Part 3
जिंदा बच पाएंगे mager!
मेजर ऋषि घर से बाहर आने के बाद काउंडाउन को रोकने का इशारा करते हैं तब उन्हें लगता है की अगर ID को और ज्यादा अंदर प्लांट किया जाए तो असर जादा होगा इसीलिए वह वापस घर में जाकर जैसे ही आईडी उठाते हैं,मेजर की नजर परछाई पर पड़ती है, उनका हाथ अपनी राइफल के ट्रिगर पर जाता है और उधर दुश्मन की बंदूक से निकली कई गोलियां सीधा उनको लग जाती है, उनके पैर हवा में उड़ जाते हैं और शरीर जमीन पर गिरने लगता है और इसी दौरान वह अपनी राइफल से उस परछाई के ऊपर एक भीषण अग्नि वर्षा कर डालते हैं। एक तरफ तो सीढ़ियों से उस आतंकी का बेजान शरीर रेत की बोरी की तरह नीचे गिरता है और दूसरी तरफ मेजर ऋषि भी जमीन पर पड़े होते हैं, इस समय मेजर ऋषि का आधे से ज्यादा चेहरा नीचे लटक रहा था, वह बोल नहीं पा रहे थे और उनकी दृष्टि भी धुंधली होते जा रही थी, लेकिन इस सबके बावजूद भी ये बब्बर शेर अपने चेहरे से गिर रहे मास के टुकड़ों को एक हाथ में संभालता है और दूसरे हाथ से ऊपर की तरफ फायरिंग करता हुआ अपनी कमर के बल इस मौत के पिंजरे से बाहर निकलने लगता है। जैसे मेजर ऋषि दरवाजे पर पहुंचते हैं, लांस नायक आवेश की नजर उन पर पड़ जाती है वो उनकी तरफ दौड़ना शुरू कर देते हैं, लेकिन तभी मेजर ऋषि अपना हाथ ऊपर उठा उनसे वहीं रुकने को कहते हैं उन्हें लग रहा था की दूसरा आतंकी अभी भी जीवित है और वह अपने buddy का जीवन खतरे में नहीं डालना चाहते थे 2 साल पहले उन्होंने अपनी टीम को वचन जो दिया था मेरे होते हुए तुम ताबूत या व्हीलचेयर में अपने घर नहीं जाओगे। वैसे तो तुम लोग ही मेरी असली ताकत हो लेकिन फिर भी दुश्मन की बंदूक से निकली हर गोली को तुम तक पहुंचने से पहले मेरा सामना करना होगा। यह मेरा तुम सब से वादा है। आज 2 साल बाद इस हालत में भी मेजर ऋषि अपनी टीम को दिया यह वचन खूब निभा रहे थे लेकिन इस समय वो और उनकी टीम नहीं जानते थे की दूसरा आतंकी सैफुल्ला भी दूसरी मंजिल पर मरा पड़ा है। इस बात से अंजान मेजर ऋषि किसी तरह घर से बाहर निकलते हैं और फिर खुद को दरवाजे पर बने 3 फुट ऊंचे चबूतरे से नीचे गिरा लेते हैं। उनके नीचे गिरते ही, लांस नायक आवेश के साथ दो और फौजी दोड़कर उनके पास पहुंच जाते हैं, जिसके बाद लांस नायक आवेश दूसरी मंजिल की दिशा में फायरिंग करने लगते हैं और बाकी दोनों फौजी मेजर ऋषि को खींच कंपाउंड से बाहर ले जाते हैं। एनकाउंटर साइड से सुरक्षित दूरी पर आने के बाद एक जिप में डाल मेजर ऋषि को पास ही बने हेलीपैड ले जाया जाता है। मेजर ऋषि की आंखें बंद हो रही थी लेकिन वह अभी भी जीप की सीट पर बिल्कुल सीधा बैठे हुए थे। जीप में मेजर ऋषि के साथ मौजूद मेडिक पूरे रास्ते बस उनके चेहरे को ही घूरे जा रहा था, वह जानता था की उसके पास जो मेडिकल सामान है उससे वह उनकी कोई सहायता नहीं कर सकता, कुछ मिनट बाद मेजर ऋषि को ले हेलीकॉप्टर श्रीनगर के 92 बेस हॉस्पिटल के लिए निकल जाता है. इधर नीचे उड़ता हुआ यह हेलीकॉप्टर श्रीनगर की तरफ बढ़ रहा होता है और उधर मेजर ऋषि की यूनिट का फौजी उनकी पत्नी को फोन मिलाता है। मेजर ऋषि की पत्नी अनुपमा भी इंडियन आर्मी मैं मेजर थी और इस समय मिलिट्री नर्सिंग सर्विस के under 92 base हॉस्पिटल में ही सर्फ कर रही थी। “जब उनकी यूनिट से call आया, तो मै ऋषि के कॉल के इंतजार में जाग ही रही थी। मुझे लगा की उनका ही फोन होगा, पर जब मैंने फोन उठाया, तो मुझे पता चला की उन्हें तो बहुत गंभीर चोटें आई हैं। मैं तुरंत हॉस्पिटल के लिए निकल गई और ट्रामा वार्ड में उनका इंतजार करने लगी। हॉस्पिटल पहुंचते ही सबसे पहले मेजर ऋषि की नजर अपनी पत्नी पर पड़ती है, लेकिन इससे पहले वह कुछ बोल पाते, एक डॉक्टर उनके पास आ जाता है। यह डॉक्टर जो अपने करियर में हर प्रकार का केस देख चुका था, जब मेजर ऋषि के चेहरे को देखता है तो इसके मुंह का रंग पीला पड़ जाता है, काफी ज्यादा खून बह जाने के कारण मेजर ऋषि की आंखें बंद होने लगती है, तो उनके पास खड़ा ये डॉक्टर उन्हें उठाने लगता है मेजर, आप बिल्कुल ठीक हो, आप को कुछ नहीं हुआ है, बस आपको सोना नहीं है please talk to me अपना आधे से ज्यादा चेहरा खो चुके मेजर ऋषि चाह कर भी बोल नहीं पा रहे थे, इसीलिए वह अपना बाया हाथ उठाते thumbs up का इशारा कर देते हैं और बहुत ज्यादा घबरा चुके इस डॉक्टर को हिम्मत देने के लिए अपने दूसरे हाथ से उसका हाथ हल्के से दबाने लगते हैं. 92 बेस हॉस्पिटल में जरूरी इमरजेंसी प्रोसीजर्स पूरा करने के बाद, मेजर ऋषि को दिल्ली स्थित इंडियन आर्मी के प्रतिष्ठित रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल ले जाने को कहा जाता है और अगले दिन की सुबह मेजर ऋषि और उनकी पत्नी इंडियन एयर फोर्स के C130 विमान से दिल्ली के लिए निकल जाते हैं। इसी दिन, यूनाइटेड जिहाद काउंसिल, जो जम्मू कश्मीर में एक्टिव पाकिस्तान आर्मी का संगठन है, आकिब और सैफुल्लाह की मौत पर शोक प्रकट करते हुए एक बयान जारी करता है। हाफिज मोहम्मद आकिब उर्फ आकिब मोहम्मद और सैफुल्लाह जम्मू कश्मीर के दो चमकते हुए सितारे थे, दो ऐसे हीरे थे जिनकी चमक कभी कम नहीं होगी, इन दोनों की कुर्बानी को हमेशा याद रखा जाएगा। कश्मीर के यह दोनों सितारों को बुझाने वाले मेजर ऋषि को कई दिनों के बाद उठने और बैठने की अनुमति दे दी जाती है, आठ सर्जरीज और अत्यंत मुश्किल
उपचार के बाद जब मेजर ऋषि बोलने की स्थिति में आते हैं तो वह सबसे पहले 18 मार्च के अखबार मांगते हैं। वह इन अखबारों में अपने haffo ऑपरेशन की खबरें पढ़ना चाहते थे, एक सफल ऑपरेशन जिसके दौरान वह कई बार नरक के मुंह में घुसे थे और जीवत वापस भी आए थे। दिल्ली के r&r में भर्ती होने के कुछ दिन बाद मेजर ऋषि की मां राजलक्ष्मी भी अपने बेटे से मिलने आती हैं। उनका बेटा जो अपना आधे से ज्यादा चेहरा हमेशा हमेशा के लिए खो चुका था, लेकिन अपने बेटे का पूरी तरह पाटियो से ढका हुआ चेहरा देखने के बाद भी ये मां अपनी आंखें नम नहीं होने देती उसके बेटे ने उस रात उससे ना रोने का वचन जो मांगा था। मेजर अनुपमा ने आने जाने वालों को साफ बोला हुआ था की कोई भी उनके पति के सामने रोएगा नहीं क्योंकि वह अपने पति के बारे में कुछ ऐसा जानती थी जो बाकी दुनिया को नहीं पता था। मेजर ऋषि हमेशा से ही एक मॉडल भी बनना चाहते थे, दूसरों को रोने के लिए मना करने वाली मेजर अनुपमा खुद लोगों से छुप छुप कर खूब रो रही थी, उसको बार-बार अपने पति की वह बातें जो याद आ रही थी, यार अनु मैं आर्मी से परमिशन लेकर कुछ मॉडलिंग असाइनमेंट करूंगा बोलो क्या कहती हो, आईने के सामने खड़े मेजर ऋषि अलग-अलग pose बनाते हुए यह कहा करते थे और फिर दोनों पति-पत्नी जोर जोर से हंसने लग जाते थे। मेजर ऋषि से सबसे पहले मिलने आए लोगों में उस समय के आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत भी शामिल थे, जबसे उन्होंने उनकी वीरता और चोटों के बारे में सुना था, वह खुद हॉस्पिटल जा उनसे मिलना चाहते थे। आर्मी चीफ के साथ हुई इस मुलाकात को याद करते हुए आज भी मेजर ऋषि की आंखों में आंसू आ जाते हैं, “एनकाउंटर के बाद श्रीनगर में जब मैंने अनुपमा को देखा तो मैं नहीं रोया। दिल्ली में जब अम्मा मुझसे मिलने आई मैं तब भी नहीं रोया, लेकिन जब चीफ मेरे सामने आए तब मैं अपने आंसू नहीं रोक पाया, मुझे यह सोच कर रोना आ रहा था की खुद इंडियन आर्मी के चीफ मुझसे मिलने आए हैं, पर मैं अपने इन दो पैरों पर खड़ा हो उन्हे सलूट तक नहीं कर पा रहा हूं”।
तो यह थी मेजर ऋषि की कहानी और इसी कहानी से इंस्पायर हो सकती है रैंबो फिल्म की कहानी।
Divanshu