Jawan

कारगिल युद्ध के बारे में किसने नहीं सुना होगा ? 1999 की लड़ाई हमें independence struggle को दिखाती है। हम सब जानते हैं कि इस देश को आजाद कराने में कितने लोगों ने अपनी खून की कुर्बानी दी है । आज मैं हिमालय को बचाने वाले ऐसे वीर जवान की कहानी सुनाऊँगी । उनका नाम है योगेंद्र सिंह यादव । इनके नाम कई रिकॉर्ड शामिल है।

 

योगेंद्र यादव का जन्म 10 मई 1980 को हुआ था उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के औरंगाबाद अहीर गांव में । वे बचपन से ही काफी talented थे । वे फौजी परिवार से हैं, उनके पिता राम करण सिंह यादव ने कुमाऊं रेजिमेंट से 1965 और 1971 के युद्ध में लड़ाई की थी और अपने बेटे को भी इसके लिए encourage किया। इतना ही नहीं उनके दोनों बड़े भाई भी भारतीय सेना में है और वह बचपन से ही एक बहादुर सिपाही की कहानियां सुनकर बड़े हुए। इनके बड़े भाई जितेंद्र सिंह यादव की भारत की आर्टिलरी branch में है इसलिए उन्होंने भी फौज में जाने की इच्छा रखी। ये महज 16 साल 5 महीने की उम्र में मैट्रिक पास करने के बाद सेना में भर्ती हो गए और उनके छोटे भाई भी International company में काम करते हैं।

 

आइए जानते हैं उनकी bravery के बारे में

 

ग्रेनेडियर यादव यानी योगेंद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर्स के साथ काम कर रहे कमांडो प्लाटून ‘घातक’ का हिस्सा थे, जो 4 जुलाई 1999 के शुरुआती घंटों में tiger hill पर तीन bunkers पर कब्ज़ा करने के लिए नामित की गयी थी। वह bunker काफी height पर था, और आतंकवादी बर्फ से ढके हुए इस 1000 फुट ऊंची चट्टान के top पर बैठे थे। यादव अपने ही चट्टान पर सबसे पहले चढ़ गए और future में ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए रस्सियों को ऊपर बाँधा । आधे रस्ते में एक दुश्मन वाले bunker ने मशीन गन और rocket fire खोल दिया जिसमे प्लाटून कमांडर और दो जवान शहीद हो गए। अपने गले और कंधे में तीन गोलियां लगने के बावजूद, यादव बचे हुए 60 फीट चढ़ गए और top पर पहुंचे। बहुत बुरे रूप से घायल होने के बावजूद वह पहले bunker में घुस गए और एक granade से चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और दुश्मन को shock में डाल दिया, जिससे बाकी प्लाटून को ऊपर चढ़ने का मौका मिला। grenadier बताते हैं कि जब सारे पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जवानों को गोली मारी तो उन्होंने सब की dead body को चेक किया कि कोई ज़िंदा बचा है या नहीं। उन्हें जब कोई movement दिखी योगेंद्र सिंह यादव की बॉडी में, तो उन्होंने उनके सीने में एक गोली मारी पर वह किस्मत से बच गए क्योंकि उनकी पॉकेट में कई सिक्के थे। ये कहानी सुनने में तो काफी interesting लगती है लेकिन जब ये reality में हो रहा होगा तब आप समझ सकते हैं कि उनकी हालत क्या रही होगी।

 

ये बहादुरी salute deserve करती है। उसके बाद यादव ने अपने दो साथी सैनिकों के साथ दूसरे bunker पर हमला किया और हाथ से हाथ की लड़ाई में चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार डाला । अतः प्लाटून टाइगर हिल पर कब्जा लेने होने में सफल रही। यह पल पूरे प्लाटून के लिए गर्व से भरा था और योगेंद्र सिंह यादव और उनकी वीरता को सम्मान देने के लिए सरकार ने अहम फैसले लिए।

 

ग्रेनेडियर यादव को परमवीर चक्र से सम्मानित करने का सरकार ने फैसला किया लेकिन वहां पर बहुत बड़ा confusion हो गया क्योंकि उसी प्लाटून में एक और जवान योगेंद्र सिंह यादव के नाम के थे जो लड़ाई में शहीद हो गए थे। तो ग्रेनेडियर यादव को लगा कि यह सम्मान उनके शहीद दोस्त के लिए ही की गई थी जो उनके ही पड़ोसी जिले मेरठ के थे। वे शहीद योगेंद्र सिंह यादव के बहुत अच्छे दोस्त थे लेकिन जल्द ही पता चला कि मेरठ के शहीद योगेंद्र सिंह यादव को sena medal मिला है। तेरी ये confusion clear हुआ कि परमवीर चक्र बुलन्दशहर के योगेंद्र सिंह यादव को मिलने वाला है जो फ़िलहाल treatment के लिए दिल्ली में army referral hospital में admit हैं। तब उस time के सेना के अध्यक्ष वेद प्रकाश मलिक वहाँ पहुंचे और योगेंद्र सिंह को देश के सबसे बड़े सैन्य पुरस्कार की स्थापना जानकारी और बधाई दी। पूरी army उनके लिए बहुत खुश थी और सबने personally आकर बधाई दी। उन्हें अब इतने घावों से recover होने में ही काफी समय लग गया।

 

ये कितने हिम्मत की बात है कि एक 19 साल के सैनिक ने 15 गोलियां खाकर भी देश के लिए लड़ाई की और इस लड़ाई को जान की बाजी लगाकर जीता। दुश्मन की इतनी गोलियां खाकर भी अदम्य इतने bravery के साथ कारगिल war में टाइगर हिल top को जीतने में important भूमिका निभाने के कारण भारत के president द्वारा परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

 

Generally ऐसा होता नहीं, मतलब जितने भी लोगों को medals मिले उसमें से कई सैनिक शहीद हो चुके थे । कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव और बहुत कम जवान ही जिंदा रहकर सम्मान ले पाए। चक्र पाने वाले देश के सबसे young सैनिक हैं। कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव को टाइगर हिल का tiger भी कहा जाता है। वे जब कौन बनेगा करोड़पति शो में अमिताभ बच्चन के specially बुलाने पर अपने साथी परमवीर चक्र पाने वाले सूबेदार संजय कुमार के साथ वहां गए और जीते गए पूरे amount को army welfare fund में दान कर दिया। देश की सेवा के लिए साल 2014 में इनको उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के सबसे बड़े award यश भारती से सम्मानित किया । य़ह पूरे आर्मी और देश के लिए बहुत pride को बात है। Bollywood ने 2003 में LOC कारगिल फिल्म बनाई जिसमें इनका रोल देखने को मिला जिसे मनोज बाजपेई ने निभाया वह भी बहुत गर्व के साथ। उन्होंने उनके किरदार के साथ पूरा justice किया। आज वो 42 साल के हैं और इसी साल एक जनवरी को retire हो गए। 2022 में हमारे president रामनाथ कोविंद ने उन्हें 75वे independence day के मौके पर captain पद से नवाजा और इसी के साथ उन्होंने अपनी army life को अलविदा कहा है। उनके जीवन के और भी कई award है जो उन्हें उनकी bravery के लिए जो आगे भी मिले।

 

 

दोस्तों इनकी को कहानी पढ़कर आप बहुत motivate हुए होंगे और 2023 में आने वाली फिल्म jawan से भी हम यही उम्मीद रखते हैं और शायद इसकी कहानी भी ऐसी हो सकती है। इसलिए हमें भी इस फिल्म का बहुत बेसब्री से इंतजार है और इस कहानी से शाहरुख खान से हमें बहुत उम्मीदें हैं।

Kshamashree dubey

 

 

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