पढ़ाई के साथ-साथ पहलवानी के गुर सीखे और नाम कमाया। किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है इस लेडी पहलवान के संघर्ष की स्टोरी। भारतीय महिला पहलवान रिद्धिमा के संघर्ष का सफर लुधियाना से शुरू होता है। इस युवा पहलवान का सपना तो स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पटियाला कैंप से प्रशिक्षण लेकर भारत के लिए खेलने का था, लेकिन उसकी प्रतिभा को यहां के कोच और अधिकारी पहचान नहीं पाए। यहां दाखिला नहीं हुआ, फिर वह ऑस्ट्रेलिया गईं और ऑस्ट्रेलियाई टीम की ओर से खेलते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। नवंबर 2016 में रिद्धिमा की प्रतिभा तब दुनिया के सामने आई जब उसने ऑस्ट्रेलिया में हुए मेलबर्न कप के सीनियर वर्ग के मुकाबले में स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया।
रिद्धिमा ने दूसरी कक्षा पास करने के साथ ही राष्ट्रीय जूनियर वर्ग में स्वर्ण अपने नाम कर लिया था। पांचवीं कक्षा में उन्होंने जिले की ओर से खेलते हुए एक बार फिर स्वर्ण पदक हासिल किया। रिद्धिमा के पिता हरीश शर्मा साइकिल स्पेयर पार्ट्स का काम करते हैं। साल 2013 में एमडी सुकांत त्रिवेदी ने उनकी ऑस्ट्रेलिया जाकर पढ़ाई जारी रखने में मदद की। ऑस्ट्रेलिया के होम्स ग्लैन सरकारी कॉलेज में दाखिले के बाद रिद्धिमा को यूनिवर्सिटी ऑफ कैनबरा में आगे की पढ़ाई करनी थी। एक साल तक रिद्धिमा ने अपना कोर्स किया।
इसी दौरान उनकी मुलाकात कुश्ती की महिला कोच आमीन याकूबी से हुई। याकूबी ने रिद्धिमा को ‘एक्सट्रीम क्लब’ ज्वाइन कराया। जिम व डाइट के लिए समस्या पैसे की थी इसलिए पार्ट टाइम नौकरी कर ली। साल 2015 में उन्होंने कैनबरा कप में 55 किग्रा जूनियर व सीनियर कुश्ती में एक साथ गोल्ड अपने नाम किया। रिद्धिमा की नजर साल 2018 में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों पर है। हालांकि उन्हें खेलना तो ऑस्ट्रेलिया की तरफ से है लेकिन उनके पास वहां की नागरिकता नहीं है।
नियमानुसार उन्हें वहां की नागरिकता हासिल करनी होगी। दिन में कॉलेज में पढ़ाई, शाम को नौकरी और रात तक कुश्ती की प्रैक्टिस अभी भी जारी है। महिलाएं आज घर के काम करने से लेकर विज्ञान के क्षेत्र में भी अपनी अहम भागीदारी निभा रही हैं। इस आधुनिक युग में महिलाएं अपने सारे बंधनों को तोड़कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधे
मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। शिक्षा की बदौलत भारतीय महिलाओं ने साहित्य, विज्ञान, चिकित्सा और खेल में अपनी अलग अलग पहचान बनाई है। वहीं बात अगर खेल के क्षेत्र को लेकर करें तो भारत की महिला खिलाड़ियों ने दुनिया के सामने अपना लौहा मनवाया है। वह आज घरेलू खेलों से आगे बढ़कर दुनिया भर में पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं। वह हर खेल में बढ़चढ़ कर भाग ले रही हैं। सीमित संसाधनों का रोना रोने के बजाय अपनी मेहनत और संघर्ष से उन सभी चुनौतियों को पार कर रही हैं जो उनके रास्ते में बाधा बन कर खड़ी हो रही हैं।
एक बार रिधिमा एक जगह ट्रेनिंग के लिए गई थी और वह उन्होन कुछ ऐसा महसस किया था
हिंदुस्तान में अब वैसी जगहें कम हैं जहां औरतें नहीं जा सकतीं. कुश्ती सीखने की जगह जिसे महाराष्ट्र में तालीम कहते हैं, उनमें से एक है. मैडम लेडीज़ नाट अलाउड’ 26 साल के दुबले-पतले अमोल साठे ने उस समय रोकते हुए कहा जब मैं तालीम में जाने की कोशिश कर रही थी जहां नौजवान लड़के कुश्ती के दांव-पेंच सीखते हैं. साठे ने कहा, “औरतें ध्यान भंग करती हैं इसीलिए उनका दूर रहना ही ठीक है
बड़े से अखाड़े में कुछ नौजवान पहलवान कसरत कर रहे थे. नंगे बदन केवल एक लंगोट में.
उनकी पसलियां तेल लगने से और चमक रही थीं. मेरी मौजूदगी से वे सब चौंक गए. थोड़ा शर्माते और झेंपते हुए पहलवानों की टोली लाल मिट्टी के गड्ढे में जा पंहुची जहां वे प्रैक्टिस करते हैं.
हनुमान की तस्वीरों से सजी दीवारों की पपड़ियां उखड़ रही हैं. कोई एसी, कोई फैन नहीं है.
प्रैक्टिस से पहले साठे के साथ दूसरे पहलवान भी तैयारी करते हैं. 200 दंड बैठक, कुछ और कसरत और फिर कुछ ही पल में हर कोई लाल मिट्टी से सना हुआ दिखता है.
ये कोई साधारण मिट्टी नहीं है. साठे बताते हैं कि इसमें मक्खन, कर्पूर , नींबू, चीनी, हल्दी और कई तरह की जड़ी-बूटी का इस्तेमाल होता है. अमोल मुस्कुरा कर कहते हैं, “इस मिट्टी से हमें ताकत मिलती है”. माटी-कुश्ती के नियम अंतरराष्ट्रीय कुश्ती से अलग होते हैं. इस कुश्ती में खेल ख़त्म होने की कोई सीमा नहीं होती है. ये एक मिनट से एक घंटे तक चल सकती है. जीतने की शर्त केवल ये है कि अपने विरोधी पहलवान को चित कर उसकी पीठ को ज़मीन पर टिका दिया हो.
अमोल बहुत फुर्तीले पहलवान हैं. मिनटों में वे अपने विरोधी को चित कर देते हैं.
अमोल ने कई राष्ट्रीय खिताब जीते हैं. पहलवानी के जरिए अमोल ने जाति के उस शिकंजे से ख़ुद को आज़ाद किया जिसमें रहते हुए उनकी सांस उखड़ रही थी.
अमोल अब अपनी पत्नी के साथ शहर में रहते हैं, दो कमरे के अच्छे से घर में.
गांव से शहर तक का सफर आसान नहीं रहा होगा.
उनके माता-पिता से मिलने हम सातारा ज़िले के मसौली गांव के लिए निकले. रिधिमा को आगे लड़ने की प्रेरणा यही से मिली और उनको अपना सफर शुरू किया एक खेल के तौर पर कुश्ती का भारत में समृद्ध इतिहास रहा है। उत्तर भारत के हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के अखाड़े कई दशकों तक देश के सर्वश्रेष्ठ पहलवानों को तैयार करने के लिए काफी प्रसिद्ध रहे हैं। बीते एक दशक में भारत में महिला कुश्ती में भी काफी सुधार देखा गया है। साक्षी मलिक, गीता फोगाट, बबीता फोगाट और विनेश फोगाट महिला कुश्ती की कुछ प्रसिद्ध पहलवानों में से एक हैं।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश की महिला पहलवानों का प्रदर्शन बेहद शानदार रहा है और इसी की वजह से उन्हें भारत में इस खेल के सितारों के रूप में स्थापित करने में मदद की है। भारतीय कुश्ती संघ एवं भारतीय ग्रिपलिंग कमेटी के राष्ट्रीय महासचिव पहलवान बिरजू शर्मा ने पहलवानों और अखाड़ा पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि कुश्ती का खेल भारतीय परंपराओं से जुड़ा है। यह एक ऐसा खेल है जो सैकड़ों वर्षों से खेल जा रहा है। आज के समय में कुश्ती का खेल युवाओं के लिए प्रेरणादायक भी है, क्योंकि नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर ग्रिपलिंग कुश्ती में अच्छा प्रदर्शन करने वाले युवाओं को सरकारी नौकरी के अवसर भी मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि ग्रिपेलिंग कुश्ती कमेटी के द्वारा जल्द ही युवा पहलवानों के लिए सरकारी नौकरियां भी निकाली जाएंगी। उन्होंने कुश्ती के खेल को साधने के साथ ही मन और दिमाग से खेलने के टिप्स भी पहलवानों को बताए।
ये अब पहले जितना नहीं रह गया आज महिलाएं कुश्ती में ही आना करियर बना रह हैं और कुश्ती के जो ऑर्गनाइजेशन गेन वो आदमी और औरत दोनों को ही एक समान अवसर दे रहे हैं कुछ लोगों के लिए ये एक आम करियर हो सकता है पर कुछ लोगों के लिए ये उनका सपना होता है एक सटत लगन और और आठ प्रयास का नतीजा सबकी आंखों में सम्मान और एक अदब वाली जिंदगी
पेशेवर बनने का मतलब केवल यह जानना नहीं है कि विरोधियों को कैसे नीचे गिराना है – इसके लिए दर्शकों पर काम करना और प्रशंसक आधार बनाना आवश्यक है। डब्ल्यूडब्ल्यूई सुपरस्टार विलियम रीगल ने जनवरी 2013 में ट्विटर पर महत्वाकांक्षी पहलवानों के लिए सलाह पोस्ट की, यह देखते हुए कि संचार और लोगों के कौशल होना महत्वपूर्ण है। प्रशंसकों के बिना पहलवान शायद ही कभी पेशेवर बनते हैं, क्योंकि अंततः उन्हें देखने की कोई मांग नहीं है। रीगल उद्योग में सबसे महान पहलवानों का अध्ययन करने के लिए पुरानी घटनाओं को देखने का सुझाव देते हैं।
पेशेवर पहलवानों के लिए प्रशिक्षण स्कूल की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह व्यापार सीखने और दरवाजे पर पैर रखने का एक आदर्श तरीका है। आम तौर पर, उम्मीदवारों को कम से कम 18 वर्ष का होना चाहिए और कुश्ती स्कूलों में स्वीकार किए जाने के लिए शारीरिक रूप से फिट होना चाहिए। हालाँकि, आवश्यकताएं और सामग्री स्कूल द्वारा भिन्न होती हैं। कुछ बच्चों से लेकर वयस्कों तक विभिन्न आयु समूहों के लिए कार्यक्रम पेश करते हैं, जैसे कि फ्लोरिडा के मिनेओला में वाइल्ड सामोन प्रो रेसलिंग ट्रेनिंग सेंटर। अन्य अनुभव के आधार पर प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
शीर्ष कुश्ती संगठन आमतौर पर उन पहलवानों की भर्ती करते हैं जो सबसे अधिक क्षमता दिखाते हैं और सबसे अधिक अनुभव रखते हैं, लेकिन हर किसी को कहीं न कहीं से शुरुआत करनी होती है। स्थानीय कुश्ती संगठन प्रदर्शन के अवसर प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, एलेनटाउन, पेन्सिलवेनिया में अल्टीमेट रेसलिंग एक्सपीरियंस, चुने हुए उम्मीदवारों को गारंटी देता है जो अपने कार्यक्रमों में प्रदर्शन करने का अवसर प्रशिक्षित और भुगतान करते हैं। एक बार आपके पास कम से कम एक वर्ष का पेशेवर अनुभव होने के बाद, आप अधिक व्यापक रूप से ज्ञात अंग के अवसरों की तलाश कर सकते हैं