Jawan
अमृत फूलता है ।
मुझमें संहार झूलता है ।
महान कवि दिनकर ने जब यह कविता लिखी होगी तब उन्हें भी अंदाजा नहीं होगा कि भारत माता का एक सपूत इसे रणभूमि में सही साबित कर देगा। राष्ट्रीय परमवीर चक्र से सम्मानित और देश प्रेम से भरे हुए शहीद राइफलमैन “जसवंत सिंह रावत” की कहानी सुनकर आज भी हर भारतीय की छाती गर्व से फूल जाती है और सरहद पार दुश्मनों का गला सूखने लगता है । शहीद जसवंत सिंह जिनके बारे में यह प्रचलित है कि उन्होंने पूरी चीनी सेना का मुकाबला अकेले किया था और एक ऐसा द्वार थे जिसे भेजने से पहले चीन को अपनी सेना के 300 जवानों की आहुति देनी पड़ी थी।
1962 की लड़ाई में अपनी घुसपैठ की strategy को आगे बढ़ाते हुए चीनी सेना अरुणाचल की सीमा में घुस आई थी । पर वह इस बात से अनजान थे कि उनका काल बनकर स्वयं जसवंत सिंह रावत उनके लिए अपनी पोस्ट पर उनका इंतजार कर रहे हैं। 17 नवंबर 1962 कि सुबह चीनी सैनिकों ने सेना top पर चढ़ाई शुरू कर दी। अचानक हुई घुसपैठ के चलते वहां के गढ़वाल rifles इस घुसपैठ के लिए तैयार नहीं थे साथ ही संख्या में कम होने के कारण है फॉर्म को छोड़कर पीछे हटने का आर्डर दिया गया, पर जसवंत सिंह रावत तो बचपन से ही खुमार था, उन्हे वहां से हटना ना मंजूर था और उन्होंने वहीं डटे रहने का फैसला किया। उन की शौर्य गाथा इसीलिए लोगों को आज भी मुंह जबानी याद है ।चीनी सेना पहले भी इसी पोस्ट पर तीन बार हमला कर चुकी थी पर हर बार भारतीय सेना के आगे उसे मुंह की खानी पड़ी ।जसवंत सिंह इस बार अकेले थे पर इस बात से भयभीत नहीं थे।पर जब भारतीय जवानों से भयभीत चीन के सैनिक अभी भी डर के कारण अभी भी धीरे-धीरे कदम आगे बढ़ा रहे थे।उनके इसी डर को देखकर जसवंत ने थोड़ी थोड़ी दूरी पर rifles position कर दी और बार बार अपनी जगह बदल बदल कर फायर करने लगे। और चीनी सिपाही उन खतरों से निपटने के लिए व्यस्त हो गए जो वहां कभी थे ही नहीं। 72 घंटे यानी 3 दिन तक चली लड़ाई में जसवंत सिंह भूख प्यास भुलाकर भारत माता के लिए लड़ने में लग गए। कहा जाता है कि उनकी भक्ति से प्रभावित होकर अरुणाचल की दो लड़कियां sela और noora उनके साथ लग गई थी। इन दोनों का सेना से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था पर यह जसवंत सिंह की का मातृप्रेम था जिसकी वजह से वह भी अपने आप को रोक ना पाए। 300 सिपाही मारे जा चुके थे और सामने से हुए हमले में सेना भी मारी जा चुकी थी जसवंत सिंह तब भी बहादुरी से लड़ रहे थे पर जब noora जसवंत सिंह के लिए खाना लेने निकली तो और उसे चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया ना चाहते हुए भी उसे भारतीय पोस्ट का यह secret बताना पड़ा ।यह सुनकर चीनी सैनिक और भी ज्यादा भोकला गए कि 3 दिनों तक कोई एक भारतीय सैनिक उनकी सेना से अकेले कैसे लड़ सकता था। जसवंत सिंह को जब समझ आया कि उनका secret खुल चुका है तो उन्होंने चीनी सेना के हाथों मारे जाने से अच्छा एक गोली खुद को ही मार ली और ऐसे वह वीरगति को प्राप्त हुए ।यह भी कहा जाता है कि इतने पर भी जब चीनी सैनिकों का मन नहीं भरा तो उन्होंने बहुत बर्बरता से जसवंत सिंह का सिर धड़ से अलग कर दिया। जसवंत सिंह की बहादुरी से भारतीय सेना को इतना मनोबल मिला कि उन्होंने चीनी सेना को border से खदेड़ दिया ।चीनी से युद्ध के बाद चीनी सेना ने जसवंत सिंह का सर भारतीय सेना को वापस कर दिया साथ ही पराक्रमी सिपाही की मूर्ति बनवा कर भारत भेजी गई।
यदि spot memorial में जाया जाए तो जसवंत सिंह से जुड़ी और कई बहादुरी की कहानियां उनके साथियों ने खुद ही बताइ। इस कहानी के मुताबिक चीन का चौथा हमला बहुत ही आत्मघाती था चीनी सैनिक मशीन गन लेकर भारतीय सेना पर हमला बोल रहे थे ।जहां भारतीय सेना पूरे जज्बे के साथ उनका मुकाबला कर रही थी ,वही चीनी सैनिकों के पास बेहतर हथियार होने के कारण भारी पड़ रहे थे। इस बीच rifleman जसवंत सिंह और rifleman गोपाल सिंह ने मिलकर चीनी सेना को निरस्त करने का एक plan बनाया और आगे बढ़े।दोनो ने अपना नाम को रखा और गोलाबारी के बीच बच बचा कर चीनी post पर पहुंचे। उनकी मशीन गन खराब करने के बाद उन्होंने आगे बढ़कर चीनियों पर granades से हमला चालू किया औ इस पूरे operation में गोपाल सिंह शहीद हो गए और उनकी और rifleman जसवंत सिंह की हिम्मत और देश देशभक्ति के कारण एक बार फिर भारतीय सेना ने चीनी सेना को पीछे खदेड़ दिया ।अरुणाचल के उस इलाके का नाम अब जसवंतगढ़ रख दिया गया है ।
ऐसे ही जाबाज़ जवान की कहानी होने वाली है film Jawan की!
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