captain vikram batra बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर जिले के घुग्गर में हुआ था और इसी साल भारत ने पहली बार पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया था ।उनके पिता का नाम G.M batra और माता का नाम kamalakanta batra है।1996 में Vikram ने indian military academy में दाखिला लिया।दिसंबर 1997, जब calcutta में देश की पहली science city स्थापित की गई थी ,जब दिल्ली के उपहार सिनेमा में आग लगने से 59 लोगो की मौत हो गई थी और उसी साल में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। मार्च 1998 में, उन्हें यंग ऑफिसर्स कोर्स पूरा करने के लिए इन्फैंट्री स्कूल में पांच महीने के लिए मध्य प्रदेश भेजा गया था।
1 जून 1999 ,जिसको “कारगिल विजय दिवस” के रूप में मनाया जाता है ,जिसमे भारत विजय हुआ था ,उन्हीं दिनों को उनकी टुकड़ी को करगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया।
पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद vikram को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की ज़िम्मेदारी कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को मिली। captain batra अपनी कंपनी के साथ घूमकर पूर्व दिशा की ओर से इस क्षेत्र की तरफ बढ़े और बिना शत्रु को भनक लगे हुए नजदीक पहुंच गए। उन्होंने अपने साथियों के साथ दुश्मन के ठिकानों पर सीधे आक्रमण कर दिया। सबसे आगे रहकर दस्ते का नेतृत्व करते हुए उन्होनें बड़ी निडरता से शत्रु पर धावा बोल दिया और आमने-सामने की लड़ाई में चार दुश्मनों को मार डाला।बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद vikram batra ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। captain batra जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष य दिल मांगे मोर” कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। इसी दौरान Vikram के कोड नाम “shershah” के साथ ही उन्हें “कारगिल का शेर” की भी उपाधि दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ vikram batra और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आ गयी।
इसके बाद भारतीय सेना ने 7 जुलाई 1999 को, प्वाइंट 4875 चोटी को कब्ज़े में लेने के लिए अभियान शुरू किया। इसके लिए भी captain vikram और उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी सौंपी गई। यह एक ऐसी मुश्किल जगह थी जहां दोनों और खड़ी ढलान थी और उसी एकमात्र रास्ते पर दुश्मनों ने नाकाबंदी कर रखी थी। इस अभियान को पूरा करने के लिए captain vikram बत्रा एक संर्कीण पठार के पास से दुश्मन ठिकानों पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।युद्ध के दौरान आमने-सामने की भीषण लड़ाई में उन्होंने पांच दुश्मन सैनिकों को पॉइंट ब्लैक रेंज में मार गिराया। इस दौरान वे दुश्मन स्नाइपर के निशाने पर आ गए और गंभीर रूप से जख्मी हो गए। इसके बाद भी वे रेंगते हुए दुश्मनों पर ग्रेनेड फेंक कर मौत के घाट उतार दिया। इस युद्ध में उन्होंने सबसे आगे रहकर लगभग एक असंभव कार्य को पूरा कर दिखाया। उन्होंने जान की परवाह भी नहीं की और इस अभियान को दुश्मनों की भारी गोलीबारी में भी पूरा किया, लेकिन बुरी तरह घायल होने के कारण “captain vikram batra” शहीद हो गए।
कारगिल युद्ध के दौरान vikram batra बत्रा को काफी गहरे जख्म आए थे उसके बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और रेंगते हुए शत्रु के ऊपर बड़े ग्रेनेड फेंक दिए। vikram द्वारा फेंके गए ग्रेनेड की वजह से शत्रुओं का पूरा इलाका नष्ट हो गया था और सभी शत्रु मारे गए थे। अपने गहरे जख्मों के बाद भी विक्रम ने हार नहीं मानी और अपनी सेना की टुकड़ी को आगे बढ़कर शत्रुओं पर प्रहार करने की प्रेरणा दी लेकिन अपने गहरे जख्मों की वजह से और भारी गोलीबारी की वजह से उन्होंने युद्ध क्षेत्र में उसी स्थान पर अपने प्राण त्याग दिए। इस तरह वे वीरगति को प्राप्त हुए परंतु अपनी आखिरी सांस तक देश के लिए लड़ते रहे।
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