साल 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई सत्र में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नाम दिया गया था। 16 अगस्त 1942 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वाहन पर भारत से फिरंगीयों को खदेड़ने का बिगुल बज चुका था। जिसके बाद देशभर के युवाओं ने ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से एक साथ आंदोलन छेड़ दिया। इस आंदोलन में सीवान जिले का एकलौता गांव “बंगरा” के 30 युवाओं ने अंग्रेजों की ईट से ईट बजा कर रख दी थी।
इस आंदोलन में 7 क्रांतिकारी शहीद हो गए थे। आज भी सारण कमिश्नरी के सीवान, छपरा,गोपालगंज में करीब सौ साल के जीवित स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह आज़ादी की लड़ाई की यादें ताज़ा कर देते है। मुंशी सिंह बताते हैं कि महाराजगंज उस समय आजादी के दीवानों का एक अड्डा हुआ करता था। यहां से ही सारी रणनीति तैयार की जाती थी। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद,बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्व.महामाया प्रसाद सिन्हा सहित कई बड़े-बड़े नेता देश की आजादी के लिए अलख जगाते थे। वह बताते है कि आजादी के दीवाने शहीद फुलेना प्रसाद,देवशरण सिंह,चंद्रमा प्रसाद,इंदर साह समेत कुल 7 स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की आहुति दी थी।
साल 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई सत्र में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नाम दिया गया था।
16 अगस्त 1942 को स्कूल की 5 वीं घंटी चल रही थी। इसी दौरान 2 कांग्रेसी नेता विद्यालय पहुंचते ही कहा कि मुंबई में महात्मा गांधी गिरफ्तार कर लिए गए है। इसके बाद उनके रगों में आग भड़क उठी। मुंशी सिंह अपने सहयोगी साथियों के साथ महाराजगंज थाना को फूंकने के लिए पहुंच गए। उस समय फुलेना प्रसाद,उनकी पत्नी तारा देवी, देव शरण सिंह के साथ कुछ कांग्रेसी मौजूद थे। थाना के करीब पहुंचते ही पहले से बंदुक लेकर तैयार फिरंगियों ने क्रांतिकारियों पर अंधाधुन गोलियां बरसानी शुरू कर दी। इसमें फुलेना प्रसाद को 9 गोलियां लगी और उनकी मौत हो गई। उसके बाद एक के बाद एक देवशरण सिंह को गोली लगी। आक्रोश इतना भड़क उठा था कि लोगों की भीड़ थाने की तरफ दौड़ उठी और उन्होंने थाने में आग लगा दी। और अपने देश का झंडा फहरा दिया।
स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह बताते हैं कि देश की आजादी के बाद 1952 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के लिए वह कोलकाता चले गए थे। उस समय ब्रितानी शासन स्तर पर हुए पत्राचार में आजाद भारत की पुलिस ने उन्हें देश के लिए खतरा बताते हुए 4 साल के लिए जेल में बंद कर दिया था। रिहाई के बाद जब वह गांव लौटे तो महाराजगंज सिहौता बंगरा हाई स्कूल में शिक्षक नियुक्त हुए।
30 स्वतंत्रता सेनानियों में जीवित मात्र इकलौते स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह बताते हैं कि सरकार से मिल रही पेंशन के रूपों से दो पोतियों को चिकित्सक तथा एक पोते को इंजीनियर की शिक्षा दिलाई है। उनके 3 पुत्र में पुत्र की मृत्यु हो चुकी है। उन्हें स्वतंत्रता सेनानी पेंशन के तौर पर 34 हजार, राज्य सरकार से पेंशन के तौर पर 5 हजार तथा शिक्षक पेंशन के 48 हजार मिलते है। राष्ट्रपति से सम्मानित भी हो चुके हैं. तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 9 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम ‘एट होम’ में राष्ट्रपति ने देश भर से आए स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया था। जिसमें बिहार से कुल 6 स्वतंत्रता सेनानियों में मुंशी सिंह भी मौजूद थे। इसमें मुंशी सिंह को राष्ट्रपति ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया था। ऐसे ही आम पर बहादुर सेनानी की कहानी RRR 2 की हो सकती है क्योंकि Rajamouli ने साफ़ कह दिया है कि RRR 2 की कहानी का RRR की कहानी से कोई वास्ता नहीं है. तो आपको क्या लगता है RRR 2 की कहानी buzz create कर पाएगी? हमें comments में Jarur बताये. हम फिर मिलेंगे एक नई post के साथ, तब तक खुश रहें और सैफ रहें. Bye
Manisha Jain