5 अगस्त 1947 को देश आजाद हो चुका है अब भारत और पाकिस्तान नाम के दो अलग देश बन चुके हैं। विभाजन की आग में देश अब भी जल रहा है। पाकिस्तान से हिंदुओं को भगाया जा रहा है तो भारत में मुसलमानों को लेकर कुछ लोगों में आक्रोश है। सितंबर 1947 की शाम का वक्त है। बर्मा में mountbatten की फौज के लिए लड़ चुका 55 साल का एक सिख बूटा सिंह अपने खेत में कुछ काम कर रहा है। तभी पीछे से एक लड़की की चीखती हुई आवाज सुनाई देती है। कुछ नौजवान उसका पीछा कर रहे होते हैं। वो लड़की भागती हुई बूटा सिंह के कदमों में गिरकर जान बचाने की गुहार लगाती है। बूटा सिंह लड़की को शरण देने का फैसला करता है । लेकिन नौजवान इसके बदले में उससे पैसे की मांग करते हैं। आखिरकार 1500 रुपए में सौदा पक्का हुआ और लड़की 55 साल के कंवारे बूटा सिंह को मिल गई। हालांकि 1500 रुपए की ये रकम उस जमाने के हिसाब से काफी बड़ी रकम थी। क्योंकि सितंबर 1947 में 10 ग्राम सोने कीमत करीब 89 रुपए थी। मतलब 1500 रुपए में उस समय 168 ग्राम से ज्यादा यानी करीब 17 तोला सोना मिल जाता था। आज यानी मई 2020 की बात करें तो 10 ग्राम सोने की कीमत करीब 46,500 रुपए है उस हिसाब से तब का 89 रुपया आज 46 हजार 500 के बराबर हो गया है। मतलब तब का 1500 रुपया आज 7 लाख 82 हजार के बराबर हो गया है।
हिसाब किताब को छोड़कर अब कहानी को आगे लेकर चलते हैं। दरअसल जिस लड़की को बूटा सिंह ने खरीदा था वो 17 साल की जैनब थी उससे उम्र में 38 साल छोटी जैनब राजस्थान के एक छोटे किसान की बेटी थी। बंटवारे में परिवार वाले पाकिस्तान चले गए थे और वो उनसे बिछड़ गई थी। अतीत में जैनब ने हैवानियत का इतना भयावाह रूप देखा था कि बूटा सिंह के प्रेम ने जैनब को मानो एक नई जिंदगी और जीने की वजह दे दी। 1948 की शरद ऋतु में आखिरकार बूटा सिंह और जैनब की शादी हो गई। कुछ ही समय बाद बूटा सिंह को एक और खुशी मिली। जैनब ने बूटा सिंह की बेटी को जन्म दिया। अब बूटा सिंह की वीरान जिंदगी में मानों सब कुछ था। लेकिन ये खुशी ज्यादा देर तक रहने वाली नहीं थी क्योंकि दुःखों का एक लंबा दौर अब शुरू होने वाला था। बूटा सिंह की खुशियों पर किसी की नज़र लग गई।
दरअसल शादी के 11 महीने बाद बूटा सिंह को बेटी हुई जिसका नाम उसने तनवीर रखा लेकिन बूटा सिंह की जायदाद पर नजर गड़ाए बैठे उसके भतीजों को ये बात कहां रास आनी थी कि उसका कोई वारिस आ जाए और वे बेचारे उसकी जायदाद से बेदखल हो जाए। फिर क्या था जैनब की खबर रिफ्यूजी कैंप में दे दी गई। दरअसल उन दिनों कई ऐसे कैंप बनाए गए थे जिनमें पाकिस्तान गए परिवार से बिछड़ गए लोगों को रखा जाता था। फिर उनके परिवार वालों का पता लगाकर उसे उसके परिवार के पास भेज दिया जाता था। बस जैनब की खबर भी अधिकारियों को लगी और वो एक दिन बूटा सिंह के घर आ धमके। काफी मिन्नतों के बाद भी अधिकारी नहीं माने और जैनब को रिफ्यूजी कैंप ले गए।
रिफ्यूजी कैंप में जैनब और बूटा सिंह की आखिरी मुलाकात जैनब करीब 6 महीने रिफ्यूजी कैंप में रही। इस दौरान बूटा रोज उससे मिलने जाता। सब कुछ ठीक हो जाने की उम्मीद के साथ दोनों घंटों बैठकर बातें करते आगे की जिंदगी के सपने बुनते और एक दूसरे का साथ कभी न छोड़ने की कसमे खाते। इस बीच पाकिस्तान में जैनब के परिवार वालों का पता चल गया और इस तरह जैनब पाकिस्तान भेज दी गई। पाकिस्तान जाने से पहले आखिरी बार जैनब और बूटा सिंह एक दूसरे के गले लगे। जैनब ने रोते हुए वादा किया कि वो जल्द से जल्द उससे और अपनी बेटी से मिलने आएगी। इधर पाकिस्तान जाने की कोशिश में बूटा सिंह भी दिल्ली के चक्कर काटता रहा लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। प्यार को पाने के लिए बदला धर्म अधिकारियों की बेरुखी से परेशान बूटा सिंह ने अपने केश कटवा लिए। धर्म परिवर्तन कर उसने
अपना नाम जमील अहमद रख लिया। फिर भी
दिल्ली स्थित पाकिस्तान हाई कमीशन ने बूटा सिंह को पाकिस्तान जाने की इजाजत नहीं दी।
जब पाकिस्तान हाई कमीशन ने उसकी वीजा की अर्जी ठुकरा दी तो वो अपनी 5 साल की बेटी तनवीर जिसका नाम अब सुलतानान हो गया था उसे लेकर चोरी छिपे पाकिस्तान पहुंचा। लाहौर में उसने अपनी बेटी को किसी के पास छोड़ा और जैनब के गांव नूरपुर पहुंचा। लेकिन वहां पहुंचते ही उसके होश उड़ गए। बूटा सिंह की जैनब अब किसी और की हो चुकी थी। दरअसल पाकिस्तान पहुंचते ही जैनब की शादी उसके रिश्ते के एक भाई के साथ करा दी गई थी। बूटा सिंह वहां बहुत रोया गिड़गिड़ाया कि उसकी पत्नी उसे वापस सौंप दी जाए लेकिन जैनब के परिवार वालों ने उसे मार पीट
कर पुलिस के हवाले कर दिया। जब जैनब के इनकार ने बूटा को अंदर तक तोड़ दिया पुलिस ने बूटा सिंह को कोर्ट में पेश किया, लोगों से खचाखच भरे कोर्ट में बूटा सिंह ने जज से गुहार लगाई कि एक बार यदि जैनब उसके साथ जाने से मना कर देगी तो उसे तसल्ली हो जाएगी और वो अपनी बेटी के साथ हिंदुस्तान लौट जाएगा। जज को भी बूटा सिंह पर तरस आ गया और उसने उसे जैनब से पूछने की इजाजत दी। अब बूटा सिंह की डबडबाई आंखें जैनब की ओर थी तो दूसरी तरफ कोर्ट रूम में मौजूद जैनब के परिजनों की दहकती आंखें जैनब को घूर रही थी। तभी सन्नाटे को चीरती हुई जज की आवाज आई “जैनब इस आदमी को जानती हो ?” जैनब ने जवाब दिया “ये मेरा पहला पति है और ये मेरी बेटी है”। अब फिर जज ने जैनब से पूछा “क्या तुम इसके साथ हिंदुस्तान जाना चाहोगी ?” अब एक बार फिर कोर्ट रूम में कुछ पल के लिए सन्नाटा पसर गया। अगले ही पल कंपकपाती हुई आवाज आई ‘नहीं’ ये आवाज जैनब की थी जिसने बूटा सिंह के साथ हिंदुस्तान जाने से मना कर दिया था। इसी तरह शायद किसी मजबूरी में जैनब ने बेटी को भी साथ रखने से मना कर दिया। बूटा की आंखों से आंसुओं की तेज धारा बह निकली उसने अपनी बेटी का हाथ पकड़ा और कोर्ट से बाहर निकल गया।
हमे आपको बताया कि 2001 में आई सनी देओल और अमीषा पटेल अभिनीत ‘गदर एक प्रेम कथा’ लगभग सभी ने देखी होगी। तो चलिए गदर एक प्रेम कथा की असली कहानी जानते हैं। क्योंकि हर बॉलीवुड फिल्मों की तरह इस प्रेम कहानी में हैप्पी एंडिंग नहीं बल्कि बेहद दर्दनाक अंत होता है।
आपको बता दें ये असल कहानी है गदर फिल्म की अब कहा जा रहा है की बहुत जल्द गदर w भी आपको देखने को मिल सकेगी।
By – Nikhil