कैसे बना Rajput Regiment?
राजपूत रेजिमेंट Indian Army की सबसे पुरानी Infantry Regiments में से एक है, जिसकी शुरुआत साल 1778 में बंगाल की 24वीं रेजिमेंट के साथ हुई थी। इस रेजिमेंट की पहली बटालियन (battalion) की formation, 1798 में हुई थी। भारत को british empire से independence मिलने से पहले, इस रेजिमेंट में राजपूत और पंजाबी मुसलमान शामिल थे। 1947 के बाद, रेजिमेंट ने और groups से भी भर्ती करना शुरू कर दिया, हालांकि रेजिमेंट 50% राजपूतों से बना था। दुसरे groups में ब्राह्मणों और जाटों के साथ गुर्जरों का एक बड़ा हिस्सा था। अब, रेजिमेंट में mainly राजपूत community के soldier ज्यादा और ब्राह्मण, जाट, मुस्लिम और अहीर जैसे community के सैनिक कम शामिल हैं।
राजपूत रेजिमेंटल प्रतीक चिन्ह दो तरफ से तीन अशोक के पत्तों से घिरे राजपूती कटारों की एक जोड़ी है। यह अशोक के lion capital से बने है और नीचे “द राजपूत रेजिमेंट” शब्द लिखे है।
राजपूत regiment की बहादुरी और देश के लिए बलिदान की कई ऐसी कहानियां सामने आई है, जिन्हें सुनकर हमारा उनके लिए respect और भी बढ जाएगा। ये Sino-Indian War, 1962 की बात है, जिसमें
दो राजपूत बटालियनों, यानी teams ने 1962 में North East Frontier Agency (NEFA) में कुछ भारी लड़ाई देखी।
Q962 की शुरूआत में 2 राजपूत, लेफ्टिनेंट कर्नल M.S. Rikh की command पर, Walong में थे और 7 infantry brigade के हिस्से के रूप में 10 अक्टूबर तक Namka chu नदी के तट पर चले गए थे। नमका चू नदी के साथ-साथ बारह मील के मोर्चे पर ब्रिगेड को फैलाया गया था, जिसमें एक side से दूसरी side तक मार्चिंग का समय पांच दिन था।
उनकी defence साइट को corps कमांडर, जो की आमतौर पर लेफ्टिनेंट जनरल होता है, ने खुद ही चुनकर उन पर थोप दिया था। वो Corps Commander उस वक्त Military chain of command की जगह directly political authorities के साथ काम कर रहा था।
बटालियन को नमका चू के साथ जल्दबाजी में defensive positions बनानी पडी।। बटालियन को एक trackless जंगल में तैनात किया गया था, जहाँ कोई खच्चर भी नहीं जा सकता था और कोई civil population नहीं रहती थी, जो उनकी मदद कर सके। इन बर्फीली चोटियों पर सर्दियों के कपड़ों की कमी ने soldiers की कठिनाइयों को और बढ़ा दिया। जब तक लड़ाई शुरू हुई, तब तक चीनियों ने area की सभी ऊँची और strong चोटियों पर कब्जा कर लिया था। राजपूत पर एक बड़ा हमला हुआ और set की गई उस fierce लड़ाई में, बटालियन ने कई दृढ़ हमलों को नाकाम कर दिया।
जल्द ही दोनों ओर से positions को घेर लिया गया और बटालियन को खत्म कर दिया गया। लेकिन fight उनके खिलाफ होने के बावजूद 2 राजपूत के जवानों ने हार नहीं मानी और end तक लड़ते रहे।
कई पलटन और कंपनियों में call of duty के beyond इस वीरता की कहानी को फिर से re-enact किया गया। एक temporarily bridge पर, Nk. रोशन सिंह का section अपने पद पर तब तक डटा रहा, जब तक कि एक-एक आदमी की मौत नहीं हो गई।
दशरथ सिंह की पलटन को सात आदमियों तक कम कर दिया गया था और तीन चीनी हमलों को विफल करने के लिए उनके गोला-बारूद को खत्म कर दिया था। जब चौथा चीनी हमला हुआ तो राजपूतों ने bayonets fix कर ली। Bayonets यानी एक blade जिसे rifle के मुंह पर लगाया जाता है, ताकी hand to hand fighting में उसका use किया जा सके। Hand to hand लड़ाई में चार लोग मारे गए और गंभीर रूप से घायल तीन लोगों को पकड़ लिया गया।
तीन चीनी हमलों को रोकने के बाद जमादार बोस की पलटन में केवल 10 आदमी बचे थे। उसने भी bayonets लगाईं और हमला करना शुरू किया और उस दिन bose भी अपने most of soldiers के साथ मारा गया।
मेजर B.K. पंत की कंपनी चीनी हमलों की तीन लहरों के खिलाफ डटी रही और काफी serious injuries हुई। पंत खुद पेट और पैरों में जख्मी थे, फिर भी उन्होंने अपने आदमियों को lead करना और उन्हें focused और motivated करना जारी रखा। और उन्हें end तक लड़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे।
चीनी, यह भांपते हुए कि 2 राजपूत की poaition लेने में उनकी problem मेजर पंत है, तो मशीन-बंदूक की आग का एक गोला उनकी position पर fire किया गया, जिससे वो तुरंत मर गए। लेकिन उनके अंतिम शब्द थे “राजपूत रेजिमेंट का हर आदमी, अपने देश के लिए मरने के लिए पैदा हुआ है।
भगवान ने इस छोटी सी नदी को चुना है जिसके लिए तुम्हे मरना होगा। खड़े हो जाओ और सच्चे राजपूतों की तरह लड़ो।” और फिर वो राजपूत युद्ध नारा, “बजरंग बली की जय” चिल्लाते हुए गर्व से शहीद हुए। मेजर पंत की 112 आदमियों की कंपनी में 82 लोगों मारे गए और बाकी घायल हुए।
B, C या D कंपनियों के एक भी व्यक्ति को किसी भी वीरता पदक से सम्मानित नहीं किया गया, क्योंकि citations लिखने के लिए कोई नहीं बचा था। क्योंकि ऐसा कोई अधिकारी या जेसीओ नहीं था, जो मारा ना गया हो या seriouly injured ना हो और जिसे बंदी ना बना लिया गया हो।
जब CO, लेफ्टिनेंट कर्नल एम.एस. रिख को रिहा कर दिया गया, तब उन्होंने citations लिखे, लेकिन भारत सरकार और ministry of defence ने बहाने बनाए और उन पर कोई ध्यान नहीं दिया।
नमका चू में लड़ने वालों के लिए एक स्मारक बनाया गया है, जो एक Tin shed है, जिसमें से नाम अभी भी गायब हैं और जो लोग वहां मौजूद नहीं थे, सिर्फ उनके नाम रखे गए हैं। इस war में 2 राजपूतों के 513 रैंकों में से 282 मारे गए और 81 घायल हुए और बंदी बना लिए गए। जब उन्होंने बाहर निकलने की कोशिश की तो 90 अन्य को बंदी बना लिया गया।