Gadar 2

Ind pak war के बाद हुई dosti!

 

साल 1966 था। दिसंबर की ठंडी, और गीली दोपहर में, मोहन Prague Airport पर उतरा, जो पहले चेकोस्लोवाकिया (Czechoslovakia) की capital हुआ करता था, और जो अब चेक (Czech) Republic और स्लोवाकिया (Slovakia), दो देशों में बट गया है। मोहन अभी पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ से निकला ही था‌ यह उनकी पहली Abroad trip थी‌ और वो इससे पहले कभी किसी aircraft में बैठे भी नहीं थे। इसलिए बहुत ठंड और बेहद excited‌ के बाद उन्होंने पूरी तरह से टूटे हुए Airport के पार अपना रास्ता बनाया। इस Airport की मरम्मत नही की जा रही थी, क्योंकी कम्युनिस्ट शासन का दुनिया को impress करने के बजाय कही और एक shiny,‌नया Airport build करने का plan था।

Mohan उनकी news एजेंसी के साथ training के लिए 5 महीने की scholarship पर prague में आए थे। उनका institute एक villa में था, जिसे उनकी native language में ज़मेक कहा जाता है।

 

ये एक ठंडी   2 floors की  building थी और इससे रेलवे स्टेशन दो मील दूर था।  स्टेशन तक पहुँचना आसान नहीं था, खासतौर पर तब जब उन्हे एक गाँव को पार करना पडता था.

वो लोग सचमुच बाकी की दुनिया से बिल्कुल अलग हो चुके थे, और शायद वहां के कॉमरेड भी यही चाहते थे।  visa की problem के कारण mohan के आने में 15 दिन की देरी हो गई थी, लेकिन वहां पहुँचने पर, उन्हें एक pleasant surprise मिला। उनके वहाँ पहुंचने पर उनकी director ने कहा कि ‘तुम्हारा दोस्त तुम्हारा इंतजार कर रहा है’।

 

ये सुनकर Mohan surprise हो गया था। और

वहा डायरेक्टर्स के रूम में गया, तो उसे पाकिस्तान के कराची से, काली शेरवानी में  दुबला-पतला और चश्माधारी अब्दुल सुभान, उसका इंतजार करते हुए मिला। उस वक्त सुभान ने बताया था कि वो पाकिस्तान news एजेंसी से है, हालांकि अभी present में ये agent है या नही, इसकी surity नही है।

 

Mohan का जन्म 1946 में लाहौर में हुआ था, लेकिन उसके बावजूद भी पाकिस्तानियों से उनकी बहुत कम बातचीत हुआ करती थी।  1956 में, पंजाब के जालंधर में अपने घर से वो एक बार हॉकी मैच देखने के लिए गए थे, क्योंकि उस वक्त border पर इतनी security नहीं थी, लेकिन इसके अलावा पाकिस्तान से related उनकी जिंदगी मे कु़छ नही था। इसलिए Mohan के लिए ये surprising था कि यहाँ, Roztez में, एक पाकिस्तानी उनका इंतज़ार कर रहा था, वो भी 1965 के भारत-पाक War के ठीक एक साल बाद और कोई भी Mohan को लगे shock से relate कर सकता है, जब Subhan उन्हे dormitory तक ले गए और वो उसके सूटकेस को भी dormitory तक carry करके लेकर गए, वही suitcases जो उन दिनों इतने हल्के नहीं होते थे।

 

लेकिन जल्द ही, वो दोनो सबसे अच्छे दोस्त बन गए। उनके साथ दो अफ़ग़ान थे, जो हमेशा झगड़ते रहते थे, Burma के दो आदमी भी ऐसा ही कर रहे थे, एक जापानी जो अकेला था और साथ में क़रीब एक दर्जन अफ़्रीकी लोग भी थे।

इस रंग-बिरंगे crew में एक indian और एक पाकिस्तानी की दोस्ती सबसे उपर उभर कर सामने आई थी।

 

अब्दुल सुभान और मोहन अलग-अलग social और religious background से ताल्लुक रखते थे। उन दोनों के देश एक साल पहले ही एक दुसरे के खिलाफ जंग लड रहे थे, लेकिन फिर भी, एक pure affection में, वो दोनो एक दूसरे की देखभाल और मदद करते थे।  शायद उन्हे इससे कुछ लेना-देना नही था, कि वो कहाँ से आ रहे हैं, या शायद उनका सिर्फ इससे लेना-देना था, कि वो लोग उस वक्त कहाँ पर थे।

वक्त के साथ साथ उनकी दोस्ती गहरी होती गई और जल्द ही group के बाकी लोगों को ये clear हो गया कि बस में mohan की side वाली सीट हमेशा अब्दुल सुभान के लिए reserved थी।

 

ये ऐसा था, जैसे उस जगह की unfamiliarity ने दो अजनबियों को सबसे अच्छे दोस्तों में बदल दिया था।

 

एक बार जब उन्हे training में एक काम मिला था कि उन दोनों को War पर कु़छ लिखना था, उस वक्त दोनो ने बिना किसी झिझक के अपनी अपनी countries के point of view से लिखा और assignment पूरा किया। 

 

अब उन दोनो को अलग हुए 50 साल हो गए हैं और बहुत कुछ बदल गया है।  तब से, Mohan अटल बिहारी वाजपेयी की यात्रा को कवर करने के लिए प्रेस पार्टी के साथ लाहौर गए थे, जब वाजपेयी भारत के प्रधान मंत्री थे, और तब उन्होंने पाकिस्तान की यात्रा की थी।  उन्हे याद है कि जब indian crew को ले जाने वाला plane airport पर उतरा तो तालियों की गड़गड़ाहट थी। लेकिन trip पूरी तरह pleasant नहीं थी, उस वक्त वहाँ जमात-ए-इस्लामी protests चल रहे थे। landing के तुरंत बाद, उनके plane को Haj टर्मिनल के एक कोने में ले जाया गया और उनकी शटल बसों को मशीन गन वाली jeeps द्वारा कीचड़ वाली सड़क से निकाला गया। 

उस वक्त Mohan ने कुछ वक्क अपने लिए निकाला, और वो अपने परिवार के इतिहास के चरणों को फिर से देखने की कोशिश करने लगा और तब उसे पता चला कि निसबत रोड पर उनका घर पहले की तरह अब मौजूद नहीं था। अब वो बाजार में बदल गया था, लेकिन ग्वाल मंडी में उनका office अभी भी था।

 

अनारकली और शालीमार गार्डन disappointment थे। Trip के दौरान इतनी पाबंदियां थीं, कि Mohan उस लाहौर को नहीं देख पाए, जो उन्होंने अपने माता-पिता द्वारा बताई गई कहानियों में सुना था।

 

फिर, लगभग 10 साल पहले उन्होने भगत सिंह से related एक function attend करने के लिए, फिर से लाहौर जाने की कोशिश की, लेकिन Visa देने से मना कर दिया गया।  

लेकिन पाकिस्तान में बिताए पूरे वक्त में, सिर्फ एक सवाल बार-बार उनके दिमाग में आ रहा था, “तुम कहाँ हो, अब्दुल सुभान?”।

 

50 साल पहले की पक्की दोस्ती के बारे में अक्सर Mohan उनकी last मुलाकात के बारे में सोचता है कि मई 1967 में Moscow में जहां उनके group को ले जाया गया था।  वो दोनों emotional थे, क्योंकि दोनो जानते थे कि हो सकता है कि वो दोनो फिर से कभी नहीं मिले। और emotional moment होने के बाद उस gentle पाकिस्तानी मोहन का सूटकेस कमरे से नीचे टैक्सी तक लेकर आया। उस साल , कुछ letters exchange हुए।  जिनमें से एक में Subhan ने बताया कि उसकी शादी हो रही है।  

और ये सोचकर mohan को हंसी आती है कि Subhan भी उसकी तरह अब 70 साल का दादा बन गया होगा।

 

Time और War के बावजूद, अब्दुल सुभान , Mohan के दिल की एक warm memory बन गया था।  पिछले साल यूरोप में अपनी छुट्टियों के दौरान, Mohan ने खुद को नए सिरे से पुरानी यादों के साथ घूमते हुए पाया। Mohan उनकी friendship के लिए closure ढुंढ रहा था। लेकिन वो मुमकिन नही था, क्योकी उसका दिमाग फिर से 1967-68 में वापस चला गया, जब वो 20 लोगों के साथ प्राग (Prague) के बाहर एक छोटे से शहर में रहता था। लेकिन, एक नाम फिर भी उसके पास वापस आता रहा: सुभान।

 

इस trip के बाद Mohan सुभान से contact करने की कोशिश करना चाहता था। Mohan ने सोचा था कि, उनके देशों के बीच संबंधों को देखते हुए वो शायद फिर कभी न मिलें।  फिर भी, वो कम से कम एक अच्छी Email conversation की उम्मीद कर रहा था।

लेकिन कभी कभी nature भी cruel हो सकती है। जब mohan ने subhan का पता लगाने का फैसला किया, तो उसे याद आया कि उसकी बेटी ने Downcom के लिए लिखा था।  तो, mohan ने वहाँ से शुरूआत की।  Mohan ने उनकी दोस्ती के बारे में लिखा, इस उम्मीद में की उसे subhan का जवाब मिलेगा और एक reply mohan को मिला, लेकिन ये reply ऐसा था, जो Mohan बिल्कुल सुनना नही चाहता था।  

 

क्योंकी reply subhan के बजाय, उसके भतीजे नने दिया कि Subhan बीमार है, लेकिन शुक्र है कि अभी तक जिंदा है। इन कुछ शब्दों ने Mohan को हिला कर रख दिया था। Subhan के भतीजों, नौमान और सलमान ने बताया कि सुभान पिछले आठ सालों से paralyzed है और पूरी तरह से bed-ridden है। Mohan ये सुनकर दंग रह गया था।  वो सुभान को इतने सालों तक बिस्तर पर लेटे हुए नहीं देख सकता था।

 

सलमान ने उसे बताया कि उसने Down.com पर Mohan का लुखा हुआ सुभान को पढ़कर सुनाया था,  तो subhan बहुत रोया था।  

Mohan surprised नहीं हुआ क्योकी वो जानता था कि वो इतने करीब थे। उसका दोस्त बोल नहीं पाता था, लेकिन 50 साल बाद भी उसे सब याद था।  

 

फिर सलमान ने मोहन को एक तस्वीर और एक छोटा वीडियो भेजा, जिसमें mohan के लिए उसके पुराने दोस्त को पहचानना मुश्किल था, जो subhan कभी Full of life , हमेशा आगे आने वाला और मदद के लिए तैयार रहता था। आज बिस्तर पर बिना दाढ़ी-मूंछ, कमजोर सुभान को देखा, जो पूरी तरह से खोया हुआ लग रहा था।

 

India-pakistan या Chandra Mohan और Abdul Subhan की दोस्ती की खुशी और दर्द भरी कहानी, जिससे inspired कोई छोटा सा scene हमे gadar 2 में देखने को मिल सकता है।

 

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