Gadar 2

Malhotra Family की Partition कहानी!

 

मल्होत्रा परिवार, जो अभी नई दिल्ली में एक Middle-class clan में बसे हुए है और उनका experience, Modern India के तीन युगों के change को दिखाते हैं: Independence का Joy और pain, Illogical Socialism Era और अब development और optimism में हुई growth।  Malhotra Family की history हमें बताती है कि, आज भारत कितनी दूर आ गया है और इसके लोग अभी भी कितनी दूर जाने की इच्छा रखते है।

 

अगस्त 1947 में भारत की आजादी से पहले के महीनों में, कई गांवों और शहरों में लाखों लोगों ने ceremonies और fireworks, speeches और पार्टियों के साथ Independence को खुशी मनाने के लिए तैयारियां कर रहे थे। लेकिन देश के North को, धर्म को नाम पर divide करने वाली boundary के साथ रहने वाले लोग खुशी मनाने की जगह, बहुत ज्यादा fearful थे।  क्या ब्रिटिश colonial rulers ने सत्ता सौंपने से पहले देश का अलग-अलग हिंदू और मुस्लिम nations में Partition किया?  और अगर उन्होंने किया, तो real में नई सीमाएँ कहाँ होंगी?  

 

लायलपुर, जो predominantly मुस्लिम area है और Northwest में तीसरा सबसे बड़ा शहर, वहां 21 साल की एक teacher संतोष मल्होत्रा, एक हिंदू, ये सोच कर रही थी, कि नए border की गलत side में फंसने से बचने के लिए, उसे East की ओर जाना चाहिए या नहीं।  क्योंकी santosh इतना तो समझ गई थी कि, अगर वो हिंदु होकर, मुस्लिम की तरफ रह गई तो उनका बचकर निकलना मुश्किल हो जाएगा।

 

जैसे-जैसे आजादी का दिन नजदीक आ रहा था, religious tension बढ़ रही थी, historical शिकायतों, democratic Politicians की भावना से सब और भड़क गए थे।  संतोष के पिता, एक सफल पंजाबी trading परिवार के बेटे, Army में अपनी नौकरी पर बाहर थे।  उसकी माँ और उसके छोटे भाई-बहन पहले ही नई दिल्ली में एक चाचा के पास रहने के लिए चले गए थे।  उनके साथ लायलपुर में उनके पति देवराज, जो एक Cotton mill में क्लर्क थे और संतोष का charming बड़ा भाई राम स्वरूप थे, जिन्होंने कहा था कि अगर हालात बहुत गर्म हो गए तो वो नए border के उस पार अपने प्यारे घोड़े की सवारी पर जाएंगे।

 

संतोष अब उस दौर को याद करते हुए कहते हैं, ”लंबे समय से situation clear नहीं थी और हमें पता नहीं था कि future क्या होगा।”

 

आजादी मिलने के करीब दो महीने पहले एक दोपहर संतोष को खबर मिली कि उसके भाई राम स्वरूप की मौत हो गई है और इस खबर ने तो जैसे संतोष के होश ही उडा दिए थे। क्योंकी कुछ वक्त पहले जो भाई मजाक करते हुए घुम रहा था, अचानक वो हमेशा के लिए कही दूर तला गया।

 

आज तक, उनके परिवार का मानना ​​​​है कि हिंदू समुदाय को बाहर निकालने के इरादे से एक मुस्लिम ने उसे जहर दिया था। क्योंकी जहरीला दूध पीने के बाद राम स्वरूप की मौत हो गई थी।  संतोष कहती हैं, “एक मुस्लिम ने हिंदू दुकान के मालिक को ज़हर देने के लिए bribe दी थी।” इस बात से santosh का दिल आज भी दुखता है।

 

राम की मौत के बाद के दिन धुंधले से हो गए थे। संतोष के पिता का अपनी Army की नौकरी से घर लौट आए थे, उसकी माँ और चाचा नई दिल्ली से लौट आए थे, फिर उसके भाई का अंतिम संस्कार किया गया और ऊपर से अंग्रेजों ने लायलपुर शहर को पाकिस्तान के नए राष्ट्र का हिस्सा बना दिया गया था,  इसका clearance मिलने के बाद तो सड़कों पर अशांति और बढ गई थी।

 

संतोष का परिवार अंग्रेजों से आजादी की चर्चा किया करता था। लेकिन वो ईमानदार लोग थे और मौजूदा situation से खुश थे। Freedon मिल रही थी,जो की बहुत खुशी का बात थी, लेकिन वो freedom दिन बदलावों के साथ मिल रही थी, उसने उनके जीवन को बदल दिया था।

संतोष का परिवार अमीर नहीं था, लेकिन फिर भी उसके पास खोने के लिए बहुत कुछ था।  अब 82 साल की संतोष, जो नई दिल्ली में अपने बिस्तर पर बैठी है, गर्मियों की घनी हवा में धीरे-धीरे पंखा चल रहा है, वो लायलपुर में अपने प्यारे बचपन को याद करती हैं और बताती है कि, उनका एक बहुत ही आरामदायक बचपन था। वो बिना किसी चिंता के बाहर सड़कों पर खेलती थी। उसके पिता की शहर के हिंदू इलाकों में एक जगह property थी और वो कुछ food items – गेहूं, दाल, चीनी का trade किया करते थे। 

 संतोष के जन्म के तुरंत बाद, उसके पिता, जो एक local बैंक में क्लर्क के रूप में शामिल हुए थे, को promote किया गया। अपने माता-पिता के छह बच्चों में से दूसरी नंबर पर पैदा हुई संतोष को उनके पिता अपना lucky charm मानते थे। 

 

राज के अंतिम दिनों में पली-बढ़ी, संतोष कहती हैं कि उन्हें भारत के colonial overloads के बारे में शायद ही कुछ पता था।  वो बस इस मायने में खुश थे कि वो सोना पहन सकते थे और बाहर जा सकते थे और कोई चोरी नहीं थी, वो Safe थी। Santosh उस वक्त, श्री गांधी के बारे में जानती थी, लेकिन हर कोई बात करता था कि वो जो काम कर रहे थे, उसके कारण एक दिन उन्हें मार दिया जाएगा।

 

आजादी की रात, शहर में हिंदुओं और सिखों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के बावजूद, संतोष, उनके पति और उनकी मां अभी भी लायलपुर में थे, जिसका नाम अब बदलकर फैसलाबाद रखा गया है।  संतोष के मुस्लिम पड़ोसियों ने कहा कि, वे उसे और उसके रिश्तेदारों को तब तक छिपाएंगे जब तक कि मामला शांत नहीं हो जाता।  लेकिन जब Army में काम कर रहे चचेरे भाई ने परिवार को भारत तक Safely जाने के लिए एक military ट्रक पर जगह देने की बात बताई तो संतोष और उसकी मां ने हामी भर दी। उनके पति ने उनके बाकी बचे मामलों को निपटाने के लिए रुकने का फैसला किया, इस उम्मीद में कि उनके पुलिसकर्मी देवर उन्हें कुछ protection देंगे।

 

उस वक्त उनका पूराना घर छोडना incredibly dangerous था।  कुल मिलाकर Military के चार ट्रक और एक कार थी, जिसमें लगभग 500 लोगो को  सीधे और कंधे से कंधा मिलाकर भरा हुआ था। संतोष की माँ एक बक्से पर बैठी थी जिसमें उनके पास केवल बची हुई चीजें थी – एक साड़ी, एक सूट, कुछ गहने और उसके मरे हुए बेटे राम की एक तस्वीर।  बारिश हो रही थी, बच्चे प्यासे थे। हालात खराब होते दिख रहे थे और संतोष को अपने पति के बारे में चिंता हो रही थी। उनके लाहौर पहुँचने से ठीक पहले, ट्रकों में से एक खराब हो गया और repairing के दौरान उनका वो dangerous सफर लगभग एक घंटे तक रुका रहा।  Border की ओर जाने वाली बसों और ट्रकों की एक line लगी हुई थी और दूसरे रास्ते से भी ट्रक आ रहे थे, जो भारत से मुस्लिम refugees को ले जा रहे थे।  दंगे करने वालो ने पाकिस्तान से बाहर जा रहे कुछ vehicles पर हमला किया और एक जगह पर उन्होंने लाशों से लदा हुआ एक ट्रक भी देखा।  ‘हर कोई भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि, वो सकुशल भारत पहुंच जाएं और राम राम जपते हुए End में, उनके trucks नए border के पार, अमृतसर पहुंचे।

 

इस लड़ाई में आने वाले हफ्तों में 800,000 और 2 मिलियन के बीच लोग मारे गए। 14 मिलियन लोगों ने दुनिया की सबसे नए border को पार किया, जो कि humanity का एक incredible exchange था और इतिहास में सबसे बड़े migration में से एक बना। 

 

संतोष और उनका परिवार finally नई दिल्ली पहुंचे, जहां वे 18 महीने तक tents में रहे, जब तक कि Ruling indian national कांग्रेस ने उन्हें और अन्य हजारों लोगों को उनके forced migration के compensation के रूप में जमीनें दी।  

संतोष और देवराज की गोल-मटोल तीसरी संतान, जितेंद्र मल्होत्रा ​​का जन्म 1953 में हुआ था। तब तक संतोष ने फिर से पढ़ाना शुरू कर दिया था।  वो कहती हैं, ”मुझे कमाना था, क्योंकि हमारे पास जो कुछ भी था, वह सब पाकिस्तान में रह गया था।”  उनके पति को एक सरकारी cotton मिल में नौकरी मिल गई थी।  Santosh के दिल में उस समय के बारे में कोई ill feelings नहीं है।  वो एक बार के लिए गुस्से में थी,  लेकिन जब आप एक ही situation में इतने सारे लोगों को same समस्याओं के साथ देखते हैं, तो आप जानते हैं कि यह सिर्फ आपके साथ नहीं हो रहा है और ये कोई personal suffering नहीं थी।

 

संतोष अब अपने बेटे, बहू और पोतियों के साथ विवेकानंद पुरी नामक एक middleclass पड़ोस में रहती हैं।  उसके bedroom को हल्के पीले रंग से paint किया गया है और एक बिस्तर, एक बेडसाइड टेबल और एक छोटे से लकड़ी के स्टैंड पर एक टेलीविजन है।  वह गठिया रोग यानी Arthritis से जूझ रही है और पिछले कुछ महीनों में वो अपना ज्यादातर दिन बिस्तर पर टीवी देखने, परिवार के सदस्यों से बात करने या सोने में बिताने लगी है।  उनके लंबे बाल उसके चेहरे से कसकर पीछे खींच लिए गए हैं।  सोने की बालियों के साथ उसके कान भी लटक रहे हैं।  वो आसानी से थक जाती है, लेकिन जब वो past के बारे में बात करती है तो उसकी आंखें चमक उठती हैं।

 

तो ये थी Malhotra family की कहानी, जिन्होंने freedom की खुशी भी मनाई है, तो उसके लिए sacrifice भी किए है।

 

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