20 fake encounters से डरे मजदूर!
एक आदमी अपने घर के खुले हुए gate से झाँक रहा था, ये देखने के लिए कि कही आस पास कोई जासूस तो नही है। क्या एक पेड़ की किमत इंसान की जान से ज्यादा है और वो मन ही मन खुद से ही फुसफुसाया, क्योंकी उसकी बात सुनने के लिए कोई नही था। बाहर, लोग गंदगी वाली गलियों में घूम रहे थे और दोपहर की हवा उबलते चावल की smell से भरी थी।
देवाराकोंडा आंध्र प्रदेश का गाँव पहले बाकी और गाँव की तरह लग रहा था, लेकिन इसके rural areas के अनहोनी कम ही होती थी।
लेकिन जब से राज्य पुलिस ने 7 अप्रैल को 20 लाल चंदन smugglers को उसके घर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर शुरू होने वाले घने जंगल में मार दिया गया, तब से देवराकोंडा में silence और डर का माहौल छा गया है। गाँव के लोगों का कहना है, “उन्हें अब उनके पालतु जानवर जैसे गाय,भैसों को वापस लाने और बोरवेल यानी गहरा कुँआ जिसे जमीन में ड्रील किया गया है, को चालू करने के लिए रात में बाहर निकलने से डर लगता हैं, क्योंकि वो नहीं जानते कि कब पुलिस आएगी और उन्हें smuggling के लिए उठाकर ले जाएगी।”
आंध्र प्रदेश से लाल चंदन की smuggling हाल ही में National headlines में नजर आई है।
लेकिन सालों से, देवरकोंडा और शेषचलम जंगल के आसपास के दर्जनों बाकी के गांव, जो दुनिया में लाल चंदन के primary source हैं, चीन और जापान के wealthy खरीदारों द्वारा चलाए जा रहे बेहद profitable trade से connected थे। चीन और जापान वो देश है, जो पेड़ के गहरे रंग को महत्व देते हैं। और इस लाल चंदन की लकड़ी के पैसे को elections में use किया गया, officials को रिश्वत देने के लिए किया गया, और हजारों local लोगों को लकड़हारे या low level middlemen के रूप में भर्ती किया गया। लेकिन 7 अप्रैल को हुए encounters को fake encounter बताया गया है। जिससे लोगों का डर और ज्यादा बढ गया और अगर गाँव वालों से पुछा जाए कि वो smugglers कौन है तो उनका कहना है कि वो सब लोग smugglers हैं। वहाँ के 99.9% लोग इस धंधे में शामिल थे। लेकिन उनमें से कोई भी इसे accept नहीं करेगा और पुलिस सिर्फ किसानों के पीछे जाती है और बड़े लोगों को अकेला छोड़ देती है। तो ये कैसा justice है?
हैदराबाद में एक इंजीनिर ने कहा कि देवकारकोंडा से शेषचलेम जंगल के दूसरे छोर पर एक शहर डक्कली में, कई young लड़कों ने लकड़ी की smuggling को एक profitable employment opportunity के रूप में देखा है। उन्होंने ये हिसाब भी लगाया है कि उनके गाँव में हर 100 लोगों के लिए, 30 लकड़हारे बन गए,बाकी पाँच जो कि आमतौर पर अमीर, ज़मींदार होते है, वो middlemen बन गए, जो इस operation को चलाते है।
इनमें से कुछ लोग तो एटीएम भी नहीं चला सकते थे और फिर भी वो कमा रहे थे और पैसा खर्च नही बल्कि पैसा उडा कर रह रहे थे। ये लोग तिरुपति के bar में बैठते थे और 2,000 रुपये की टिप छोड़ देते थे। इतना ही नही एक नई कार पर 15 लाख रुपये नकद छोड़ देते हैं और एक रुपये की Xerox पर दस रुपये खर्च करते थे।
कोई भी इनकी lifestyle देखकर इनकी ही तरह बनना चाहेगा, इसलिए जो परिवार अपने बच्चों को इस business में शामिल होने से बचाना चाहते थे, उन्हें अपने बच्चों को दूर शहरों में पढने के लिए भेजना पडा।
जैसा कि कहा जाता है, तीर्थनगरी तिरुपति में सभी को उनका payment मिलता है, जो कि normal wages से double होती था। Smuggling Ring से जुड़े लोगों की केवल एक छोटी संख्या – और उन लोगों का एक छोटा सा हिस्सा जो मजदूर नहीं हैं – वो कभी ही police के हाथों पकडे गए है। फिर भी limited arrest record में काफी सारे लोग नजर आते है।
Firmer forest officer, जो कि अब anti-wildlife smuggling group के head है, उनका कहना है कि smuggling के चलते हुए बहुत समय हो गया है। लेकिन 2005 के बाद से, इनका smuggling pattern organised हो गया है। अब ये थोड़ा dirty और कई बार काफी violent हो गया है, और इसमें कुछ बड़े businessmen भी शामिल होने लगे हैं।
जहाँ चंदन smuggler वीरप्पन ने जंगल के अंदर से अपने साम्राज्य पर शासन किया, लाल चंदन के smugglers ने अब ज्यादा franchised approach को अपनाया है, जिसमें सबसे नीचे लकड़हारे होते हैं, इसके बाद local middlemen होते हैं जो जंगल से कटाई और transport की देखरेख करते हैं, और फिर बड़े लोग जो इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भेजते हैं।
एक international smuggler के order के बाद, एक local midflemen लकड़हारों की एक टीम को जंगल में भेजता है, ताकि जितनी लकड़ियां चाहिए, वो वक्त पर लाई जा सके।
Pushpa फिल्म जो totally, लाल चंदन की smuggling के आगे पिछे घुमती है, हो सकता है pushpa 2 में हमें encounter के बाद लोगों के डर को देखने और महसुस करने का मौका मिल जाए।