17 अगस्त 2016 की देर रात को शांत शहरों में शुमार रोहतक, जो देश की राजधानी दिल्ली से 66 किमी दूर है, अचानक सुदेश मलिक की जश्न भरी आवाज़ों से गूंज गया था। क्योंकि सरकारी नौकरी करने वाले एक पिता की बेटी ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करा दिया था और वह भी उस प्रतियोगिता में जिसे दुनिया की सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़ी प्रतिस्पर्धा माना जाता है। ये एक ऐसा सपना था जो साक्षी मलिक की ज़िंदगी का सबसे बड़ा था, और वह पूरा हो चुका था। साक्षी भारतीय इतिहास की पहली महिला बन गईं थीं जिसने कुश्ती में देश के लिए ओलंपिक पदक हासिल किया था।
2016 रियो ओलंपिक में साक्षी ने किर्गिस्तान की ऐसुलू तिनीबेकोवा को रेपेचेज राउंड में 58 किग्रा वर्ग में शिकस्त देकर कांस्य पदक जीत लिया था। उस रात की अगली सुबह देश के दूसरे शहरों की तरह बेंगलुरु भी देशभक्ति से सराबोर था, और हर तरफ़ साक्षी की जीत की ख़बरें सुर्ख़ियां बटोर रहीं थीं। साक्षी मलिक ने पदक पाने के लिए क़रीब 12 सालों का इंतज़ार किया जिसे हम तपस्या भी कह सकते हैं। साक्षी के स्कूल और कॉलेजों का ज़्यादातर समय तो बस अखाड़े से स्कूल या कॉलेज और फिर स्कूल से अखाड़े तक ही सीमित रहता था।
फ़रवरी 2017 में साक्षी ने अपने साथी पहलवान सत्यव्रत कादियान से शादी रचाई, अर्जुना अवॉर्डी के पुत्र सत्यव्रत और साक्षी ने कई सालों तक एक दूसरे के साथ समय भी बिताया था। सारी मेहनत और कोशिशों के बावजूद अब 62 किग्रा वर्ग में साक्षी मलिक को ओलंपिक के लिए क्वालीफ़ाई करना काफ़ी मुश्किल साबित हो रहा है। वर्ल्ड चैंपियनशिप 2019 के बाद तो साक्षी पर दबाव और भी बढ़ गया है। हार न मानने का जज़्बा रखने वाली साक्षी ने साउथ एशियन गेम्स में भी स्वर्ण पदक पर कब्ज़ा जमाया है और एक बार फिर ओलंपिक की वापसी की राह पर मौजूद हैं।
इतिहास रचने से लेकर अब कोशिशों के सफ़र की कहानी हैं साक्षी मलिक, साक्षी की कहानी परियों की कहानी की तरह नहीं है। लेकिन उनके पदक जीतने की कहानी साबित करती है कि हरियाणा की इस बेटी में जज़्बे की कमी नहीं है और फ़र्श से भी वह अर्श तक पहुंचने का रास्ता उन्हें मालूम है।