Pushpa 2

Smugglers ने बुलाई ambulance!

 

Forest department ने बस्ती में रहने वालों को criminal activities की ओर जाने से रोकने के लिए temporary forest watcher के रूप में appoint करकर लिया।  कॉलनी के residents को नौकरी की opportunities का मिलना तो बिल्कुल उनकी lifeline के मिलने जैसा था।  

 

Divisional forest officer रंजीथ ने कहा कि, अगर वो लोग पूरे महीने काम करते हैं, तो उन्हें 18,000 रुपये से 19,000 रुपये की payment की जाती है।  बाकी लोगों को उनके द्वारा काम किए गए घंटों के हिसाब से पैसे दिए जीते है।  Officer ने कहा कि, कोई और forest range मरयूर में दी गई wages यानी मजदूरी के बराबर नहीं हो सकती है।  पलापेट्टी कॉलनी में 64 परिवारों के 40 लोग जंगल के चौकीदार के रूप में काम कर रहे हैं।

 

वन्ननथुरा forest station के पास चंदन के पेड़ों की रखवाली करने वाले कई forest watcher कॉलनी के resident हैं। उन्होंने चंदन के पेड़ों पर पूरा focused रहने के लिए आस पास के सारे area में sheds बना लिए हैं। Shed के साथ उन्होंने खाना पकाने के लिए भी जरूरी सामान को arrange कर लिया ताकी वहां लंबे समय तक ठहर कर smugglers पर नजर रख सके।

 

उन में से हर Shed में दो आदमी होते है।  वो एक ऐसे area के लिए जिम्मेदार हैं, जिसमें लगभग 200 चंदन के पेड़ है।  वो लोग रात भर एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते हैं, ताकी कोई भी कीमती पेड़ों को ना छुए और अगर छुए भी तो उसे वो आसानी से पकड पाए।  

 

चंदन के पेड़ों को protect करने में forest watchers यानी चौकीदार कभी छुट्टी भी नहीं ले पाते है, यहां तक ​​कि बरसात की रातों में शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक घूमते रहते हैं।

Forest department के officers को काम करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।  वन्ननथुरा से पालापेट्टी तक जाने के लिए उन्हें जंगल के रास्ते 5 किलोमीटर की चढ़ाई चढनी पड़ती है।  उनके पास केवल उनका डंडा एक हथियार के रूप में होता हैं, जबकी वहां उन्हें बंदूको वाले smugglers के सामने खड़ा होना पडता है।

 

Marayur के officers को भी बिना छुट्टी के काम करना पडता हैं। उन्हें जंगल की आग के साथ साथ और किसी भी तरह की crisis situation को संभालना होता है। कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि, एक situation को संभालते ही है, कि इतने में दुसरी situation उनके सामने खडी हो जाती है। 

 

पलापेट्टी कॉलोनी के पास forest department का एक छोटी सी building है, जहां पांच officers एक साथ आसपास की रखवाली करते हैं। Forest station में पांच officers का एक batch, लगातार एक week तक काम करते है। फिर एक week के बाद अगले batch के आने पर उन्हें राहत मिलती है।  Forest Officers, खराब मोबाइल फोन कवरेज के साथ, पूरे week जंगल में फसे रहते है।

 

यहां तक ​​कि, permanent officers भी हमले के डर से firearms नहीं रखते हैं।  Officers सिर्फ अपने confidence और साहस के बल पर ही वहां अपनी duty करते हैं और इस बार उनके efforts और Sacrifices, waste नही गए। साल 2005 में 2,000 से ज्यादा पेड़ों को खोने वाले Area से पिछले साल सिर्फ 13 चंदन की चोरी के मामले सामने आए हैं। हालांकि, वो लोग अच्छी तरह जानते हैं कि इसमें satisfaction feel करने के लिए कोई जगह नहीं है क्योंकी officers की तरफ से किसी भी तरह की कमजोरी का फायदा उठाने के लिए smugglers अपनी नजर गड़ा के बैठे हैं।

 

Officers के काम करने के लिए मरयूर शायद ही कोई पसंदीदा जगह है, भले ही इस मुश्किलों से भरे इलाके में Assignment 10 percent  allowance के साथ आता है। हालांकी Field officers एक साल बाद अपना transfer कर सकता है, लेकिन फिर भी उनमें से बहुत कम officees मरयूर में आने का option चुनते हैं।

District level पर forest officers की भर्ती की जाती है। हालाकी वो लोग इडुक्की (idukki) के रहने वाले हैं, उनमें से कुछ ने तो कभी भी मरयूर में काम नहीं किया है। Forest department मरयूर में अपनी मर्जी से काम करने वाले young officers की commitment पर depend करता है। Male के साख साथ इस workforce में female officer भी शामिल होती हैं।

 

जुलाई के बीच में 108 एंबुलेंस service को एक अजीबोगरीब call आया।  फोन करने वाले ने खुद को एक illegal लकड़हारा, जो चंदन की लकड़ियाँ smugglers के लिए काटता है, बताया। जंगल से लकडी काटकर उन्हे छुपाने का काम करने वाले, उस दिन चंदन के पेड़ों को चुराने के लिए मरयूर जंगल में गए थे। Ambulance को फोन करके उसने बताया कि, उसके एक साथी का accident हो गया है और उसे जल्दी medical attention की जरूरत है। 

 

इस एक कॉल ने मरयूर में कई चंदन की चोरी में से एक का पर्दाफाश करने में मदद की।

 

Call को समुद्र तल से 5,000 फीट की ऊंचाई पर एक दूर के remote area, चंद्रमंगलम में trace किया गया। वो एक ऐसा इलाका है, जहाँ पर सिर्फ jeep ही जा सकती है।  एंबुलेंस drivers को उस licationपर नही पहुंच पाए, तो उन्होंने police को inform किया की उनका सही location पर पहुंचना और उस आदमी को बचाना impossible हो रहा है।

 

पुलिस ने उसी नंबर पर call back किया और उसकी language से police ने महसूस किया कि, जिस व्यक्ति के साथ जंगल के अंदर ये accident हुआ है, वो तमिलनाडु का रहने वाला है। 

 

लेकिन कुछ देर बाद ही वो नंबर switch off आने लगा।  पुलिस और forest department के officer उस आदमी की तलाश करने के लिए जंगल के अंदर गए, लेकिन हाथियों के झुंड के रास्ते में आने पर उनकी team को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा।  Team अगले दिन फिर से जंगल में लौटी और पूरे दिन जंगल में तलाशी करने के बाद एक उन्हें एक dead body मिली।

 

Dead Body की जेब से मिले एक note की जांच करने के बाद पता चला कि वो तमिलनाडु के तिरुपथुर में रहने वाला सतीश था, जिसकी उम्र 35 साल की थी और उसकी मौत का कारण चोरी के चंदन के लट्ठे ले जाते समय उसके 300 फुट गहरी खाई में गिर जाना बताया जा रहा है।  और जब वो नीचे गिरा तो उसके साथी चंदन के लठ्ठो के साथ वहां से गायब होने से पहले एंबुलेंस service को फोन कर गए।

 

हालाकी बाकी के लोग कभी नहीं मिले। Forest department के पास जानकारी है कि, कुंदक्कड़ के पास पल्लम से दो पेड़ चुराने वाली gang में कम से कम चार लोग थे। सालों से trace करने के बाद investigators, Smugglers के तौर-तरीकों को अच्छे से समझ गए हैं। तमिलनाडु के gang हमेशा चंदन के पेड़ चुराने के बाद border पर वापस आ जाते हैं।  इमका चोरी कने का pattern इतने सालों के बाद भी वैसा ही बना हुआ है।  पेड़ों की कटाई में शामिल gang, लकडी के साथ कभी भी border पार नहीं करते हैं।  क्योकी ये काम दुसरे groups का होता है।

 

केरल के जंगलों में जाने वाले ज्यादातर लकड़हारे दिहाड़ी मजदूर यानी daily basis पर पैसा लेने वाले होते हैं।  फिर भी, ये अपने काम में skilled हैं। ये लोग केरल को पार करने के बाद कई दिनों तक forest department  की चाल देखते रहते है और मौका मिलते ही उनमें से कुछ चुपचाप जंगलों में घुस जाते हैं, जहां बहुत सारे चंदन के पेड़ उगते हैं।

 

वो पेड़ों को चुराने के लिए perfect opportunity और perfect timing का wait करते हैं। और मौका मिलते ही ये लोग, जितने stock की demand इन्हे दी जाती है, उसके हिसाब से पेडो की कटाई करते है और अगर कभी सही मौके का इंतजार बढ़ जाता है और supply खत्म हो जाता है, तो उन्हें बस्तियों से चोरी करने में कोई दिक्कत नहीं होती है। अगर किसी बस्ती से कोई food item या बर्तन चोरी होने की report मिलती है, तो forest guards इसे तमिलनाडु के smugglers की presence के एक sure sign के रूप में लेते हैं।

 

Smugglers के पीछे और भी clues मिले हैं।  कुछ पेड़ इतने छिपे हुए हैं कि उनके बारे में forest department के अंदर के लोगों ही smugglers को बता सकता है। चोरी के एक incident के बाद, Marayur के forest watchers में से एक ने खुद को ही forest department के निशाने पर पाया।

 

उस चौकीदार की videos देखने की लत ने उसका पर्दाफाश कर दिया।  वो फोन पर अश्लील वीडियो देखना चाहता था, लेकिन ये नहीं जानता था कि इसे कहां से ढूंढा जाए।  और उसका एक friend था, जिसने उसके फोन पर ऐसे वीडियो कॉपी करने में उनकी मदद की। लेकिन Forest department ने उस दोस्त से watcher के फोन में कॉल रिकॉर्डर लगवा दिया और जब वो और वीडियो के लिए लौटा, तो उस दोस्त ने रिकॉर्ड किए गए कॉल recover किए और उन्हें officers को सौंप दिया। ज्यादातर फोन कॉल watcher और smugglers के बीच हुई थी।  हालाकी investigation तके वक्त उसने खुद की sandalwood smuggling में involvement से सीधा मना कर दिया, लेकिन रिकॉर्डिंग के साथ सामना किए जाने पर उसका झुठ ज्यादा वक्त तक टिक नहीं पाया। 

Investigation में smugglers से deep connection रखने वाले तीन forest watchers का पर्दाफाश हो गया, जिनमें से एक divisional forest officer का वफादार था।

 

तो कैसे Forest officers भी फंसते है Sandalwood की smuggling के जाल में, इसके बारे में भी हमें Pushpa 2 फिल्म में देखने को मिल सकता है।

और कैसे कैसे smuggling cases हुए Idukki के Marayur में, यह जानने के लिए हमारी next blog का इंतजार करें।

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