13 जनवरी 1978,जब operation blue star चलाया गया था जिसमे भारतीय सेना द्वारा 1 से 8 जून 1984 को अमृतसर (पंजाब, भारत) स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर को ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया था और उसी साल में हरियाणा के रोहतक में मेजर मोहित का जन्म हुआ था और मेज़र मोहित के परिवार में सभी army में थे और मेजर mohit ने भी अपनी family की इसी परंपरा को आगे निभाया।मेजर मोहित शर्मा ने न सिर्फ अपनी ड्यूटी को निभाया बल्कि आखिरी दम तक अपनी रेजीमेंट का गौरव बनाए रखा था।नेशनल डिफेंस एकेडमी से पास आउट होने के बाद मेजर मोहित 11 दिसंबर 1999 को ,जब भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता की कोशिशों के बीच कारगिल में भारत और पाकिस्तान की सेना में फिर टकराव पैदा हो गया था और इसमें पाकिस्तान की करारी हार हुई थी ,तभी Indian military academy से पासआउट हुए और पहला कमीशन 5 मद्रास में मिला. पहली पोस्टिंग हैदराबाद थी और यहां से उन्हें कश्मीर में 38 राष्ट्रीय राइफल्स के साथ तैनात किया गया. मेजर मोहित ने आतंकियों को बताया था कि साल 2001,जब indian parliament पर attack हुआ था उसी वक़्त के दौरान में उनके भाई को भारतीय सुरक्षाबलों ने मार दिया था और अब उन्हें अपने भाई की मौत का बदला लेना है. मेजर ने उनसे कहा कि बदला लेने के लिए उन्हें आतंकियों की मदद चाहिए होगी. मेजर मोहित ने दोनों आतंकियों को बताया था कि उनकी प्लानिंग आर्मी चेकप्वाइंट पर हमला करने की है और इसके लिए उन्होंने सारा ग्राउंडवर्क भी कर लिया था.
मेजर मोहित को अपने साथियों पर खतरे का अंदेशा हो गया था और इसके बाद उन्होंने आगे बढ़ाकर चार्ज संभाला. मेजर मोहित ने दो और आतंकियों को ढेर किया और इसी दौरान वह शहीद हो गए. मेजर मोहित शर्मा ने हिजबुल के दो आतंकियों के साथ संपर्क बना लिया था जिनके नाम थे अबु तोरारा और अबु सबजार और इसी दौरान उन्होंने अपना नाम इफ्तिखार भट रखा था. मेजर मोहित ने उन्हें इतना भरोसे में ले लिया था कि जब उन्होंने आतंकियों के सामने सेना के काफिले पर हमले की योजना बताई तो आतंकियों ने उनकी बात पर यकीन कर लिया था. मेजर मोहित इन आतंकियों के साथ शोपियां में अज्ञात जगह पर एक छोटे से कमरे में रहते थे.बहादुर पैरा स्पेशल फोर्सेज के ऑफिसर ने आतंकियों का भरोसा जीतने के लिए उन्हें हाथ से तैयार मैप्स तक दिखाए थे. आतंकी अक्सर उनसे यह भी पूछते थे कि वह आखिर कौन हैं लेकिन हर बार मेजर मोहित उन्हें चकमा देने में कामयाब हो जाते थे. आतंकियों ने तय किया कि वह मेजर मोहित की मदद करेंगे. हिजबुल आतंकियों को मेजर मोहित ने बताया कि वह कई हफ्तों तक अंडरग्राउंड हो जाएंगे ताकि हमले के लिए हथियार और बाकी साजो-सामान जुटा सकें. मेजर मोहित ने यह भी कहा कि वह अपने गांव तब तक वापस नहीं जाएंगे जब तक आर्मी चेक प्वाइंट पर हमला नहीं कर लेंगे. तोरारा और सबजार ने मेजर मोहित के लिए ग्रेनेड्स की खेप इकट्ठा की और तीन और आतंकियों का इंतजाम पास के गांव से किया.तोरारा को मेजर मोहित पर दोबारा शक हुआ और इस पर मेजर ने जवाब दिया, ‘अगर तुम्हें कोई शक है तो मुझे मार दो.’ मेजर मोहित ने अपनी एके-47 जमीन पर गिरा दी. उन्होंने आगे कहा, ‘तुम ये नहीं कर सकते हो अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है तो. इसलिए तुम्हारे पास मुझे मारने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है.’ तोरारा यह सुनकर सोच में पड़ गया और उसने सबजार की तरफ देखा. दोनों एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे और उन्होंने अपने हथियार रख दिए थे. इसी समय मेजर मोहित ने अपनी 9 एमएम की पिस्तौल को लोड किया और दोनों आतंकियों को देखते ही देखते ढेर कर दिया. मेजर मोहित ने पाकिस्तान की सरजमीं पर आतंकियों को ढेर किया था.
मोहित शर्मा 21 मार्च 2009 को नॉर्थ कश्मीर के कुपवाड़ा में शहीद हो गए थे. मेजर मोहित ब्रावो असॉल्ट टीम को लीड कर रहे थे और वह 1 पैरा स्पेशल फोर्स के कमांडो थे. मेजर मोहित ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों को मौत के घाट उतारा था.मोहित को जंगलों में कुछ आतंकियों के छिपे होने की इंटेलीजेंस मिली थी जो घुसपैठ की कोशिशें कर रहे थे. मेजर मोहित ने पूरे ऑपरेशन की प्लानिंग की और अपनी कमांडो टीम को लीड किया. तीनों तरफ से आतंकी फायरिंग कर रहे थे और मेजर मोहित बिना डरे अपनी टीम को आगे बढ़ने के लिए कहते रहे. फायरिंग इतनी जबर्दस्त थी कि चार कमांडो तुरंत ही उसकी चपेट में आ गए थे. मेजर मोहित ने अपनी सुरक्षा पर जरा भी ध्यान नहीं दिया और वह रेंगते हुए अपने साथियों तक पहुंचे और उनकी जान बचाई. बिना सोचे-समझे उन्होंने आतंकियों पर ग्रेनेड फेंके और दो आतंकी वहीं ढेर हो गए. इसी दौरान मेजर मोहित के सीने में एक गोली लग गई. इसके बाद भी वह रुके नहीं और अपने कमांडोज को बुरी तरह घायल होने के बाद निर्देश देते रहे थे।
Soldier-2 JYOTI ARORA