इसके बाद एक बार फिर उसी रात हम लोग घटनास्थल पर गए, तो कुछ लोगों से पूछताछ की। ज्यादातर लोग घर जा चुके थे। इस दौरान वहां दुकान से संबंधित कुछ लोगों से बात की गई, तो पता चला कि जब आप लोग उस बैग वाले आदमी से उलझे हुए थे, उसी समय ये दरागा जी गैलरी से बहुत तेज से भागते हुए गए। इनके हाथ में पिस्टल थी और जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। आगे कम से कम 3 लोग भाग रहे थे। इसी भागदौड़ में आरके सिंह जब पार्किंग तक पहुंचे तो यहां पार्किंग में तारों की बाड़ में फंस गए और गिर पड़े। इस दौरान भागने वाले आदमी सड़क पार कर दारुलशफा के गेट के भीतर जा चुके थे। आरके सिंह को गिरा देख वह तीनों वापस आए। इनके हाथ में जो पिस्टल थी, वो छिटक गई थी। यह उठने का प्रयास कर रहे थे। तभी एक ने इनकी पीठ पर पैर मारा और बाकी दोनों ने मिलकर पिस्टल छीन ली। इसके बाद एक शख्स ने इनकी कनपटी से सटाकर जितनी भी गोलियां पिस्टल की मैगजीन में थी, सारी चला दीं।
फिर उन्होंने पिस्टल की डोरी खींचकर तोड़ी और दारुलशफा से निकलकर फरार हो गए। राजेश पांडेय कहते हैं कि अचरज की बात थी कि दारुलशफा में अच्छी खासी भीड़ रहती है। तमाम जगह संत्री की तैनाती रहती है, वहां बालकनी से साफ दिखाई देता है लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया। हम लोग पूरी रात इस उलझन में रहे। नहीं पता चला कि कौन आदमी थे और कहां फरार हो गए? अगले दिन पोस्टमॉर्टम हाउस में गमगीन माहौल था। वहां पूरा पुलिस महकमा, पत्रकार और परिवार के लोग थे। इसी बीच पोस्टमॉर्टम हाउस में अंदर से एक आदमी बाहर आया, उसने बताया कि 9 गोलियां लगी हैं, कनपटी पर लगी हैं। उनकी जेब से एक हनुमान चालिसा, एक पर्स जिसमें कुछ रुपये और श्रीप्रकाश शुक्ला की एक फोटो मिली है।
इसके बाद पुलिसलाइन में उन्हें अंतिम सलामी दी गई। बेहद दारुणिक दृश्य था। इसी बीच सत्येंद्र वीर सिंह ने हमसे कहा कि सुबेश कुमार सिंह साहब सिर नीचे किए हुए हैं, हमें उनके पास चलना चाहिए। हम पहुंचे तो देखा सुबेश कुमार सिंह फफक-फफककर रो रहे हैं। बेहद कठोर हृदय के व्यक्ति जिनसे सामान्य रूप से किसी की सामान्य बात करने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। उन्होंने हमसे कोई बात नहीं की और चुपचाप गाड़ी में बैठे और चले गए। हम और सत्येंद्र वीर सिंह साहब एक साथ बैठे और चले गए। दफ्तर पहुंचे तो सुबेश कुमार सिंह साहब भी गाड़ी से उतर रहे थे, हम लोग जैसे ही उनके करीब पहुंचे तो देखा कि उनकी आंखें लाल हो गई हैं। लेकिन उन्होंने कोई बात नहीं की। हम लोग वहां से चले आए।
हम वापस अपने काम में लग गए। सभी का मन बेहद खराब था। कुछ सूझ नहीं रहा था। एक दिन एसएसपी सुबेश कुमार सिंह साहब ने सभी को बुलाया और वहीं पर ये दृढ़ निश्चय किया गया कि आरके सिंह की मौत का बदला लिया जाएगा। हम तब तक चुपचाप नहीं बैठेंगे जब तक श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके गैंग को पकड़ नहीं लेते।