Sandalwood oil factories हुई बंद!
सर दर्द होने पर हम चंदन का paste use करते है, लेकिन इस paste को चंदन की लकडी से बनाना खुद एक सर दर्द है।
Sandlewood का तेल और इत्र का, कन्नौज के साथ एक गहरा connection रहा है। उत्तर प्रदेश में Ganga के साथ बसा हुआ कन्नौज शहर, देश के सबसे पुराने शहरों में से एक है।
इत्र बनाने के लिए चंदन के तेल की भारी demand को देखते हुए, कन्नौज इसे distilled यानी purify करने के लिए एक center बन गया था। भले ही ज्यादातर लकड़ी वास्तव में कर्नाटक और तमिलनाडु के southern states में होती थी।
कन्नौज शहर ने sandalwood oil के world market को पूरी तरह से dominate कर लिया था और roughly 100 tonnes का export भी किया था। लेकिन चंदन का जिक्र कोई कृष्णा नारायण कपूर के सामने करके देखिए, जिसका परिवार एक century से ज्यादा के लिए चंदन के तेल पर based perfume बनाने के Art में माहिर है, वो आज चंदन का नाम सुनकर दुखी होकर कहते है,”तुम क्यों पूछते हो? पुछने और बताने से क्या सही हो जाएगा?”
Krishna Narayan की कड़वाहट बिना किसी कारण के नहीं है। 65 साल के कपूर, के पूर्वजों ने 1880 में कन्नौज, मैनुलाल रामनारैन में पहली और सबसे बड़ी Modern distilling और perfumery company की शुरूआत की। समय के साथ, कपूर परिवार ने इसे चार अलग-अलग firms में तोड़ दिया। कपूर की फर्म, indian fragrance और chemical, हर महीने लगभग 800 किलोग्राम सैंडलवुड तेल का production किया और 80 लोगों को employment provide किया। लेकिन अब उनकी company का shutter बंद हो रहा हैं और सिर्फ kappor family नही है, जिनकी distillery shop बंद हो रही थी।
भारत की Total शिपमेंट्स, जुड कर सिर्फ 5 tons हो गई थी और Processors तेजी से चंदन के तेल की fireign varities को खरीद रहे थे और कन्नौज का perfume business खत्म होता जा रहा था। और सवाल ये है कि कहाँ, क्या गलत हुआ? जो शहर पहले ये business dominate कर रहा था, अब वो अचानक ठप्प हो रहा था।
Insiders का कहना है कि 1978-79 में चीजें गलत होने लगीं थी। जब इंडोनेशिया, जो कि कच्चे चंदन का सबसे बडा exporter था, उसने कच्चे चंदन के export पर रोक लगा दी थी।
भारत ने दूरदराज के देशों के लिए को कच्चा चंदन supply करने के लिए कदम रखा। उन्हें अपने धूप यानी Incense industry और relegious ceremonies में चंदन की जरूरत थी और जिसकी वजह से कीमत की बोली और बढा दी।
कच्चे चंदन का export अचानक तेल बनाने की तुलना में ज्यादा popular हो गया था। कच्ची लकड़ी के supply में मिल रहे easy money से सैंडलवुड के जंगलों के ज्यादा से ज्यादा चंदन की लकड़ी की कटाई और इनकी smuggling को बढावा मिल रहा था।
साल 1996 में, अच्छे इरादों के साथ नरक के लिए रास्ता बनाने का एक उदाहरण ले, तो central government ने Sandalwood और इसके oil के export को regulate करने के लिए export quota लगाने का फैसला किया। इसने कच्चे सैंडलवुड का Auction system set-up किया गया और अगर कोई oil export करना चाहता है तो उसे लकड़ी भी खुद ही खरीदनी पड रही थी और इससे supply कम हो गया और चंदन के तेल की price भी बढ गई। उस वक्त, चंदन की कीमत कहीं 65,000 प्रति किलो और 1.5 लाख रुपये प्रति किलो के बीच में थी।
एक तरफ भारत ने खुद को market से बाहर कर दिया था और दुसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया ने खुद को सैंडलवुड और उसके तेल के dominent supplier के रूप में जगह बना ली। इसके साथ साथ Australia ने चंदन की Indian varities को भी उगाना शुरू कर दिया था और ऐसा लग रहा था, कि भारत भी जल्द ही ऑस्ट्रेलिया में उगाए जाने वाली varieties के चंदन के तेल को खरीदना शुरू कर देगा।
कपूर ने बताया कि, भारत के चंदन के तेल की कीमत रु 65,000 प्रति किलो थी, जो ऑस्ट्रेलिया से चंदन के तेल की कीमत और अफ्रीकी चंदन के तेल की कीमत से तीन गुना ज्यादा थी और global level पर ऐसा product बेचना impossible था और जैसे पहले दिक्कते कम थी कि, अब import license लेने में भी बहुत लंबा वक्त लगता था।
पहली Auction के लगभग दो साल बाद, 1998 में impory लाइसेंस का पहला सेट issue किया गया था। इस पर Moraddwaj saini, एक और distiller कहता है, ” Export order देने के पहले कोई भी 2 साल का wait क्यो करेगा। कोई भी international client इतना लंबा इंतजार नहीं करेगा”।
डिस्टिलर और exporters के लिए सबसे बड़ी समस्या next import license के वक्त पर ना मिलने की थी। और इससे विदेशों में किसी के clients को regular supplies की गारंटी नही दे सकते थे।
आखिरकार कपूर ने अपनी factory को बंद कर ही दिया था। अब उसके पास 1 करोड की worth का पूरा distillation plant था, जिसमें सिर्फ धुल जम रही थी।। कन्नौज की 22 ऐसी डिस्टिलरीज में से एक कपूर की distillery बंद होने वाली last company थी। कपूर कहते है कि, उनके परिवार के कारोबार को छोड़ना उनके लिए आसान नहीं थाbऔर 80 साल के Saini का 40 लाख का कारखाना, जो 1998 में बंद होने वाली पहली कुछ factories में से एक था।
चंदन की कीमतों में लगातार increment का एक clear reason ये था कि उसने कन्नौज की USP- Traditional इत्र industry, को पूरी तरह से तोड दिया था।
1970s, एक personal Fragnance के रूप में बेचे जाने वाले top quality के सैंडलवुड तेल से बने इत्र, से बेकार quality वाले तेल से यह धूप और flavoring पान मसाला बनाने में चला गया। जब तेल कि कीमतें बढी, तो persinal fragnance के लिए बना इत्र और महंगा हो गया था। पहले से ही, Modern Perfume की ओर सबका prefrence बदल रहा था।
1980s की शुरुआत तक, Perfume manufacturers, domestic industry में बदल गए, जो पान मसाला और तंबाकू industry में आ रहे थे। लेकिन इत्र mafucaturer को पान मसाला और तंबाकू industry की price के हिसाब से चलना था, इसलिए उन्होंने sandalwood oil की जगह liquid Paraffin (पैराफिन) का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
Saini कहते है, “एक गुटखा का पैकेट का price शुरू से लेके अब तक इतना कम क्यों है, जब Sandalwood oil की कीमत रोज बढ रही है?। इत्र Manufacturer को चंदन के तेल को substitute करने के लिए कुछ रास्ता खोजना पड़ा।
आज, कन्नौज में Manufactred सारे इत्र का 90-95 प्रतिशत पान मसाला और तंबाकू flavouring के लिए use किया जाता है और सभी इत्रो में से लगभग 10-15 प्रतिशत mainly चंदन के तेल का use करते हैं, क्योंकि इत्र के मुख्य customers, अपने product के retails price में increment नहीं चाहते हैं।
Personal fragnance के रूप में produced 5 प्रतिशत इत्र में से लगभग सभी को सऊदी अरब जैसे west asian countries में export किया जाता है। और इस पर pradeep Kapoor का कहना है कि, ” अब ये कहना गलत नहीं हो सकता है, कि एक पुरी generation को ये नही पता है कि असली चंदन के तेल से बने इत्र की असल में कैसी smell होती है।
प्रदीप कपूर भी उसी परिवार से related है, जिसने कन्नौज में पहला distillation और perfume factory शुरू की थी। उनकी Family firm, Jagat Aroma, चंदन के distilled business से बाहर चली गई और अब लैनकोम, टॉम फोर्ड और G ‘इस्से (Issey) जैसे foriegn perfume manufacturers के लिए fragnance components को export करती है।
इंडिया के नुकसान की कहानी यही खत्म नहीं होती । 1990s में, जब भारत की पकड तेल के trade पर ढीली होनी शुरू हो गई थी, ऑस्ट्रेलिया ने एक मौका देखा और एक unique project पर काम करना शुरू कर दिया। Australia ने Sandalwood की indian variety को develop करना शुरू कर दिया।
सैंडलवुड की ऑस्ट्रेलिया की variety, संतलम स्पीकैटम (Santalum spicatum), oil content के मामले में Indian variety से कम है। इसी कारण से, तब तक ऑस्ट्रेलिया सैंडलवुड export बाजार में एक बडा player था।
हालांकि इससे ऑस्ट्रेलियाई सरकार को दुनिया में सबसे valuable लकड़ी की पुनर्जन्म और sustainability ensure करने के लिए 1929 में Sandalwood act बनाने और लागू करने से ही रोक पाया और उस Act मे लिखा गया कि, सैंडलवुड का एक percent ही हर साल harvest करने के लिए available होगा और हर पेड़ की कटाई के लिए, एक दर्जन के बीज को उगाया जाना चाहिए।
ऑस्ट्रेलिया में different varities के लगभग 20,000 हेक्टेयर के सैंडलवुड के पेड उगाए गए हैं। इनमें से अधिकतर बागान western australia में हैं।
The forest products commission, जो western ऑस्ट्रेलिया के state-owed वाले सैंडलवुड resources को control करता है, वो दुनिया में चंदन के resources का सबसे बड़ा supplier होने का दावा करता है।
यह उम्मीद की जाती थी कि ऑस्ट्रेलिया अगले तीन से सात सालों में भारत में Indian Variety के सैंडलवुड तेल का export शुरू कर देगा।
Pradeep kapoor ने कहा कि, “ये वास्तव में एक शर्म की बात है कि, हम एक ऐसे Area को बर्बाद करने में कामयाब रहे हैं, जहां हमने dominance का आनंद लिया था। तो Sandalwood की smuggling ने इसके oil बनाने के business में भी खलल डाल दी थी।
इसी तरह हो सकता है कि, Pushpa 2 में हमें इस बार सिर्फ Sandalwood smuggling नही, बल्कि इसके और भी uses और businesses देखने को मिले।