दुश्मन के इलाके में indian army!
आज की कहानी की 6th June से होती है। इंडियन आर्मी मणिपुर में हुए हमले का बदला लेने के लिए म्यांमार बोर्डर के पास 6th June की रात को पहुंच जाति है और 7th June की पहली किरण के साथ ही, लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा के पीछे पीछे, उनके कमांडोज बॉर्डर की दिशा में अपना पहाड़ी सफर शुरू कर देते हैं। इस दौरान ऑस्कर डेल्टा के दिमाग में वैसे तो पूरी तरह अपना मिशन ही छाया हुआ था, लेकिन बीच-बीच में क्षण भर के लिए उन्हें अपनी मां की याद भी आ जाती थी, उनकी मां जो पिछले कई वर्षों से सर्वाइकल कैंसर से जूझ रही थी, 2 दिन बाद उनकी मां की एक मेजर सर्जरी होने वाली थी और इतनी बड़ी यह बात उन्होंने किसी को नहीं बताई थी। अपने इस निर्णय को ले लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा के मन में जरा सा भी पछतावा नहीं था, इस समय वह अपनी दोनों मांओ में से किसी एक को ही चुन सकते थे और उन्होंने बिना किसी संकोच के अपनी दूसरी मां मां भारती को चुना था। 8 जून का सूर्य निकलने से कई घंटे पहले भारतीय पैरा कमांडो बॉर्डर क्रॉस कर म्यांमार में अपना पहला कदम रख चुके होते हैं। इस ऑपरेशन के लिए, लेफ्ट कर्नल डेल्टा ने बॉर्डर के पास एक गांव में रहने वाले दो भारतीय गाइड्स को भी हायर कर लिया था, बर्मीज बोलने वाले दोनों सिविलियंस इस इलाके के चप्पे-चप्पे से भलीभांति परिचित थे। इन गाइड की सहायता से पैरा कमांडो बिना किसी बाधा के आराम से अपने टारगेट की ओर बढ़ता रहता है और जैसे ही बॉर्डर के पास से बहने वाला एक नाला क्रॉस करता है, सामने खड़ी घनी झाड़ियों में से आवाज आने लगती है, ये आवाज सुनते ही कर्नल डेल्टा अपनी टीम की तरफ सास रोकने का इशारा करते हैं और उनका हर कमांडो सांसे रोक अपनी-अपनी राइफल झाड़ियों की तरफ तान देता है, लेकिन इसे पहले के कोई अनहोनी घटीती झाड़ियों के पीछे से 5 आदमी प्रकट होते हैं, जिनके कंधों पर बड़ी-बड़ी मॉनिटर लिजर्ड सजी हुई थी। इस कोड के साथ मौजूद गाइड के पूछने पर पता चलता है कि यह पांचो बर्मी शिकारी है जो इलाके में पाई जाने वाली खतरनाक छिपकलियों का शिकार कर उन्हें बेचने का काम करते हैं। इन शिकारियों ने बैठे-बिठाए ऑस्कर डेल्टा को एक अत्यंत गंभीर दुविधा में डाल दिया था। अब वो चाहते हुए भी इन लोगों को ऐसे ही नहीं छोड़ सकते थे क्योंकि यह लोग शिकारी के भेस में अलगाववादियों के जासूस भी हो सकते थे और इन को छोड़ना पूरे मिशन को खटाई में डाल सकता था। इसके अलावा दूसरा विकल्प यह था कि इन पांचों को यहीं के यहीं ऑन द स्पॉट खत्म कर दिया जाए, लेकिन लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा जानते थे कि बिना पुख्ता सबूत के वो और उनके कमांडोज ऐसा कभी नहीं कर सकते क्योंकि इस बात की भी पूरी पूरी संभावना थी कि यह लोग सच बोल रहे थे और वास्तव में शिकारी थे। काफी देर सोचने के बाद भी लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा अपनी इस दुविधा का निवारण नहीं कर पाते और इसीलिए इन पांचों को बंदी बना अपने साथ उस पहाड़ तक ले जाने का निर्णय करते हैं जिसकी चोटी से टारगेट कैंप को मॉनिटर किया जाना था। दोपहर होते-होते पैरासफे कमांडो को पहाड़ दिखाई देने लगता है। पिछले दिन की सुबह ट्रक से उतरने से लेकर अब तक एक बार भी एक कमांडोज आराम करने के लिए नहीं रुके थे, इसीलिए लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा इनको थोड़ी देर रुककर लंच करने को कहते हैं। इन कमांड उसके बैग पैक में पोर्टेबल स्टॉप, एग्जामिन few टेबलेट थी जो जलने पर किसी भी प्रकार की गंध और दुहा नहीं छोड़ती। स्टोक जलाने के बाद भूख से तड़प रहे कमांडोज अपने अपने बैग से राजमा पुलाव के पैकेट निकालते हैं और धीमी आंच पर गर्म कर खाना शुरु कर देते हैं। राजमा पुलाव के बाद यह फौजी मीठे शक्करपारे का सेवन करते हैं, एक मिठाई जिसका स्वाद इन्हे इस घने जंगल में घर की याद दिला देता है। लगभग 1 घंटे का ब्रेक लेने के बाद यह कमांडोज अब और ज्यादा घनी हो चुकी vegetation को चीरते हुए उस पहाड़ की तरफ बढ़ना शुरू कर देते हैं और जब उस पहाड़ की चढ़ाई करने का समय आता है, तो इनको आभास होता है कि इनके पास पीने का पानी खत्म हो चुका है। मणिपुर से आए कमांडो अपने साथ 7 लीटर पानी लेकर निकला था, लेकिन यह जून का महीना था और गर्मी अपने चरम पर थी। वैसे तो ये पैरा कमांडो कई दिनों तक भूखे प्यासे रहकर कंपैक्ट करने महा पारंगत थे। लेकिन फिर भी इतने बड़े मिशन में अटैक से 1 दिन पहले पीने का पानी खत्म हो जाना, यह परिस्थिति के अनुकूल नहीं था। अपने सभी साथियों से इशारों इशारों में कंफर्म करने के बाद कमांडो lieutenant colonel delta से कहता है “sir, वो सबका पानी खत्म हो गया है, किसी के पास एक बूंद भी नहीं बची है” “अरे ये तो अच्छी बात है, अब और जल्दी इस मिशन को खत्म करेंगे, जल्दी उन कैंप में रखा खाना पानी बीयर सियर सब हमारा होगा आराम से पार्टी करेंगे दोस्तों।” मिशन लीडर होने के नाते लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा इंफाल में मौजूद आर्मी नेतृत्व के साथ लगातार संपर्क बनाए हुए थे, उन्हें इन क्रिपिटेड मोबाइल फोन दिया गया था, जिसमें सिग्नल अभी भी तीन बार दिखा रहा था, उधर दिल्ली से इस मिशन को अपना पूरा सपोर्ट दे रही भारत सरकार ने म्यांमार की राजधानी में पोस्टेड अपने डिप्लोमेट को भी लुक में रखा हुआ था। 8 जून की आखिरी किरण ढलने के साथ ही पैरा स्कॉर्ड पहाड़ की चोटी पर पहुंच चुका होता है। लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा और उनके कमांडो तुरंत अपनी-अपनी पोजीशंस ले अपने नाइट विजन, bynocs और दूसरे हाईटेक इक्विपमेंट्स की स्कैनिंग करना शुरू कर देते हैं। जल्दी रिकॉर्डिंग की स्क्रीन पर कैंप में मौजूद बागियों की तस्वीरें उभरने लगती हैं, तस्वीरें जिन्हें देखते ही हर कमांडो की आंखों के सामने डोगरा रेजीमेंट के 18 फौजियों के चेहरे flash होने लगते हैं, अब रात पूरी तरह ढल चुकी थी और यह पहाड़ भी चंद्रमा की चांदनी में नहाने लगा था। लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा अपने टीम लीडर के साथ एक और बार स्ट्राइक के प्लान को प्रिय रियसल और फाइन ट्यून करने में लग जाते हैं। इस प्लान के अनुसार पैरा एस्कॉर्ट को कुल 4 सब unit में बांटा जाना था। पहली सब यूनिट को बिल्कुल सामने से कैंप के ऊपर आक्रमण कर इस ऑपरेशन का शंखनाद करना था, 2 कट ऑफ सभ unit को कैंप की विपरीत दिशाओं से बागियों को इंटरसेप्ट कर उन्हे न्यूट्रलाइज करना था, और चौथी सब यूनिट को सबसे महत्वपूर्ण रियल गार्ड ग्रुप फॉर्म करना था. यानी कि इस टीम को सबसे पीछे रहते हुए उन बागियों को खत्म करना था जो तीनों टीम से बचने में सफल हो गए थे. इन कमांडोज के आर्डर बिल्कुल क्लियर थे 9 जून के सूर्य के साथ ही इन्हे अत्यंत भीषण फायरपावर के साथ इन कैंप के ऊपर धावा बोलना था और टिक इसी समय 100 किलोमीटर दूर नागालैंड से निकले पैरा स्कॉट को भी एक अलगाववादी कैंप को ध्वस्त करना था। इंटेलिजेंस इनपुट के अनुसार एनएससीएन के का कुख्यात मिलिट्री एडवाइजर निक्की सुमित समय इसी कैंप के अंदर छुपा हुआ था। लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा और उनके साथी अभी अपने प्लेन को फाइनल कर ही रहे थे कि रात के ठीक 10:00 बजे इस पहाड़ पर पसरी शांति अचानक भंग हो जाती है, यह आवाज सुनते ही सभी कमांडोज अपने वेपंस को रेडी टू फायर मोड में डाल अपनी-अपनी पोजीशंस पर एक घुटने के बल बैठ जाते हैं। क्या हमारा कवर expose हो चुका है? कहीं बागियों को हमारे आने का पता तो नहीं चल गया? फायरिंग की आवाज सुनते ही लेफ्टिनेंट डेल्टा के मन में इस प्रकार के हजारों प्रश्न एक ज्वालामुखी की तरह फटने लगते हैं। वह कुछ गहरी सांसे लेने के बाद धीमी आवाज में अपने कमांडो को स्टैचू बने रहने का आदेश देते हैं, जिसके बाद हवा से हिल रहे पत्तों के अलावा दूर-दूर तक दूसरी कोई आवाज सुनाई नहीं देती। 10 मिनट बाद कुछ हथियारबंद बागी कैंप से बाहर निकलते हैं और उस पहाड़ की तरफ बढ़ना शुरू कर देते हैं और देखते ही देखते पहाड़ के श्लोक पर कैमों फ्लॉवर्स में तैनात भारतीय कमांडो से केवल डेढ़ सौ मीटर दूर पहुंच जाते हैं, भारतीय स्क्वाड के इतना ज्यादा करीब आ चुके हैं बागी अपने टॉर्च इंदर उदय लहराते हुए जोर-जोर से अरिजीत सिंह के गाने गा रहे थे और इनकी आवाज से साथ पता चल रहा था कि इन्होंने दबाकर शराब पी हुई है, लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा समझ जाते हैं ना हो यह उनका रोज का पेट्रोलिंग रूटीन है और भगवान के कृपा से उनका कवर अभी भी सुरक्षित है, हवा में कुछ और राउंड फायर करने के बाद जब ये बाकी वापस अपने कैंप की तरफ चलना शुरू करते हैं, तब जाकर कहीं भारतीय कमांडो की सांसे वापस आने लगती हैं। आज की इस रात चटनी के साथ ठंडी पूरियां खाने के बाद पैरा एसएफ के ज्यादातर कमांडो थोड़ी देर के लिए अपनी आंखें बंद कर लेट जाते हैं, लेकिन रिकॉर्डिंग टीम बिना एक क्षण के लिए भी अपनी पलकें झपकाए गीत की तरह लगातार इन टारगेट टाइम्स के ऊपर अपनी नजरें गड़ाए रहती है। भारत sf के इन जवानों को अपनी आंखें बंद किया अभी मुश्किल से 2 घंटे भी नहीं हुए थे, कि एक बार फिर कैंप से फायरिंग की आवाज आने लगती है, पर इस बार यह फायरिंग एकाद नहीं बल्कि पूरे 10 मिनट तक चलती है, अचानक रुक जाती है और एक बार फिर यह बाकी अपने कैंप के अंदर वापस चले जाते हैं।
इसके 2 घंटे बाद सुबह के 3:00 बजे बागीयो की तरफ से एक और फायरिंग राउंड शुरू हो जाता है बार-बार हो रही फायरिंग के चलते हैं भारतीय दल में कन्फ्यूजन के साथ-साथ फर्स्ट्रेशन भी बढ़ जाता है उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि बागीयो को उनके बारे में पता चल गया है? या ये उनका डेली रूटीन है? अब कर्नल डेल्टा कोई चांस नहीं ले सकते थे इसलिए उन्होंने अपना प्लान चेंज कर दिया। Plan में क्या बदलाव किया यह मैं आपको नेक्स्ट वीडियो में बताऊंगा।
Divanshu