मराठा साम्राज्य के शेर “महाराज संभाजी” में बगावती तेवर हमेशा रहे। यह खासियत तो खैर उन्हें खानदानी तौर पर मिली थी, क्योंकि उनके पिता शिवाजी महाराज को भी बगावती सुर अपनाना पड़ता था। महाराज संभाजी ने बचपन से ही देखा था कि, स्वराज्य हासिल करने के बीच मुगल सल्तनत का बादशाह औरंगजेब हमेशा टांग अड़ाता है।
दूसरी ओर औरंगजेब के कानों तक संभाजी महाराज के बारे में काफी बातें पहुंच चुकी थी और वह चाहता था कि, वो संभाजी महाराज को अपने सामने झुकाए।
वैसे संभाजी महाराज की बात करें तो उनमें शिवाजी महाराज की झलक दिखाई देती थी। बढी दाढ़ी, माथे पर तिलक, भारी वस्त्र, गले में मोती और रुद्राक्ष की माला, चमकदार आंखें और मुंह पर एक ही शब्द “जगदंब”। यानी कि देवी मां का नाम। और ऐसे योद्धा का जन्म साल 1657 में हुआ और सब लोग बचपन से ही उन्हें प्यार से शंभूराजे कहकर बुलाने लगे।
फिर साल 1680 में शिवाजी महाराज की मौत हो गई। अब गद्दी पर बैठने का हक था संभाजी महाराज का, पर उनकी सौतेली मां सोयरा बाई अपने बेटे राजाराम राजे को गद्दी पर बिठाना चाहती थी, जो सिर्फ 10 साल का था। और गद्दी पर बिठाने के लिए सोयराबाई के कानों में बहुत से लोग उल्टी-सीधी बातें बोल रहे थे, क्योंकि संभाजी महाराज से कुछ लोग जलते थे। जिसकी वजह से सोयरा बाई संभाजी महाराज से नफरत करने लगी थी और साजिशें करने लगी थी।
उनकी यह साजिशे पहचानते हुए सोयरा बाई के भाई हंबीरराव मोहिते के साथ संभाजी महाराज को बातचीत करनी पड़ी। उनसे उन्हें काफी लगाव भी था। हंबीरराव भी संभाजी को ही अगला राजा मान रहे थे, ना कि अपने सगे भांजे को।
फिर सत्ता में आने के बाद बुरहानपुर शहर पर संभाजी महाराज ने हमला किया और मुग़ल सेना के परखच्चे उड़ा दिए। शहर को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद से मुगलों से उनकी खुली दुश्मनी रही।
और यह खबर पहुंची औरंगजेब तक, जो यह खबर सुनकर बौखला गया। पहले तो शिवाजी महाराज से उसे सामना करना पड़ता था और अब उनका बेटा भी चुनौती देने आ गया, इसलिए वह उन्हें बंदी बनाना चाहता था।
इसी बीच औरंगजेब के चौथे बेटे अकबर ने बगावत की और वह संभाजी महाराज के पास आ गया। उसी वक्त महाराज ने औरंगजेब को एक लंबा खत लिखा और उसमें कहा,” हिंदुस्तान की जनता अलग-अलग धर्मों की है। औरंगजेब, आप जिस काम के लिए दक्कन आए थे, वह काम तो पूरा हो गया है, अब आपको सीधा दिल्ली जाना चाहिए। एक बार हम और हमारे पिता बड़ी आसानी से चकमा देकर अपने घर लौट चुके हैं। अगर आप अब भी अपनी जिद पर अड़े रहे, तो दिल्ली नहीं जा पाएंगे और दक्कन में ही अपनी कब्र के लिए जगह ढूंढनी पड़ेगी”।
यह खत जब औरंगजेब को मिला, तब वो बौखला गया। फिर उसने ठान लिया कि, अब वो संभाजी को जिंदा नहीं छोड़ेगा।
इसी बीच सोयराबाई की साजिशे सामने आई और उन्हें दिल पर पत्थर रखते हुए सजा दी गई और उनके साथ साथ बाकी गद्दारों को भी।
फिर फ़रवरी 1689 में जब संभाजी एक बैठक के लिए महाराष्ट्र राज्य के संगमेश्वर गांव में पहुंचे, तो वहां उन पर हमला किया गया। मुग़ल सरदार मुकर्रब खान की अगुआई में संभाजी के सभी सरदारों को मार डाला गया। उन्हें और उनके सलाहकार और एक अच्छे दोस्त “कविकलश” को पकड़ कर ले जाया गया।
संभाजी महाराज को सामने देखकर औरंगजेब काफी खुश हुआ। पर संभाजी महाराज के चेहरे पर जो भाव थे, उससे उसे ज्यादा गुस्सा आया और उनकी नजर झुकी हुई नहीं थी। नजर में इतना गुस्सा था, आग थी, कि उसमें औरंगजेब जलकर खाक हो जा सकता था।
फिर औरंगजेब ने हंसते हुए कहा,” संभाजी तुम यहां आए हो तो अब इस्लाम भी कबूल कर लो”। पर संभाजी महाराज ने साफ इंकार कर दिया। बात बात पर उनका यह इंकार औरंगजेब को पसंद नहीं आ रहा था। इसलिए औरंगजेब ने कभी उनके शरीर पर भाले से वार किया, उन्हें मारा, पीटा। एक वक्त पर उनकी जबान खींचकर कुत्तों के सामने डाल दी। औरंगजेब को संभाजी महाराज की नजर से काफी तकलीफ थी क्योंकि अभी तक उसने सिर्फ सुना था कि, शिवाजी महाराज का बेटा एक शेर है, जो शेर के मुंह में हाथ डालकर शेर को भी नरम कर सकता है, पर यह सब कुछ वो सामने देख रहा था, तो उसने संभाजी महाराज की आंखें नोचने का फैसला किया। सिलाई गर्म करके उसने उनकी आंखों में डाल दी और आंखें निकाल दी।
और फिर साल 1689 में 32 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।
पर उनके मरने के बाद भी मराठा साम्राज्य खत्म नहीं हुआ बल्कि सब एक साथ हो गए और उन्होंने मुगलों पर हमला किया। क्योंकि संभाजी महाराज ने सब से वादा लिया था कि, कोई भी स्वराज्य पर आंच आने नहीं देगा।
तो यह थी आज की कहानी। वैसे फिल्म बाहुबली 3 आने वाली है। देख जाए तो बाहुबली भी संभाजी महाराज की तरह ईट का जवाब पत्थर से देने वालों में से है, साथ ही साथ उसे अपनी प्रजा की चिंता भी है। पर ऐसे राजा को मारने की कई साजिशे भी की जाती है और यह सब हमें आने वाली फिल्म में देखने को मिलेगा। तो आप तैयार हैं ना?