Thumbnail title- desh प्रेम में लीन babu?
RRRR- Jyoti Arora
सन् 1984, 3 December को बिहार के सारण ज़िला ,जिसको अब सीवन के नाम से जाना जाता है ,जिसमें 1857 में स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह मशहूर और मजबूत “भोज-पुरी” के लिए प्रसिद्ध है, जो हमेशा अपने लडाकू भावना और शारीरिक धीरज के लिए famous रहा है, अधिकांश सेना और पुलिस कर्मचारी भोजपुरी थे और उसी ज़िले के जीरादेई नामक गाँव में Rajender prasad babu का जन्म हुआ था। उनके पिता महादेव sahay संस्कृत और फारसी languages के विद्वान थे एवं उनकी mother,”Kamleshwari devi” एक धर्मपरायण महिला थीं और उनके पूर्वज मूलरूप से कुआँगाँव, अमोढ़ा,”उतर प्रदेश” के निवासी थे। यह एक कायस्थ परिवार था। कुछ कायस्थ परिवार इस स्थान को छोड़ कर बलिया जा बसे थे। कुछ परिवारों को बलिया भी रास नहीं आया इसलिये वे वहाँ से बिहार के जिला सिवान के एक गाँव जीरादेई में जा बसे। इन परिवारों में कुछ पड़े लिखे लोग भी थे। इन्हीं परिवारों में rajendra prasad के पूर्वजों का परिवार भी था। जीरादेई के पास ही एक छोटी सी रियासत हुआ करती थी – हथुआ। चूँकि rajender के दादा पढ़े-लिखे थे, तो उन्हें हथुआ रियासत की दीवानी मिल गई। पच्चीस-तीस सालों तक वो उस रियासत के दीवान रहे। उन्होंने स्ख़ुद भी कुछ जमीन खरीद ली थी। और babu के पिता mahadev sahay इस जमींदारी की देखभाल किया करते थे। babu अपने पाँच भाई-बहनों में वे सबसे छोटे थे इसलिए पूरे परिवार में सबके प्यारे थे।उनके चाचा के कोई बच्चा नहीं थी इसलिए वे babu को अपने बेटे की तरह ही समझते थे। दादा, पिता और चाचा के लाड़-प्यार में ही rajendra babu का पालन-पोषण हुआ। दादी और माँ का भी उन पर पूर्ण प्रेम बरसता था।बचपन में राजेन्द्र बाबू जल्दी सो जाते थे और सुबह जल्दी उठ जाते थे। उठते ही माँ को भी जगा दिया करते और फिर उन्हें सोने ही नहीं देते थे। और माँ भी उन्हें रामायण महाभारत की कहानियाँ और भजन कीर्तन आदि रोजाना सुनाती थीं।
पाँच वर्ष के होते होते rajendra babu ने एक मौलवी साहब से फारसी में पढ़ना शुरू किया। उसके बाद वे अपनी early schooling के लिए छपरा के जिला स्कूल गए।Rajendra babu की शादी उस time के according बाल्यकाल में ही, लगभग 13 वर्ष की उम्र में, rajvanshi devi से हो गई थी और शादी के बाद भी उन्होंने पटना की टी० के० घोष academy से अपनी पढाई जारी रखी। उनका वैवाहिक जीवन बहुत सुखी रहा और उससे उनकी पढ़ाई और बाक़ी कामों अथवा में कोई रुकावट नहीं पड़ी।लेकिन वे जल्द ही जिला स्कूल छपरा चले गये और वहीं से 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने calcutta University का entrance exam दिया और उस exam में वो first आए थे ।सन् 1902 में उन्होंने calcutta के famous presidency college में दाखिला लिया। 1915 में उन्होंने स्वर्ण पद के साथ LL.M की परीक्षा पास की और बाद में law के field में ही उन्होंने डॉक्ट्रेट की उपाधि भी हासिल की। राजेन्द्र बाबू कानून की अपनी पढाई का अभ्यास भागलपुर, बिहार में किया करते थे।
यद्यपि राजेन्द्र बाबू की पढ़ाई फारसी और उर्दू से शुरू हुई थी और graduation में उन्होंने हिंदी ही ली। वे अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी व बंगाली भाषा और साहित्य से पूरी तरह परिचित थे तथा इन भाषाओं में सरलता lecture भी दे सकते थे। गुजराती का व्यावहारिक ज्ञान भी उन्हें था और L.LM के लिए हिन्दू कानून का उन्होंने संस्कृत ग्रंथों से ही अध्ययन किया था। हिन्दी के प्रति उनका अगाध प्रेम था। हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं जैसे भारत मित्र, भारतोदय, कमला आदि में उनके लेख छपते थे। उनके लिखे लेख काफ़ी interesting भी होते थे ।सन् 1912 ई. में जब अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन calcutta में हुआ तब वो एक committee के president भी बने थे। 1920 ई. में जब अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन का 10वाँ अधिवेशन पटना में हुआ तब भी वे प्रधान मन्त्री थे। 1923 ई. में जब सम्मेलन का अधिवेशन काकीनाडा में होने वाला था तब वे उसके अध्यक्ष मनोनीत हुए थे परन्तु अपनी बीमार के चलते वो वे उसमें उपस्थित न हो सके अतः उनका भाषण जमनालाल बजाज ने पढ़ा था। 1926 ई० में वे बिहार प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के और 1927 ई० में उत्तर प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति थे। हिन्दी में उनकी आत्मकथा बड़ी प्रसिद्ध पुस्तक है। अंग्रेजी में भी उन्होंने कुछ पुस्तकें लिखीं। उन्होंने हिन्दी के ‘देश’ और अंग्रेजी के “patna law weekly” समाचार पत्र का सम्पादन भी किया था।
उन्होंने अपने career की शुरुआत एक lawyer के रूप में की थू और एक समारोह में जाते समय गान्धीजी ने उनसे अपने स्वयं सेवकों के साथ आने का अनुरोध किया था क्योंकि rajender prasad महात्मा गाँधी की निष्ठा, समर्पण एवं साहस से बहुत प्रभावित हुए और 1928 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर का पदत्याग कर दिया और उसी वक़्त “the independence of India leaf “ की भारत में स्थापना हुई। लाला लाजपात राय की हत्या का बदला लेने के लिए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने उन पर लाठी चार्ज करने वाले ब्रिटिश पुलिस अधिकारी John sanders की हत्या कर दी और उन्हीं दिनों में पहली बोलती फिल्म “melody of love “ को Calcutta में दिखाया गया।गाँधीजी ने जब विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार की अपील की थी तो उन्होंने अपने बेटे मृत्युंजय parsad जो एक अत्यंत मेधावी छात्र थे, उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय से हटाकर बिहार विद्यापीठ में दाखिल करवाया था। उन्होंने “ search light” और “ desh” जैसी पत्रिकाओं में इस विषय पर बहुत से लेख लिखे थे और इन अखबारों के लिए अक्सर वे धन जुटाने का काम भी करते थे। 1914 में जब इसी दिन प्रथम विश्व युद्ध की लड़ाई हुई थी और बिहार और बंगाल मे आई बाढ़ में उन्होंने काफी बढ़चढ़ कर सेवा-कार्य किया था। बिहार के 1934 के भूकंप के समय राजेन्द्र बाबू कारावास में थे और उसी समय भारतीय communist party को गैरकानूनी घोषित किया गया। जेल से दो वर्ष में छूटने के पश्चात वे भूकम्प पीड़ितों के लिए धन जुटाने में तन-मन से जुट गये और उन्होंने वायसराय के जुटाये धन से कहीं अधिक अपने व्यक्तिगत प्रयासों से जमा किया। सिंध और क्वेटा के भूकम्प के समय भी उन्होंने कई राहत-शिविरों का इंतजाम अपने हाथों मे लिया था।1934 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गये। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने पर कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार उन्होंने एक बार पुन: 1939 में सँभाला था।
भारत के स्वतन्त्र होने के बाद संविधान लागू होने पर उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति का पदभार सँभाला। राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांTग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतन्त्र रूप से कार्य करते रहे। हिन्दू अधिनियम पारित करते समय उन्होंने काफी कड़ा रुख अपनाया था। राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कई ऐसे दृष्टान्त छोड़े जो बाद में उनके under काम करने वालों के लिए एक example बन गए।भारतीय संविधान के लागू होने से एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया, लेकिन वे भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद ही दाह संस्कार में भाग लेने गये। 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के पश्चात उन्होंने 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की। अवकाश ले लेने के बाद ही उन्हें भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया।
राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा बड़ी सरल थी। उनके चेहरे मोहरे को देखकर पता ही नहीं लगता था कि वे इतने प्रतिभासम्पन्न और उच्च व्यक्तित्ववाले इंसान थे और देखने में वे सामान्य किसान जैसे लगते थे।allahabad university द्वारा उन्हें Doctor of law की सम्मानित उपाधि प्रदान करते समय कहा गया था – “बाबू राजेंद्रप्रसाद ने अपने जीवन में सरल व नि:स्वार्थ सेवा का जीता जागता उदाहरण प्रस्तुत किया है। जब वकील के व्यवसाय में चरम उत्कर्ष की उपलब्धि दूर नहीं रह गई थी, इन्हें राष्ट्रीय कार्य के लिए आह्वान मिला और उन्होंने व्यक्तिगत भावी उन्नति की सभी संभावनाओं को त्यागकर गाँवों में गरीबों तथा ग़रीब किसानों के बीच काम करना स्वीकार किया।”सरोजिनी नायडू ने उनके बारे में लिखा था – “उनकी असाधारण प्रतिभा, उनके स्वभाव का अनोखा माधुर्य, उनके चरित्र की विशालता और अति त्याग के गुण ने शायद उन्हें हमारे सभी नेताओं से अधिक व्यापक और व्यक्तिगत रूप से प्रिय बना दिया है। गाँधी जी के निकटतम शिष्यों में उनका वही स्थान है जो ईसा मसीह के निकट सेंट जॉन का था।”
सितम्बर 1962 में अवकाश ग्रहण करते ही उनकी पत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया। मृत्यु के एक महीने पहले अपने पति को सम्बोधित पत्र में राजवंशी देवी ने लिखा था – “मुझे लगता है मेरा अन्त निकट है, कुछ करने की शक्ति का अन्त, सम्पूर्ण अस्तित्व का अन्त।” राम! राम!! शब्दों के उच्चारण के साथ उनका अन्त 28 फरवरी 1963 को पटना के सदाक़त आश्रम में हुआ।उनकी वंशावली को जीवित रखने का कार्य उनके प्रपौत्र अशोक जाहन्वी प्रसाद कर रहे हैं। वे पेशे से एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त वैज्ञानिक एवं मनोचिकित्सक हैं। उन्होंने बाई-पोलर डिसऑर्डर की चिकित्सा में लीथियम के सुरक्षित विकल्प के रूप में सोडियम वैलप्रोरेट की खोज की थी। अशोक जी प्famous academy “american academy of art and science” सदस्य भी हैं।अपने जीवन के आख़िरी महीने बिताने के लिये उन्होंने पटना के निकट सदाकत आश्रम चुना। यहाँ पर 28 फ़रवरी 1963 में उनके जीवन की कहानी समाप्त हुई।कहानी थी श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों और परम्परा की चट्टान सदृश्य आदर्शों की। हम सभी को इन पर गर्व है और ये सदा राष्ट्र को प्रेरणा देते रहेंगे।
RRRR- JYOTI ARORA
This is a another story of our famous and well known India’s first prime minister and a freedom fighter because he gave all his contribution to our country and towards our country and this story can be seen in RRRR soon because all the connection between these are the same so keep watching and stay tuned.