Sikh Soldier ने करी muslims की मदद?
सरजीत सिंह चौधरी, एक सिख सैनिक जिसने मुस्लिम refugees को पाकिस्तान में safely पहुँचने में मदद की।
1947 वो साल है, जिसमें हम british सेना से आजाद हुए थे। और वो आजादी दो धर्म, दो भाईचारे और दो देशो के बेरहमी से बटने के बाद हमें मिली थी।
सरजीत सिंह चौधरी, एक सिक्ख जिसने जब रेडियो पर ये खबर सुनी कि उसके देश में इंसान इंयान को काट रहा है, लाशे बिछी है और लोगो तो घरो के साथ जिंदा जलाया जा रहा है, तो उस soldier की तो पैरे तले से जमीन ही खिसक गई थी।
उस समय, वह 2,000 मील दूर था, इराक में ब्रिटिश सेना के हिस्से के रूप में काम कर रहा था। और ये खबर कि partition हो रहा था, इससे सरजीत को अपने परिवार की चिंता हो रही थी।
Sarjit अपने परिवार के लोगो को वहां दंगो में इकेले नही छोड सकता था, इसलिए उसने खुद को वापस जाने के लिए Apply किया और सितंबर 1947 तक वो india में वापस आ गया था।
लेकिन यहां की हालत देखकर sarjit सोचता है कि जब उसने देश छोड़ा था, तब भारत एक peaceful देश था। लेकिन जब वो वापस आया, तो यहां बस खून खराबा था।
उनके hometown Kahuta, जो इब pakistn का हिस्सा है, वहां March में ही हत्याए शुरू हो गई थी। और वहां जाकर बाद में उन्हे पता चला कि उनकी मां पर हमला किया गया था। लेकिन सरजीत की माँ एक बहादुर महिला थी और जो बंदूक चलाना जानती थी। और अपना बचाव करना जानती थी। इसलिए वो वहां से भागने और उसके भाई-बहनों को भारत लाने में सफल रही।
चौधरी उस वक्त 24 साल के थे, जब उन्हे पंजाब पुलिस के लिए service देने के लिए appoint किया गया था और इस area में लगातार हो रहे violence को रोकने के की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
सरदीत ने एक मरे हुए आदमी के शरीर को ट्रेन से फेंकते हुए देखा। और एक बार, जब वो दिल्ली से जालंधर के रास्ते में, दोराहा नहर पर रुके, तो देखा कि सारा पानी खून से लाल हो गया था।
वहां से 12 किलोमीटर दूर तोहा खालसा नाम के एक गांव में महिलाएं अपनी इज्जत बचाने के लिए खुदने ही डूबकर अपनी जान दी। जब Army को उनकी bidies मिली, तो उनका पूरा शरीर सूजा हुआ था और body उपर surface पर आ गई थी। और वो वक्त ऐसा आ गया था, जहाँ पुरुष अपनी पत्नियों और बेटियों को खुद ही गोली मार रहे थे, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर हमलावर उन्हें ले गए तो क्या होगा।
और दो बार ऐसा हुआ, जब वो border पार मुस्लिम refugees के साथ गए। वो सब अपने गाँवों में इकट्ठे हुए थे, अपना सारा सामान बैलगाड़ियों पर बाँध दिया था। वहाँ लगभग 40 गाड़ियाँ थीं, लगभग सौ लोग थे। और वो सब पाकिस्तान जाना चाहते थे। उन्हें सभी को जाने का दुख जरूर था, लेकिन हालात कुछ ऐसे थे कि वो चाहकर भी यहां नही रह सकते थे।
इसलिए सरजीत ने उनकी बात को समझा और वो उन्हे safely border पास pakistam तक छोडकर आए।
दुसरी तरफ जिस वक्त ये मार काट चल रहा था , वही एक लड़की, सुदर्शना कुमारी ने समझ लिया था कि अगर जिंदा रहना है, तो चुप रहना होगा। सामने चाहे कुछ भी हो , उसे आवाज नही निकालनी है।
उसके शहर, शेखूपुरा में एक छत, जहाँ कुमारी, उसकी माँ और बहुत सारे लोग लेटे थे, और नीचे सड़कों पर हो रही मार काट को देख रहे थे। कुमारी जानती थी कि उन्हे अपना सिर नहीं दिखा सकते, अगर अपना सिर दिखाया, मतलब सर कट जाएगा।
कुमारी का परिवार हिंदू है; वे एक ऐसी जगह पर रह रहे थे, जो जल्द ही muslim majority pakistan बनने वाला था। जिसकी वजह से उसके जैसे परिवारों को वहां से भागना पड़ा। इसलिए कुमारी ने छुपने के बाद कोई आवाज़ नहीं की। तब भी नहीं, जब तीन दिन तक बिना खाए पेट में दर्द महसूस हुआ। ना ही तब, जब उसने अपने कुत्ते टॉम को उसके लिए भौंकते हुए सुना।
छत के छेद से, कुमारी ने देखा कि उसके चाचा और उसके परिवार को गली में कुछ लोगो ने मार डाला था। कुमारी ने कहा कि उनके चाचा एक टैक्स कलेक्टर थे, जिन्होंने अपने सूटकेस को cash से भरने की गलती की थी। क्योकी उस वक्त वो फालतू का वजन बना, जिसने उनके परिवार को काफी तेज चलने से रोक दिया था। उनकी चाची ने सफेद trousers पहनी हुई थी, वो रो रही थी, ‘मेरे बेटी को मत मारो, मेरे बेटी को मत मारो।’ फिर उन्होंने उसकी बेटी को उससे ले लिया। और एक ही झटके में एक साल की बच्ची, वही उनके सामने मर गई।
कुमारी का परिवार बिखर गया। उसका शहर राख में बदल गया था। लाशो का ढेर लगा था। कई दिनों तक, वो और उसकी मां वही छिपती रहीं, क्योेकी वो लोग हिंदुओं को मारने और लूटने के लिए ढूंढ रहे थे।
और जब आखिर में Attackers ने उन्हें ढुंढ लिया, जहां वो शहर के लगभग 300 अौर लोगों के साथ एक छिपे हुए थे।
शहरवासियों को एक खेल के मैदान में ले जाया गया, जहां पिछले दिन के बंदियों को तेल नें भिगोकर जिंदा जला दिया गया था। लाशें सड़कों पर बिखरी पड़ी हैं।
कुमारी जानती थी उनको साथ भी यही होने वाला है लेकिन मारे जाने से पहले, एक cease-fire की announcement की गई थी।
ट्रक शहरों से गांव में आए, तारा सिंह, एक famous political और religious leader, जिसे independence struggles में उनके योगदान के लिए जाना जाता है, वो एक मेगाफोन से attackers पर चिल्ला रहे थे।
और शायद क्योकी Tara singh एक respected person थे, तो उनके intervene की वजह से kumari और बाकी 300 लोगो की जान बची।