इन्हें विश्व-चैंपियन स्टैनिस्लॉस ज़ैविस्को के साथ हुए मैच के लिए बहुत जाना जाना जाता है। ज़ैविस्को के साथ इनका मैच 10 सितंबर 1910 निर्धारित हुआ था। ज़ैविस्को को तब विश्वप्रसिद्ध पहलवानों में से एक माना जाता था। उन्होंने उन गामा पहलवान कि यह चुनौती स्वीकार कर ली, जिन्हें फ्रैंक गॉच जैसा महान पहलवान भी हरा ना सका । जिस दिन गामा पहलवान और ज़़ैविस्को का मैच हुआ, वह दिन टूर्नामेंट के फाइनल्स का दिन था । इस मैच की इनाम- राशि थी ढाई सौ यूरो और जॉन बुल बेल्ट। केवल 1 मिनट के अंदर ही गामा पहलवान ने ज़़ैविस्को को धराशाई कर दिया, वह भी पूरे 2 घंटे और 35 मिनट के लिए ।उसने अपना रक्षणार्थ दांव लगाया जिससे कि वह गामा पहलवान इस शक्ति को रोक सके, परंतु अंत में यह 3 घंटे तक चलने वाला मैच बराबरी पर ही रोक दिया गया और इससे ज़ैविस्को के फैन बेहद निराश हुए। फिर भी ज़़ैविस्को का नाम उन पहलवानों में से लिया जाता है जो गामा पहलवान के द्वारा नहीं हराया जा सके। उन दोनों का एक और बार मैच होने वाला था जिसकी तिथि 17 सितंबर 1910 निर्धारित की गई थी परंतु ज़ैविस्को किसी कारणवश मैच में नहीं आ पाए ।इस कारण से गामा पहलवान को ही उस मैच का विजेता घोषित कर दिया गया और उन्हें इनाम राशि के साथ-साथ जॉन बुल बेल्ट के साथ भी सम्मानित किया गया। इस सम्मान के साथ ही उन्हें रुस्तम-ए-ज़माना के खिताब से भी नवाज़ा गया । परंतु इस सम्मान की खासियत यह थी कि इस मैच में उन्हें बिना लड़े ही विजय मिली।
इंग्लैंड से लौटने के तुरंत बाद ही गामा पहलवान का सामना रहीम बक्श सुल्तानी वाला से अलाहाबाद में हुआ । काफी देर तक चलने वाले इस द्वंद्व में अंततः गामा पहलवान को विजय प्राप्त हुई और साथ ही साथ रुस्तम-ए-हिंद का खिताब भी जीत लिया ।जीवन में बहुत समय बाद एक साक्षात्कार में जब उनसे यह पूछा गया कि गामा पहलवान को सबसे मुश्किल टक्कर किसने दी है तो उन्होंने कहा “रहीम बक्श सुल्तानीवाला” ।रहीम बक्श सुल्तानीवाला पर विजय प्राप्त करने के बाद गामा पहलवान ने पहलवान पंडित बिद्दु (जो कि उस समय भारत के जाने-माने पहलवानों में से एक थे) का सामना किया और उन पर विजय प्राप्त की।उसके बाद वेल्स के राजकुमार भारत के दौरे पर आए और उन्होंने गामा पहलवान को चांदी की एक गदा भेंट की ।जब last तक गामा पहलवान को चुनौती देने वाला कोई भी पहलवान नहीं बचा तो यह घोषणा हुई की गामा और ज़ैविस्को फिर एक बार आमना- सामना करेंगे । उनकी मुलाकात 1928 में पटियाला में हुई। अखाड़े में आते ही ज़ैविस्को ने अपना सुदृढ़ शरीर और बड़ी-बड़ी मांसपेशियां दिखाई, परंतु गामा पहलवान पहले से काफी दुबले-पतले लग रहे थे । फिर भी गामा पहलवान ने केवल 1 मिनट में ही ज़ैविस्को को धराशाई कर दिया जिससे उन्हें भारतीय-विश्व स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता का विजयी घोषित कर दिया गया और ज़ैविस्को ने भी उन्हें बाघ कहकर संबोधित किया।जब तक गामा पहलवान 48 वर्ष के हुए तब तक वह भारत के महान पहलवानों में से एक गिने जाने लगे।
ज़ैविस्को पर विजय प्राप्त करने के बाद गामा ने जेज़ पीटरसन पर 1929 को विजय प्राप्त की। यह द्वंद डेढ़ मिनट चला। यह अंतिम द्वंद था जो गामा ने अपने करियर में लड़ा । सन 1940 को हैदराबाद के निज़ाम ने गामा को निमंत्रण दिया जिसमें गामा ने सभी पहलवानों को हरा दिया। निज़ाम ने उसके बाद पहलवान बलराम हीरामण सिंह यादव को गामा से सामना करने के लिए भेजा, जोकि स्वयं कभी भी नहीं हारा था। यह द्वंद बहुत समय तक चला परंतु इसका कोई भी निष्कर्ष नहीं निकला। बलराम हीरामण सिंह यादव उन पहलवानों में से था जिनका सामना करना गामा के लिए भी बहुत मुश्किल था।भारत की स्वतंत्रता के बाद 1947 को गामा पहलवान पाकिस्तान की तरफ चले गए। जिस समय हिंदू-मुसलमान भाई आपस में लड़ रहे थे, तब भीड़ से कितने ही हिंदू भाइयों को गामा ने बचाया था । अंततः सन 1952 तक गामा ने संन्यास ले लिया। संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपने भतीजे भोलू पहलवान को पहलवानी सिखाई, जिन्होंने लगभग 20 साल तक पाकिस्तान में होने वाले सभी कुश्ती प्रतियोगिताओं में भाग लिया।
जाने – माने कराटे योद्धा और अभिनेता ब्रूस ली गामा पहलवान के बहुत बड़े फैन थे । वे प्रायः अखबार में उन पर लिखे हुए लेख पढ़ा करते थे कि किस तरह से गामा पहलवान ने अपनी शक्ति का विस्तार किया, अपने शरीर को सुदृढ़ बनाया और किस तरह से उन्होंने अपनी शक्ति में वृद्धि की। इन सभी को ब्रूस ली ने भी अपने जीवन में अपनाया और वह भी कसरत के समय दंड बैठक लगाया करते थे। गामा पहलवान की 100 किलो की हस्ली आज भी पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान में संभाल कर, सुरक्षित रूप से रखी हुई है। 22 मई 2022 को, सर्च इंजन गूगल ने गामा को डूडल के साथ उनकी 144वीं जयंती पर याद किया। गूगल ने टिप्पणी की: “गामा की विरासत आधुनिक समय के सेनानियों को प्रेरित करती है। यहां तक कि ब्रूसली भी एक प्रसिद्ध प्रशंसक हैं और गामा की कंडीशनिंग के पहलुओं को अपने स्वयं के प्रशिक्षण दिनचर्या में शामिल करते हैं।