Tiger हिल का Tiger!

कहानी कारगिल युद्ध के एक महावीर की है जिसने अपने शौर्य तथा पराक्रम से अपना तथा अपने परिवार का नाम रोशन कर दिया और भारत माता की सच्ची सेवा की ।

कारगिल युद्ध जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 में कश्मीर के कारगिल जिले में हुई ।

कारगि‍ल वॉर में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के 19 साल के एक लड़के ने ऐसा पराक्रम दि‍खाया कि आज भी सुनकर दुश्‍मनों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और भारतीय सेना का सिर गर्व से ऊंचा उठ जाता है।

यह गौरव गाथा है 19 साल के यानी सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र हासिल करने वाले नायाब सबूदार योगेंद्र सिंह यादव की।

सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव को कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल के बेहद अहम दुश्मन के तीन बंकरों पर कब्ज़ा जमाने का जि‍म्‍मा सौंपा गया था।

योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में स्‍थि‍त सिकंदराबाद के अहीर गांव में हुआ था। उनके पिता करण सिंह यादव ने 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों में भाग लिया था, वे कुमाऊं रेजीमेंट में थे।

बचपन से ही योगेंद्र सिंह यादव जी बहुत कुशाग्र बुद्धि के व्यक्ति थे वे रामायण तथा महाभारत से बहुत ही प्रभावित थे क्योंकि वह यदुवंशी थे इसलिए भगवान श्री कृष्ण उनके प्रेरणा स्रोत थे । भगवत गीता के गहन अध्ययन करने के पश्चात उनकी सेना में जाने की इच्छा तीव्र हो गई ।

योगेंद्र यादव जब सेना में शामि‍ल हुए तो उनकी उम्र महज 16 साल थी।

1996 में जब गांव का डाकिया उनके सेना में भर्ती होने का लेटर लेकर आया तो उनकी खुशी का ठि‍काना नहीं था।

मि‍लि‍ट्री ट्रेनिंग के कुछ साल बाद 1999 में ही योगेन्द्र शादी के बंधन में बंधे थे। नई दुल्हन के साथ उन्हें 15 दिन ही हुए थे कि तभी सेना मुख्यालय से एक आदेश आया। जिसमें लिखा था आपको तुरंत अपना सामान पैक करके कारगि‍ल पहुंचना है। यह नि‍र्णय उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन देश के लिए लड़ने का मौका भी छोड़ना नहीं चाहते थे।

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव 18  ग्रेनेडियर के साथ कार्यरत कमांडो प्लाटून ‘घातक’ का हिस्सा थे, जो 4 जुलाई 1999 के शुरुआती घंटों में टाइगर हिल पर तीन सभी बंकरों पर कब्ज़ा करने के लिए बनाई की गयी थी। बंकर एक ऊपर की ओर , बर्फ से ढके हुए 1000 फुट ऊंची चट्टान के शीर्ष पर स्थित थे। योगेंद्र सिंह यादव स्वेच्छा से चट्टान पर चढ़ गए और भविष्य में आवश्यकता की सम्भावना के चलते रस्सियों को पत्थरों से कसकर बांध दिया। आधे रस्ते में एक दुश्मन बंकर ने मशीन गन और रॉकेट फायर खोल दी जिसमे प्लाटून कमांडर और दो अन्य शहीद हो गए। अपने गले और कंधे में तीन गोलियों के लगने के बावजूद, यादव शेष 60 फीट चढ़ गए और शीर्ष पर पहुंचे। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वह पहले बंकर में घुस गए और एक ग्रेनेड से चार पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या कर दी और दुश्मन को स्तब्ध कर दिया, जिससे बाकी प्लाटून को चट्टान पर चढ़ने का मौका मिल सके ।

उन्होंने पहाड़ी पर चढ़ना शुरू ही किया था कि दुश्मनों ने अंधाधुंध गोलियां दागना शुरु कर दी। हमले में उनके कई साथी  शहीद हो गए। वे रुकना चाहते थे, लेकि‍न चारों तरफ से इतना गोला-बारुद बरस रहा था कि अपने साथियों के शवों को देखने का भी समय नहीं था। धुंआधार लड़ाई के बीच उन्‍हें एक खड़ी चट्टान की मदद से ऊपर जाना था।

कुछ घंटों में ही वे वहां तक पहुंचने में कामयाब रहे। चोटी पर पहुंचते ही उन्होंने दुश्मनों पर धावा बोल दिया और कई बंकरों को तबाह कर दिया। दूसरी तरफ से ग्रेनेड फेंके जा रहे थे। इस गोलाबारी में भारतीय सेना के कई सैनिक शहीद हो गए। योगेन्द्र की टुकड़ी में बहुत कम लोग बचे थे, इसलिए तय किया गया कि फायरिंग नहीं करेंगे और सही समय का इंतजार करेंगे।

दुश्‍मनों को लगा कि योगेन्द्र की पूरी टीम खत्म हो गई है तो वह थोड़े सुस्त हो गए। वे यही देखने के लिए आगे बढ़ रहे थे ठीक इसी वक्‍त योगेन्द्र समेत सभी भारतीय सैनिकों ने दुश्मन पर हमला कर दिया। इसमें कई पाकिस्‍तानी ढेर हो गए। एक बचे हुए दुश्‍मन ने भारतीय टुकड़ी की जानकारी दुश्‍मन को दे दी।

ले‍किन योगेंद्र आगे बढते रहे। वे बुरी तरह घायल हो चुके थे। उनका शरीर खून से लथपथ था और एक पैर टूट चुका था। जब दुश्‍मन सेना उनके पास पहुंची तो उन्‍होंने मरने का नाटक किया, जैसे ही पाकिस्‍तानी रि‍लेक्‍स हुए योगेंद्र सिंह ने हमला कर दि‍या। मशीनगन, हैंड ग्रैनेड जो हाथ लगा उससे हमला करते चले गए। इस दौरान उनके सीने में करीब 15 गोलियां धंस चुकी थी। उन्‍हें लग रहा था कि उनके पास बेहद कम समय बचा है यही सोचकर वे दुश्‍मनों को गि‍राते जा रहे थे। योगेंद्र के हमले में कई पाकिस्‍तानी सैनिक ढेर हो गए।

उसके बाद यादव ने अपने दो साथी सैनिकों के साथ दूसरे बंकर पर हमला किया और हाथ से हाथ की लड़ाई में चार पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या की। अतः प्लाटून टाइगर हिल पर काबिज होने में सफल रही।

भारतीय सैनि‍क समझ रहे थे कि वे शहीद हो चुके हैं, लेकिन जब दूसरी तरफ से गोलाबारी की आवाजें कम हुई तो वे पहाड़ी से खि‍सककर नीचे आ गए। नीचे उनकी हालत देखकर पूरी भारतीय टुकड़ी हैरान थी। अस्‍पताल ले जाने से पहले उन्‍होंने पाकिस्‍तानी सेना की संख्‍या,लोकेशन और रणनीति‍ समेत कई जानकारियां अपने साथि‍यों को दीं, जि‍सके बाद भारतीय टुकड़ी ने पाकिस्‍तानि‍यों पर हमला कर टाइगर हिल पर ति‍रंगा फहरा दिया। अपने इस अभूतपूर्व और अद्वितीय पराक्रम के कारण योगेंद्र सिंह यादव को टाइगर हिल का टाइगर कहा जाता है ।

युद्ध में योगेंद्र इतने ज्यादा घायल हो चुके थे कि उन्हें ठीक होने में कई महीने लग गए। ठीक होने के बाद उन्‍होंने 18 ग्रेनेडियर्स में देश की सेवा की।

जान की बाजी लगाकर है दुश्मनों की 17 गोलियां जेल कर भी अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए कार्यक्रम युद्ध में सामरिक टाइगर हिल चोटी फतह करने में अहम भूमिका निभाने वाले योगेंद्र सिंह यादव जी को भारत के राष्ट्रपति द्वारा परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव परमवीर चक्र पाने वाले देश के सबसे युवा सैनिक हैं । वह कौन बनेगा करोड़पति ( K.B.C. )शो में अमिताभ बच्चन के विशेष आमंत्रण पर अपने साथी परमवीर चक्र विजेता सूबेदार संजीव कुमार के साथ शामिल हुए और जीती गई पूरी धनराशि आर्मी वेलफेयर फंड में दान कर दी । देश सेवा के लिए वर्ष 2014 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के सर्वोच्च पुरस्कार यश भारती से सम्मानित किया गया ।

ऐसे ही कुछ स्टोरी Black Tiger Movie  में आ सकती है आप फिल्म के लिए कितने एक्साइटेड हैं हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं हम फिर मिलेंगे ऐसी ही एक और नई Movie की कहानी के साथ तब तक के लिए नमस्कार ।

Ritik Tiwari

 

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