पिछली वीडियो में राम adipurush क्यों कहलाये यह बताने के बाद इस वीडियो में adipurush के मायने होने वाले हैं.
अत्रि को राक्षसों से मुक्ति दिलाने के बाद वे दंडकारण्य क्षेत्र में चले गए, दण्डकारण्य मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ में स्थित है. इसका मतलब दण्डक + अरण्य = दण्डक वन है , यह प्राचीन भारत का एक क्षेत्र था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है।
‘दंडकारण्य’ का सामान्य अर्थ ‘दंड देने वाला जंगल’ होना चाहिए। लोगों द्वारा कहा जाता है कि ये जंगल कई भयानक जंतुओं और देश निकाला दिए गए लोगों का घर था। यह परम्परा आज भी कायम है। आज भी ऐसा लगता है कि यहां के लोगों को देश निकाला दिया गया है। खूबसूरती, संसाधनों और आदिवासी संस्कृति से सराबोर होने के बावजूद ये जंगल ‘माओवाद प्रभावित’ क्षेत्र के नाम से जाने जाते हैं इन जंगलों में गोंड जैसे आदिवासी समुदाय रहते हैं. और पहले भी जब राम यहां रहने आए तो आदिवासियों की बहुलता थी। यहां राम आदिवासियों को बाणासुर के अत्याचार से मुक्त कराने के बाद वे 10 वर्षों तक आदिवासियों के बीच ही रहे। यहीं पर उनकी जटायु से मुलाकात हुई थी, जो उनका मित्र था। जब रावण सीता को हरण करके ले गया था, तब सीता की खोज में राम का पहला सामना शबरी से हुआ था। इसके बाद वानर जाति के हनुमान और सुग्रीव से हुआ था.
इसी जंगल क्षेत्र में रहकर राम ने अखंड भारत के सभी दलितों को अपना बनाया और उनको श्रेष्ठ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शिक्षा दी। भारतीय राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र, अंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल, कर्नाटक सहित नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोक-संस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम इसीलिए जिंदा हैं। श्रीराम ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने धार्मिक आधार पर संपूर्ण अखंड भारत के दलित और आदिवासियों को एकजुट कर दिया था। इस संपूर्ण क्षेत्र के आदिवासियों में राम और हनुमान को सबसे ज्यादा पूजनीय इसीलिए ही माना जाता है क्योंकि उन्होंने उन्हें जीने का आशय समझाया. लेकिन ब्रिटिश काल में ईसाइयों ने भारत के इसी हिस्से में धर्म बदलने का आदोलन चलाया और राम को दलितों से काटने के लिए सभी तरह की साजिश की, जो आज भी जारी है।
लेकिन कई लोगों का यह मानना था कि राम भगवान नहीं सामान्य पुरुष है, जिन पर फिल्म बनाना बेवकूफी है, तो जब भी कोई अवतार जन्म लेता है तो उसके कुछ चिह्न या लक्षण होते हैं और उसके अवतार होने की गवाही देने वाला कोई होता है। राम ने जब जन्म लिया तो उनके चरणों में कमल के फूल अंकित थे, जैसा कि कृष्ण के चरणों में थे। राम के साथ हनुमान जैसा सर्वशक्तिमान देव का होना इस बात की सूचना है कि राम भगवान थे। रावण जैसा विद्वान और मायावी क्या एक सामान्य पुरुष के हाथों मारा जा सकता है? इन सबको छोड़ भी दें तो ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र ने इस बात की पुष्टि की कि राम सामान्य पुरुष नहीं, भगवान हैं और वह भी विष्णु के अवतार। और यह पहले राजा थे जिन्होंने हिन्दू धर्म की स्थापना की, जिन्होंने हिन्दू धर्म की नींव रखी. वैसे तो राम के काल में कोई ऊंचा या नीचा नहीं होता था। भगवान किसी जातिवर्ग के नहीं होते और न ही वे मनुष्य जाति में भेद करते हैं। रामायण काल में जातिगत जो भिन्नता थी वह मनुष्यों के रंग, रूप और आकार को लेकर थी। जैसे वानर, ऋक्ष, रक्ष और किरात जातियां मनुष्य से भिन्न थी। केवट, शबरी, जटायु, सुग्रीव और संपाति आदि से राम के संबंध दर्शाते हैं कि उस काल में ऐसी कोई जातिगत भावना नहीं थी, जो आज हमें देखने को मिलती है। हनुमानजी के गुरु मतंग ऋषि आज की जातिगत व्यवस्था अनुसार तो दलित ही कहलाएंगे?
श्रीराम ने 14 वर्ष वन में रहकर भारतभर में भ्रमण कर भारतीय आदिवासी, जनजाति, पहाड़ी और समुद्री लोगों के बीच सत्य, प्रेम, मर्यादा और सेवा का संदेश फैलाया। यही कारण रहा की श्रीराम का जब रावण से युद्ध हुआ तो सभी तरह की वनवासी और आदिवासी जातियों ने श्रीराम का साथ दिया। जिसकी वजह से राम को adipurush कहा जाने लगा.
लेकिन सवाल यह उठता है कि श्रीराम द्वारा जल समाधि लेने की घटना को हिन्दू दलितों का धर्म बदलने वाले आलोचकों ने आत्महत्या करना बताया। मध्यकाल में ऐसे बहुत से साधु हुए हैं जिन्होंने जिंदा रहते हुए सभी के सामने धीरे-धीरे देह छोड़ दी और फिर उनकी समाधि बनाई गई। राजस्थान के महान संत बाबा रामदेव (रामापीर) ने जिंदा समाधि ले ली थी, तो क्या हम यह कहें कि उन्होंने आत्महत्या कर ली?
अयोध्या आगमन के बाद राम ने कई वर्षों तक अयोध्या का राजपाट संभाला और इसके बाद गुरु वशिष्ठ व ब्रह्मा ने उनको संसार से मुक्त हो जाने का आदेश दिया। एक घटना के बाद उन्होंने जल समाधि ले ली थी।
सरयू नदी में श्रीराम ने जल समाधि ले ली थी।रामायण की कथा में सरयू अयोध्या से होकर बहती है जिसे दशरथ की राजधानी और राम की जन्भूमि माना जाता है। सरयू नदी (अन्य नाम घाघरा, सरजू, शारदा) हिमालय से निकलकर उत्तरी भारत के गंगा मैदान में बहने वाली नदी है जो बलिया और छपरा के बीच में गंगा में मिल जाती है। सरयू नदी की प्रमुख सहायक नदी राप्ती है जो इसमें उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरहज नामक स्थान पर मिलती है। इस क्षेत्र का प्रमुख नगर गोरखपुर इसी राप्ती नदी के तट पर स्थित है और राप्ती तंत्र की अन्य नदियाँ आमी, जाह्नवी इत्यादि हैं जिनका जल अंततः सरयू में जाता है। बाराबंकी, बहरामघाट, बहराइच, सीतापुर, गोंडा, फैजाबाद,
अयोध्या, टान्डा, राजेसुल्तानपुर, दोहरीघाट, बलिया आदि शहर इस नदी के तट पर स्थित हैं।
अश्विन पूर्णिमा के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अयोध्या से सटे फैजाबाद शहर के सरयू किनारे जल समाधि लेकर महाप्रयाण किया। श्रीराम ने सभी की उपस्थिति में ब्रह्म मुहूर्त में सरयू नदी की ओर चल दिये. उनके पीछे उनके परिवार के सदस्य भरत, शत्रुघ्न, उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति भी थे। ॐ का उच्चारण करते हुए वे सरयू के जल में एक -एक पग आगे बढ़ते गए और जल उनके हृदय और बाकी अंगों को छूता हुआ सिर के उपर चढ़ गया।
यमराज यह जानते थे कि भगवान की इच्छा के बिना भगवान न तो स्वयं शरीर का त्याग करेंगे और न शेषनाग के अंश अवतार लक्ष्मण जी। ऐसे में यमराज ने एक चाल चली। एक दिन यमराज किसी विषय पर बात करने भगवान राम के पास आ पहुंचे। भगवान राम ने जब यमराज से आने का कारण पूछा तो यमराज ने कहा कि आपसे कुछ जरूरी बातें करनी है।
भगवान राम यमराज को अपने कमरे में ले गए। यमराज ने कहा कि मैं चाहता हूं कि जब तक मेरी और आपकी बात हो उस बीच कोई इस कक्ष में नहीं आए। यमराज ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर कोई बीच में आ जाता है तो आप उसे मृत्युदंड देंगे। भगवान राम ने यमराज की बात मान ली और यह सोचकर कि लक्ष्मण उनके सबसे आज्ञाकारी हैं इसलिए उन्होंने लक्ष्मण जी को पहरे पर बैठा दिया। यमराज और राम जी की बात जब चल रही थी उसी समय दुर्वसा ऋषि अयोध्या पहुंच गए और राम जी से तुरंत मिलने की इच्छा जताई। लक्ष्मण जी ने कहा कि भगवान राम अभी यमराज के साथ विशेष चर्चा कर रहे हैं। भगवान की आज्ञा है कि जब तक उनकी बात समाप्त नहीं हो जाए कोई उनके कक्ष में नहीं आए। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप कुछ समय प्रतीक्षा करें।
ऋषि दुर्वसा लक्ष्मण जी की बातों से क्रोधित हो गए और कहा कि अभी जाकर राम से कहो कि मैं उनसे मिलना चाहता हूं अन्यथा मैं पूरी अयोध्या को नष्ट होने का शाप दे दूंगा। लक्ष्मण जी ने सोचा कि उनके प्राणों से अधिक महत्व उनके राज्य और उसकी जनता का है इसलिए अपने प्राणों का मोह छोड़कर लक्ष्मण जी भगवान राम के कक्ष में चले गए। भगवान राम लक्ष्मण को सामने देखकर हैरान और परेशान हो गए। भगवान राम ने लक्ष्मण से पूछा कि यह जानते हुए भी कि इस समय कक्ष में प्रवेश करने वाले को मृत्युदंड दिया जाएगा, तुम मेरे कक्ष में क्यों आए हो।
लक्ष्मण जी ने कहा कि दुर्वसा ऋषि आपसे अभी मिलना चाहते हैं। उनके हठ के कारण मुझे अभी कक्ष में आना पड़ा है। राम जी यमराज से अपनी बात पूरी करके जल्दी से ऋषि दुर्वासा से मिलने पहुंचे. यमराज अपनी चाल में सफल हो चुके थे। राम जी से यमराज ने कहा कि आप अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्युदंड दीजिए। भगवान राम अपने वचन से मजबूर थे। रामजी सोच में थे कि अपने प्राणों से प्रिय भाई को कैसे मृत्युदंड दिया जाए।
राम जी ने अपने गुरू वशिष्ठ जी से इस विषय में बात की तो गुरू ने बताया कि अपनों का त्याग मृत्युदंड के समान ही होता है। इसलिए आप लक्ष्मण को अपने से दूर कर दीजिए यह उनके लिए मृत्युदंड के बराबर ही सजा होगी। जब राम जी ने लक्ष्मण को अपने से दूर जाने के लिए कहा तो लक्ष्मण जी ने कहा कि आपसे दूर जाकर तो मैं यूं भी मर जाऊंगा। इसलिए अब मेरे लिए उचित है कि मैं आपके वचन की लाज रखूं। लक्ष्मण जी भगवान राम को प्रणाम करके राजमहल से चल पड़े और सरयू नदी में जाकर जल समाधि ले ली। इस तरह राम और लक्ष्मण दोनों ने अपने-अपने वचनों और कर्तव्य का पालन किया। यह एक और कारण था जो राम जो आदिपुरुष बनाता है. इसलिए कहते ‘रघुकुल रिति सदा चलि आई। प्राण जाय पर वचन न जाई।
तो ऐसे जी कुछ और रहस्य को ओम rout अपनी फिल्म आदिपुरुष में बताने वाले हैं. आपको आज की post कैसी लगी हमे cometh में Jarur बताये. हम फिर मिलेंगे एक नई वीडियो के साथ, तब तक खुश रहें और सैफ रहें. Bye
Manisha Jain