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अंतरिक्ष परी कल्पना चावला के शहर में बेटियां प्रत्येक क्षेत्र में मुकाम हासिल कर रही हैं। करनाल की बेटी कोमल ने शहर का नाम चमकाया है। हांसी रोड की तंग गलियों में मजदूर की बेटी कोमल को महाराष्ट्र के नासिक में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) इंस्पेक्टर की तैनाती मिली है। कोमल की कामयाबी का रास्ता आसान नहीं था लेकिन मजबूत इरादों से सभी कठिनाइयों को पार कर मुकाम पाया है। ऐसे लोग जो कोचिंग केंद्रों में लाखों रुपये खर्च कर सफलता हासिल नहीं कर पाते उनके लिए इंस्पेक्टर कोमल किसी उदाहरण से कम नहीं है। हांसी रोड की गली नंबर दस में बने दो कमरों का घर मजबूर ऋषिपाल का है। पिता दिहाड़ी से इतना ही कमा पाते हैं कि इस महंगाई में किसी तरह गुजारा ही चल पाता है। ऊंचे सपने देखना परिवार के लिए सोचना आसान नहीं था।

पिता की हकीकत से वाकिफ बेटी कोमल ने पिता की मजदूरी को कभी मजबूरी नहीं बनने दिया और बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रही। बेटी के पढ़ने के शौक को देखते हुए पिता ने कभी उसे कमी नहीं आने दी। घर के जरूरी से जरूरी काम रोककर बेटी को बीकाम और एमकाम करवाई। होनहार कोमल ने भी पिता की मेहनत को ताज पहनाने के लिए अच्छा पद पाने की इच्छा ठानी। बतौर इंस्पेक्टर कोमल पिता का संघर्ष कभी भुलाने वाला नहीं है। उसे इस बात की खुशी है कि पिता की इच्छाओं पर खरी उतरी है। आज भी समाज में बेटियों की सफलता में कई बाधाएं हैं लेकिन पिता ने हर स्थिति में हमेशा सहयोग किया। राजकीय महिला महाविद्यालय करनाल में बीकाम करने के बाद एमकाम की और वर्ष-2015 में कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) की परीक्षा में बैठी।

नाकाम होने पर वर्ष-2016 में कोशिश की लेकिन चार अंक कम होने पर लक्ष्य छूट गया। कोमल अपने मजबूत इरादों के साथ इंटरनेट मीडिया, समाचार-पत्र, कालेज शिक्षकों के सहयोग और दिनरात की मेहनत से वर्ष-2018 में एसएससी सीजीएल ( कर्मचारी चयन आयोग संयुक्त स्नातक स्तर) की परीक्षा दी। इस बार कोमल एक के बाद एक पड़ाव पार करती चली गई। वर्ष-2021 में कोमल को ट्रेनिंग में शामिल होने का मौका मिला। कोमल आज महाराष्ट्र के नासिक में जीएसटी इंस्पेक्टर के पद पर तैनात है। कोमल के अनुसार उसका अगला लक्ष्य संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा उत्तीर्ण करना है।

यह तो हम सभी जानते हैं कि संघ लोक सेवा आयोग (यू०पी०एस०सी०) सिविल सेवा परीक्षा आयोजित कराता है, और यह देश की एक कठिन व प्रतिष्ठित परीक्षा है। फिर भी लाखों युवा छात्र देश के कोने-कोने से इस परीक्षा की तैयारी करते हैं और एक आई०ए०एस० अफसर बनने का सपना देखते हैं। यदि हम इस परीक्षा की प्रक्रिया व प्रकृति को देखें तो हम पायेंगे कि इस परीक्षा में सफलता पाने के लिये हमें चाहिये कि हम एक सटीक रणनीति और व्यवस्था के साथ तैयारी करें। सामान्यत: एक अभ्यर्थी यदि इस परीक्षा की तैयारी स्नातक स्तर से ही शुरू कर दें तो यह भी संभव है कि इस सेवा में जाने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है, और अभ्यार्थी सफलता पूर्वक इस प्रतिष्ठित सेवा में अपना भविष्य निर्धारित कर सकते हैं ।

मुख्यत: इस कठिन परीक्षा में सफलता पाने के लिये अभ्यर्थीयों में शैक्षिक योग्यता के साथ अनुशासन व धैर्य होना अतिआवश्यक है, और एक समझदार अभ्यर्थी को यह चाहिये कि वह इस परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले यह निर्धारित करले कि उसमे पर्याप्त व उचित योग्यता, अनुशासन और धैर्य है, जिससे वह इस परीक्षा में निश्चित सफलता प्राप्त कर सके । सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए सामान्यत: दो से तीन वर्ष का समय पर्याप्त माना जाता है, परन्तु यह भी आवश्यक है कि एक अभ्यर्थी अपने पठन/पाठन तथा उसकी विषयवस्तु की समझ व आधारभूत आवश्यताओं का पालन करें। यदि ऐसा हो तो इस परीक्षा में सफलता मिलने की संभावना और अधिक बढ़ जाती है, और यह योजना एक अभ्यार्थी अपनी स्नातक शिक्षा के साथ-साथ बना व समझ सकता है।

इस परीक्षा की तैयारी के प्रारंभ मे अभ्यार्थी को सर्वप्रथम एन०सी०ई०आर०टी० (NCERT) की किताबों का अध्ययन करना होगा, जिससे छात्र अपनी क्षमता का भी विकास कर पायेगा। साथ ही साथ सिविल सेवा परीक्षा के पाठ्यक्रम का अध्ययन भी इस परीक्षा की तैयारी की दृष्टि से अति आवश्यक है, याद रहे कि योजना और रणनीति के अनुसार ही सभी प्रकार के अध्ययन कार्य का अनुपालन करना होता है। आम तौर पर यह पाया गया है कई छात्र अपनी स्नातक शिक्षा में चयनित विषयों मे से ही एक विषय इस परीक्षा के मुख्य चरण के लिये चुनते है, और विषय निर्धारित करने के उपरांत अभ्यार्थी को अपनी स्नातक शिक्षा के चलते ही चयनित वैकल्पिक विषय का अध्ययन शुरू कर देना होता है। इसके लिये छात्र उस विषय के अनुरूप किताबें व अध्ययन सामग्री का चयन कर सकते हैं।

जिसने बचपन बेहद गरीबी में काटा, स्कूल जाने के लिए उसे रोजाना 70 किमी का सफर करना पड़ता था. इतना ही नहीं पिता का हाथ बंटाने के लिए चाय की दुकान पर काम तक किया. लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी मजदूरों की जिंदगी ही क्या है वे दिन-रात मेहनत कर दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं। उनके बच्चे बहुत बार उन्ही घरों में पल-बढ़ रहे होते हैं जहां वे काम कर रहे होते हैं। इनके सिर पर छत तक नहीं होती ऐसे में बच्चों को स्कूल भेजना पढ़ाना तो दूर की बात। ऐसे ही केरल का वायनाड एक आदिवासी इलाका है। ये इतना पिछड़ा इलाका है कि लोग यहां स्कूल और पढ़ाई लिखाई को जानते तक नहीं।  बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। यहां बच्चे जंगलों में रहकर मां-बाप के साथ या तो टोकरी, हथियार बनाने में मदद करते हैं या मजदूरी करते हैं। इसी इलाके में एक मनरेगा मजदूर भी थे जिनकी बेटी ने गांव की पहली आईएएस अफसर बन इतिहास रच दिया। गरीबी में पली-बढ़ी इस लड़की ने अपने बुलंद हौसलों से पूरे देश में ख्याति

इतने गरीब परिवार में जन्म लेने की वजह से  बचपन से ही बुनियादी सुविधाओं का अभाव रहा। उनके पिता ने मनरेगा में मजदूरी करके अपने बच्चों को पाला था और बेटी ने अफसर बनकर इतिहास रच दिया। सबका गुजारा सिर्फ और सिर्फ पिता की आय पर निर्भर था। पिता ने कहा, “हमारे जीवन में तमाम कठिनाइयां थीं, लेकिन हमने कभी भी बच्चों शिक्षा से समझौता नहीं किया। आज हमें वो अनमोल तोहफा दिया है जिसके लिए हम संघर्ष करते रहे। हमें उस पर गर्व है।” श्रीधन्या ने सेंट जोसेफ कॉलेज से जूलॉजी में स्नातक की पढ़ाई करने के लिए कोझीकोड का रुख किया था और कालीकट विश्वविद्यालय से पोस्ट-ग्रेजुएशन किया।

पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में क्लर्क के रूप में काम करने लगी। कुछ समय वायनाड में आदिवासी हॉस्टल की वार्डन भी रही। एक आईएएस अधिकारी का रूतबा देखकर wo काफी प्रभावित हुई थीं और तबसे उन्होंने ठान ली कि वो भी अफसर बनकर ही दम लेंगी। कॉलेज के समय से उनकी सिविल सेवा में दिलचस्पी हो गई तो उन्होंने जानकारी जुटाई और लक्ष्य को साध लिया। इसके बाद उन्होंने यूपीएससी के लिए ट्राइबल वेलफेयर द्वारा चलाए जा रहे सिविल सेवा प्रशिक्षण केंद्र में कुछ दिन कोचिंग की। उसके बाद वो तिरुवनंतपुरम चली गई और वहां तैयारी की। इसके लिए अनुसूचित जनजाति विभाग ने क्षीधन्या को आर्थिक मदद भी की।

और वो दिन भी आया जब श्रीधन्या ने सिविल सेवा परीक्षा मे रैंक हासिल की। पर उनकी मुश्किलें यही कम नहीं हुईं। मुख्य परीक्षा के बाद जब उनका नाम साक्षात्कार की सूची में आया, तो इसके लिए उन्हें दिल्ली जाना था पर पास में पैसे नहीं थे। वो बताती हैं कि, उस समय मेरे परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं केरल से दिल्ली तक की यात्रा खर्च वहन कर सकूं। यह बात जब मेरे दोस्तों को पता चली, तो उन्होंने आपस में चंदा इकट्ठा करके चालीस हजार रुपयों की व्यवस्था कर दी, जिसके बाद मैं दिल्ली पहुंच सकी। तीसरे प्रयास में यह सफलता प्राप्त की थी। परीक्षा पास होने के बाद जैसे ही unhone अपनी मां को फोन किया और यह जानकारी दी। इसके बाद कई मीडियाकर्मी मेरे उनके पहुंच गए। उनका घर बेहद खराब हालत में था। पूरा घर कच्चा था, टूटे-फूटे घर में ही सपरिवार unke इंटरव्यू हुए। एक के बाद एक इंटरव्यू वो देती गईं। इतना ही नहीं कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी भी उनसे मिलने उनके घर पहुंची थीं।

बार-बार मेहनत करने पर अपेक्षित परिणाम न मिलने से निराशा होना स्वाभाविक है, लेकिन कई बार परिस्थितियों की वजह से भी सफलता हाथ नहीं लगती। इसके लिए सीधे-सीधे खुद को जिम्मेदार न ठहराएं और स्थिति का आकलन करें। अगर मेहनत करना छोड़ देंगे, तो सफलता की संभावना का फीसद शून्य रह जाएगा। कहां पीछे रहे, केवल यह पक्ष देखने के बजाए कहां अच्छा प्रदर्शन किया इस पर भी गौर करें। औसत विद्यार्थी पढ़ाई के लिए गंभीरता रखते हैं और आगे बढ़ने के मौके तलाशते हैं। यही सकारात्मकता उन्हें कामयाब बनाती है। स्कूल या कालेज में होने वाली गतिविधियों में विद्यार्थियों की भाग लेने की इच्छा होती है लेकिन कुछ विद्यार्थी शर्म और हार के डर से पीछे हट जाते हैं। ये सब बातें उन्हें आज कल के बच्चों के लिए कहीं.. सपना देखने के बाद उसे अपने जीवन में मुख्य लक्ष्य बनाकर कड़ी मेहनत करनी चाहिए। मेहनत सही दिशा में होनी चाहिए तभी सपनों को साकार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कोई भी मुकाम अनुशासन में रहकर ही हासिल होता है। वहीं एक अन्य वक्ता संजय कुमार ने कहा कि जीवन में सफलता एक असीमित अध्याय की तरह से है। सफलता का सफर व्यक्ति के जीवन के साथ ही पूरा होता है। विश्वास ने कहा कि एक मुकाम हासिल होने के बाद मनुष्य को दूसरे लक्ष्य का निर्धारण करके मेहनत शुरू कर देनी चाहिए।

 

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