Indian army की बड़ी मुश्किल!
आज की कहानी शुरू होती है 5th June की Ek दर्दनाक घटना से मणिपुर में इंडियन आर्मी की बस पर अलगाववादि हमला कर देते हैं और इस हमले में इंडियन आर्मी के 18 जवान शहीद हो जाते हैं, जिसका बदला लेने के लिए 5th June 2015 की शाम जनरल दलबीर सिंह दिल्ली से इंफाल के लिए निकल जाते हैं जहां 3 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत उन्हें पूरी सिचुएशन के ऊपर ब्रीफ करते हैं। यह एक कंट्रा हाई लेवल की ब्रीफिंग थी जिसमें लेफ्टिनेंट कर्नल ऑस्कर डेल्टा उनके सीओ के अलावा बस कुछ चुनिंदा ऑफिसर को शामिल किया गया था। लेफ्टिनेंट जनरल रावत आर्मी चीफ को बताते हैं कि मणिपुर के हमलावर बॉर्डर क्रॉस कर चुके हैं और इस समय विदेशी धरती पर छुपे हुए हैं लेकिन उनके भारतीय कमांडोज की पहुंच से दूर नहीं है यह कहते हुए, लेफ्टिनेंट जनरल रावत बोर्ड पर लगे मैप के ऊपर घुसपैठियों के कैंप की लोकेशन को mark कर देते हैं। map मणिपुर, नागालैंड और म्यांमार के इलाके दर्शा रहा था। कोर कमांडर रावत से शुरुआती प्लेन सुनने के बाद आर्मी चीफ दलबीर सिंह यहां मौजूद ऑफिसर से कहते हैं जेंटलमैन, हमारे इस ऑपरेशन को खुद पीएम ने approve किया है और रक्षा मंत्री से व्यक्तिगत रूप से सुपरवाइजर करेंगे, इस बार हमारे पास सरकार की फुल सपोर्ट और फुल बैकिंग है। यह सुनते ही लेफ्ट एंड कर्नल डेल्टा के चेहरे पर एक मुस्कान सी आ जाती है और यह टॉप सीक्रेट मीटिंग खत्म होते-होते साफ हो जाता है कि अगले 72 घंटों के भीतर उनके अंदर दाहत रही प्रतिशोध की ज्वाला शांत हो जाएगी। पैरा एसएफ को बॉर्डर क्रॉस कर म्यानमार के अंदर सर्जिकल स्ट्राइक करने की अनुमति दे दी गई थी, स्ट्राइक जीने दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार समय आने पर पूरी दुनिया के सामने स्वीकार भी करने वाली थी याह मौजूदा ऑफिसर्स को सुसमाचार देते हुए आर्मी चीफ दलबीर सिंह आगे कहते हैं जेंटलमैन सर्जिकल स्ट्राइक को 7 जून की सुबह एक्जिक्यूट किया जाएगा and this mission will be called operation sunrise. इस ऑपरेशन के तहत पैरा कमांडो Myanmar के अंदर दो मुखी धावा बोलने वाले थे। नागालैंड और मणिपुर से पैरा एसएफ की दो टीमें Myanmar के जंगलों में घुस वहां मौजूद अलगाववादियों और उनके कैंप का संपूर्ण विनाश करना था। मैक्सिमम डैमेज के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा के स्कॉट को हिट करना था। जहां अलगाववादी सबसे ज्यादा संख्या में छिपे हुए थे ब्रीफिंग के तुरंत बाद, ही लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा ऐसे कैंप को सेलेक्ट करने में लग जाते हैं जहां उनके अनुसार इस समय अलगाववादी खुद को सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे होंगे और सैकड़ों सैटेलाइट इमेजेस और कम्युनिकेशन को खंगालने के बाद ऑस्कर डेल्टा Myanmar के जंगल में स्थित 3 camp को सेलेक्ट कर लेते हैं। अलगाववादियों से भरे इन कैंप के ऊपर डेल्टा के स्कॉट को मणिपुर से attack लांच करना था और ठीक इसी समय नागालैंड में पोस्टेड एक पैरा स्कॉट को भी बॉर्डर पार जा पहले से सेलेक्ट किए गए कैंप पर धावा बोलना था। नागालैंड वाले स्कॉटके लिए अपने टारगेट तक पहुंचना कोई jada मुश्किल बात नहीं थी, लेकिन मणिपुर में बैठे लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा के सामने समस्या बड़ी problem आ खड़ी हुई थी, समस्या जिसका नाम था दूरी। म्यानमार मैं स्थित यह कैंप जंगल के बहुत ज्यादा अंदर थे और इन के ऊपर केवल 2 दिनों में मणिपुर से स्ट्राइक करना बहुत ज्यादा कठिन साबित हो सकता था, लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा जानते थे कि ऑपरेशन की सफलता को सुनिश्चित करने का उनके सामने केवल एक ही मार्ग है, D DAY की उनके आकलन के अनुसार कैंप की दूरी को ध्यान में रखते हुए उन्हें और ज्यादा समय की आवश्यकता थी। इसके अलावा वह एक और प्रॉब्लम से भी जूझ रहे थे, 5 जून के दिन मणिपुर में पैरहैप्स के मात्र 40 कमांडो ही मौजूद थे, यही कारण था कि यूएन पीसकीपिंग पर जाने के लिए पालम एयर बेस पर खड़े उन 100 कमांडो को कांगो की जगह मणिपुर आने का आदेश दे दिया गया था. लेकिन यह कमांडो 6 जून की सुबह होने से पहले यहां नहीं पहुंच सकते थे. is mission ko smoothali manage करने के लिए, कोर कमांडर बिपिन रावत अपने हेड क्वार्टर को नागालैंड के दीमापुर से इंफाल शिफ्ट करवा लेते हैं। इस समय तक लेफ्टिनेंट जनरल रावत इंडियन आर्मी में लेजेंड का दर्जा प्राप्त कर चुके थे और एक लेजेंट को अपने बीच देखकर कमांडोज का मनोबल काफी ऊपर चला गया था। lieutenant colonel delta द्वारा सिलेक्ट किए गए तीनों एक-दूसरे के साथ बने हुए थे पर इंटेलिजेंस रिपोर्ट के अनुसार लगभग 100 अलगाववादी मौजूद थे, जिसका मतलब यह था कि केवल 40 कमांडो के साथ इस मिशन को अंजाम देना संभव तो था, लेकिन साथ ही थोड़ा सा खतरनाक भी, इसीलिए 5 जून को आदि रात के बाद लांच की तारीख को 2 दिन और आगे बढ़ा दिया जाता है. ऑपरेशन sunrise को अब 7 की जगह 9 जून के दिन लांच किया जाना था, 2 दिन और मिलने का मतलब था कि अपने टारगेट तक पहुंचने के लिए भारतीय कमांडो के पास पर्याप्त समय था, इसीलिए चैन की सांस लेने के बाद lieutenant colonel delta अपने कमांडो को कुछ घंटे सोने का आदेश देते हुए कहते हैं, “कमांडोज पता नहीं फिर कब ठीक से सोने को मिलेगा इसीलिए थोड़ी देर के लिए सो जाओ और कोई गपशप nhi or ना ही मोबाइल पर कोई चैटिंग” अगले दिन, सूर्योदय से पहले कुछ शॉट ब्रीफिंग के बाद, पैरा एसएफ के कमांडो अपने मिशन पर निकलने के लिए तैयार हो जाते हैं. इस मिशन के बारे में कुछ मुट्ठी भर ऑफिसर के अलावा और कोई कुछ नहीं जानता था. स्ट्राइक कब होनी है, कहां होनी है? मणिपुर, नागालैंड से टीम सीमा तक कैसे पहुंचेगी? इस प्रकार की डिटेल्स ऑपरेशन की प्लानिंग में शामिल कमांड एनएसए अजीत दोवाल और रक्षा मंत्री मनोहर पारिकर के अलावा किसी के पास नहीं थी. सर से पैर तक पूरी तरह हथियारों से लदे पैरा एसएफ के ये 64 कमांडो को लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा ने खुद अपने हाथों से चुना था। ऑपरेशन सनराइज के लिए, कमांडोज अपने साथ कार्ल गुस्ताव 84mm, रॉकेट लांचर, क्लीनिक मशीन star 21 asort rifles, COLT M4 CARBINE, AK 47, 7.62 एमएम की स्निपर राइफल्स और अंडर बैरल ग्रेनेड कैरी कर रहे थे। लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा हर बार की तरह इस मिशन के लिए भी अपनी फेवरेट गन को चुना था।
प्लान के अनुसार पैरा एसएफ के कमांडोज को बॉर्डर पर MAUJUD पहले से निर्धारित एक लोकेशन पर पहुंचने के बाद वहां से म्यानमार के अंदर इनफील्ट्रेट करना था। कमांडो के मूवमेंट को जितना हो सके उतना गुप्त रखा जाना था क्योंकि इस मिशन की सफलता पूरी तरह एलिमेंट ऑफ सरप्राइस पर निर्भर करती थी, इस ऑपरेशन में अलगाववादियों को खतरे की जरा सी भी भनक लगने का केवल एक ही मतलब था मिशन फेल्ड। इसीलिए निर्णय लिया जाता है कि कमांडो को आर्मी ट्रक में बॉर्डर तक पहुंचाया जाएगा, जिससे एक रूटीन सा इन्फेंट्री मूवमेंट लगे हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करने का मतलब था बहुत ज्यादा शोर और इसीलिए air ड्रॉपिंग एअरलिफ्टिंग के आईडिया को पूरी तरह रूल आउट कर दिया जाता है। 7जून के दिन निकलने से पहले लैपटॉप करनाल ऑस्कर डेल्टा अपनी राइफल साथ खड़े कमांडो को थमा देते हैं। कमांडो तुरंत समझ जाता है कि उसका मिशन लीडर अब क्या करने जा रहा है, एक ऐसा काम जो हर मिशन से पहले जरूर करता है। ऑस्कर डेल्टा पहले तो घुटनों के बल नीचे बैठते हैं, अपनी हथेलियां जमीन पर टिकवा ते हैं और फिर अपने होठों से मिट्टी को चुम्मा शुरू कर देते हैं, उन्हें ऐसा करते देख यहां मौजूद हर एक कमांडो भी नीचे झुकने लगता है, पहले धरती को चूमता है और फिर अपने देश की मिट्टी से अपने माथे के ऊपर तिलक धारण कर लेता है। इसके ठीक अगले सेकंड आकाश इन शेरों की दहाड़ से कहां कांप उठता है। बलिदान परमो धर्मा… 7 जून को सुबह 5:00 बजे इन पैरा एसएफ कमांडो को म्यानमार बॉर्डर पर drop कर दिया जाता है. लेकिन इनके टारगेट बॉर्डर के उस पार अभी भी बहुत दूर थे, अटैक लांच करने से पहले कैंप को स्कैन करने के लिए पैरा स्कॉट को पहले से चुने गए पहाड़ की चोटी पर पहुंचना था, जिसका मतलब यह था कि जून के इस गरम महीने में, हर भारतीय कमांडो को लगभग 35 किलोग्राम वजन के साथ बिना रुके, बिना थके, अपने पैरों पर पूरे 40 किलोमीटर का सफर तय करना था। लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा एक सिपाही के रूप में तो अपना लोहा मनवा चुके थे, लेकिन यह अगले 48 घंटे कमांडर के रूप में उनके नेतृत्व की अत्यंत कठिन परीक्षा लेने वाले थे। आज उनके कंधों पर इस मिशन का भाग्य और 64 कमांडोज का जीवन तो निर्भर कर ही रहा था, लेकिन इन सबके अलावा एक और चीज ऐसी होती है जिस से बढ़कर एक पैरा कमांडो के लिए दुनिया में कुछ नहीं होता उसके राष्ट्र की प्रतिष्ठा।
तो कैसे भारतीय सेना अलगाववादियों से 5 जून का बदला लेती है यह मैं आपको अपनी नेक्स्ट वीडियो में बताऊंगा। तब तक आप मुझे comment section Mein batao abhi tak ki kahani aapko kaisi lagi.
Divanshu