कई और यात्राएँ कीं, हर बार पाकिस्तान से उपहार लेकर अपने नए दोस्त से मिलते थे।