1985 का IB का jasoosi कांड!
सितम्बर 1984 की बात है. इंदिरा की मृत्यु से ठीक एक महीना पहले. अमेरिका के अखबारों में एक खबर चली. जिसका हल्ला-गुल्ला भारत और पाकिस्तान, दोनों जगह हुआ. खबर थी कि भारत कहूता में अटैक की योजना बना रहा है. अख़बार के अनुसार इसकी चर्चा US सीनेट कमिटी की एक मीटिंग में हुई थी. इस दौरान पाकिस्तान के विदेश मंत्री साहिबजादा याकूब ख़ान भी वाशिंगटन में मौजूद थे. जैसा कि लाज़िमी था भारतीय इंटेलिजेन्स की आंख याकूब के इस दौरे पर लगी हुई थी.
भारतीय एजंसियों को साफ़ समझ आया कि कहीं ना कहीं से खुफिया जानकारी पाकिस्तान और अमेरिका तक पहुंच रही थी. इस दौरान कुछ और भी अजीब सा हो रहा था. भारत के डिफ़ेंस ऑफ़िसर जब रक्षा हथियारों की डील के लिए विदेश जाते. तो वहां उन्हें इस बात पर अचरज होता कि विदेशी रक्षा कंपनियों को भारत की डिफ़ेंस ज़रूरत की कुछ ज़्यादा ही जानकारी थी. ख़ासकर फ़्रांस में. जबकि ये सब जानकारी बहुत ऊंचे लेवल पर सीक्रेट रखी जाती थी.
तीसरी घटना थी श्रीलंका को लेकर. श्रीलंका सरकार के पास ऐसी रिपोर्ट पहुंच रही थी कि भारत अलगाववादी गुरिल्ला संगठनों को रॉ के माध्यम से तमिलनाडु में ट्रेनिंग दे रहा है. ये सब बातें एक ही तरफ़ इशारा कर रही थी. कहीं बहुत ऊंचे सोर्स से सीक्रेट जानकारी लीक हो रही थी. असली सवाल था कि ये सब हो कैसे रहा था. और कौन था इसके पीछे? इसके पीछे थे कुमार नारायण।
6 साल आर्मी पोस्टल सर्विस में बतौर हवलदार नौकरी की. आजादी के बाद विदेश मंत्रालय में स्टेनोग्राफर बन गया. इस दौरान नारायण एक साल चीन में भी पोस्टेड रहा। इसके बाद 1960 तक कुमार नारायण ने फाइनेंस और डिफ़ेंस मिनिस्ट्री में अलग-अलग पदों पर नौकरी की. और 1960 में सरकारी नौकरी छोड़ कर प्राइवेट नौकरी जॉइन कर ली. एक कम्पनी से जुड़ा. कम्पनी का नाम था, SLM मानेकलाल इंडस्ट्रीज़. जो मुम्बई में स्थित थी. नारायण को दिल्ली में काम का ज़िम्मा मिला।
चूंकि नारायण खुद ही क़ेंद्र सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों में काम कर चुका था. इसलिए बहुत से नौकरशाहों और अफ़सरों से उनकी दोस्ती थी. कम्पनी का दफ़्तर सरकारी बिल्डिंग्स के आसपास ही था. इसलिए काम ख़त्म हो जाने के बाद 16 हेली रोड स्थित कम्पनी ऑफ़िस में रोज़ पुराने दोस्त मिलते. वहां जाम खड़काए जाते. और गप्पें होती. पर्सनल और प्रोफेशनल को अलग रखने का दौर न था. ऑफ़िस की बात होती तो सरकारी अफ़सर कुछ टिप भी दे देते. सरकार कहां और कैसे खर्च करने वाली है. आदि जानकारी नारायण को मिल जाती. इससे नारायण को कम्पनी के लिए बिज़नेस हासिल करने में मदद मिलती.
धीरे-धीरे ये मुलाक़ातें थोड़ा प्रोफेशनल होने लगी. दोस्त अपने साथ सरकारी काग़ज़ात लाते. बदले में दोस्तों को नारायण जानी वॉकर ब्लैक लेबल पिलाया करता. जो तब आसानी से मिलती नहीं थी. गप्पों के बीच में नारायण का एक आदमी आता. सरकारी काग़ज़ात ऑफ़िस से बाहर ले जाए जाते. फोटोस्टेट की जाती. शराब का दौर ख़त्म होता, और सभी दोस्त यार अपने अपने घर को रवाना हो जाते, बदले में कुमार नारायण के hth lagta tha, खुफिया जरूरी कागजात।
1970 तक यूं ही चलता रहा. उसके बाद SLM मानेकलाल कम्पनी का बिजनेस धीरे-धीरे बड़ा हुआ. और सोवियत संघ और ईस्टर्न ब्लॉक तक फैल गया. नारायण का पुराना नेटवर्क अब और काम आने वाला था. जो उसने और फैलाया. और डिफ़ेंस मिनिस्ट्री, PM ऑफ़िस, और यहां तक कि प्रेसिडेंट ऑफ़िस के लोगों के बीच भी अपनी पैठ बना ली. दोस्तों की बीच मुलाक़ातें अब पार्टियों में बदलने लगी. ख़ुफ़िया दस्तावेज़ों का रेट अभी भी वही था. एक ब्लैक लेबल. और 100 रुपए. इसके बाद नारायण के पास सरकारी दस्तावेज़ों का ऐसा ढेर लगा, इनमे थे, 6 तरह के अलग-अलग ख़ुफ़िया दस्तावेज. जिसमें लिखा होता था, ऑफिशियल सर्कुलेशन, रेस्ट्रिक्टेड सर्कुलेशन, कॉन्फिडेंशियल: सीक्रेट; टॉप सीक्रेट: फॉर यॉर आईज, और नॉट टू गो आउट ऑफ़ ऑफिस. इनमें भारत के परमाणु प्रोग्राम, मिलिट्री उपग्रह, सरकारी इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम. डिफ़ेंस प्लानिंग. डिफ़ेंस एयरक्राफ़्ट की ख़रीद-फ़रोख़्त से जुड़ी जानकारी, पॉलिसी की काग़ज़, RAW के काग़ज़ात, IB के काग़ज़. ये सब शामिल थे. इसके अलावा फ़ॉरेन पॉलिसी से जुड़े काग़ज़. भारत की आंतरिक सुरक्षा से जुड़े कागज़. चीन और पाकिस्तान से जुड़े कागज़. ये सब नारायण को मिल रहे थे. नारायण कम्यूनिकेशन इंक्रिप्शन कोड की कॉपी भी मुहैया कराता था. जिससे भारत के मिलिट्री और डिप्लोमेटिक कम्यूनिकेशन को डिसाइफ़र किया जा सकता था.
इससे नारायण ने करोड़ों की सम्पत्ति और दिल्ली में फार्म हाउस जोड़े. नारायण के यहां से ये काग़ज़ जाते थे पूर्वी यूरोप. वहां दो बिज़नेसमैन इन्हें आगे बेचते. ये काग़ज़ ईस्टर्न ब्लॉक को मुहैया कराए जाते. जो तब सोवियत के प्रभाव में था. बदले में इन लोगों को वहां सरकारी कॉन्ट्रैक्ट मिलते।
1980 के बाद भारत, फ़्रांस और ब्रिटेन से रक्षा ख़रीद करने लगा था. और छोटी से छोटी जानकारी भी टेंडर डालने में बड़े काम की साबित हो सकती थी.
1980 के आसपास जब IB के खुद के दस्तावेज लीक होने शुरू हुए तो उन्होंने तहक़ीक़ात करना शुरू किया. 1982 में इंदिरा ने भी निर्देश दिया कि PM और प्रेसिडेंट ऑफ़िस से जुड़े सेक्रेटरी और उनके असिस्टेंट्स की स्क्रीनिंग में अतिरिक्त सावधानी बरती जाए. 1984 तक IB को इस खेल से जुड़े बड़े खिलाड़ियों का नाम पता चला. ।
नारायण ने IB से हुई पूछताछ में 30 नौकरशाहों का नाम लिया. इसके अलावा उसने बताया कि कैसे मानेकवाल कम्पनी को उसके ज़रिए ईस्ट जर्मनी और पोलेंड में करोड़ों की डील मिली थी. 5 महीने चली तहक़ीक़ात के बाद 19 लोगों पर FIR दर्ज की गई.
इनमें 16 नौकरशाह थे. जिनमें शामिल थे, रक्षा मंत्रालय में निजी सचिव पी गोपालन, राजीव गांधी के निजी सचिव पीसी अलेक्जेंडर के तीन निजी सचिव, मानेकलाल कंपनी में नारायण के बॉस योगेश टी मानेकलाल; पीएमओ में निदेशक एन एस श्री रमन और वरिष्ठ प्रशासन अधिकारी आर पी डांग.
17 साल तक ये मामला कोर्ट में घिसता रहा. जिसके बाद जुलाई 2002 में इस केस में 13 लोगों को सजा सुनाई गई. मानेकलाल कम्पनी के मालिक योगेश को 14 साल कारावास की सजा मिली. इसके अलावा 12 पूर्व अधिकारियों को 12 साल की क़ैद हुई. जिनमें 4 PMO ऑफ़िस से और 4 डिफ़ेंस ऑफ़िस से जुड़े थे. नारायण को सजा मिलती, इससे पहले ही 2000 में उसकी मौत हो गई.।
Jaya Bhardwaj