बाहर जोर जोर से बकरियों की और बाकी जानवरों की आवाज सुनाई देने के बाद आदिवासी मुखिया की बेटी शबरी डर गई। जिस तरफ से आवाज आ रही थी, उस तरफ शबरी गई। उसने देखा कि, बकरियों को बांध के रखा है। शबरी ने भागते हुए अपनी मां से पूछा,” इतनी बकरियां क्यों है हमारे पास? उन्हें आजाद करो”। तो मां ने कहा,” नहीं बेटा, देखो तुम्हारी शादी तय हो चुकी है, तो हम इनकी बली देकर वो खाना मेहमानों को परोसे़ंगे”। यह सुनकर शबरी डर गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि, अब वह क्या करें। फिर उसे ऐसा लगा कि अगर उसने शादी नहीं की, तो इन जानवरों की जान बच सकती है। यही फैसला करके वह घर से भाग गई।
भागते भागते वो एक जंगल में गई। उस घने जंगल में हरे पौधों पर बैठे पंछियों की आवाज सुनकर वो खुश हुई क्योंकि पंछियों की भाषा उसे समझ आती थी। फिर वह हर रोज वहां के ऋषि मुनियों की कुटी के बाहर झाड़ू लगाती थी, उन्हें हवन के लिए लकड़ियां लाकर देती थी। जब एक दिन वो अपने काम के पैसे लेने ऋषि मुनि के सामने गई, तब उन्होंने उसके बारे में पूछा। शबरी ने कहा कि, वो एक आदिवासी है। यह बात सुनकर ऋषि मुनि गुस्सा हो गए।
इसके बाद वह मतंग ऋषि के पास गई। मतंग ऋषि को शबरी के बारे में पता लगने के बाद भी उन्होंने उसे कुछ भी नहीं कहा बल्कि उसे काम दिया। पर वक्त के साथ-साथ जब मतंग ऋषि बूढ़े होते गए, तब उन्होंने एक दिन शबरी से कहा,” देखो बेटा अब मैं बुढा हो चुका हूं। अब मुझे अपने शरीर का त्याग करना है”। यह सुनते हुए शबरी हैरान हो गई और उसने कहा,” ऋषि मैं आपकी वजह से यहां पर रह रही हूं। आप नहीं होंगे तो मैं क्या करूंगी?”। जिस पर ऋषि मुनि ने भगवान राम का नाम लिया और उसे सुनकर शबरी दंग रह गई।
एक दिन भगवान राम उससे मिलने आएंगे यही सोचकर शबरी हर रोज जंगल में जाती थी। अलग-अलग फूल तोड़ कर लाती थी, फिर जाती थी, फिर खाने के लिए बेर नाम का फल लाती थी, उसे चखती थी ताकि अगर जब श्रीराम आएंगे, तब उन्हें मीठे बेर खाने के लिए दे सकें।
एक दिन ऐसे ही किसी सोच में शबरी तालाब के पास गई। अब वहां पर एक ऋषि मुनि भी मौजूद थे, जो तपस्या कर रहे थे। तब उन्होंने शबरी को देखा। शबरी उनके पास गई और उनके पैर छूकर प्रणाम किया, जिसकी वजह से ऋषि भड़क उठे और उन्होंने शबरी को धक्का दे दिया, क्योंकि वह आदिवासी थी। जिसकी वजह से उसके पैर पर पत्थर लगा और खून बहने लगा। वह खून की बूंदे उस तालाब में गिरी और तालाब गंदा हो गया।
यह देख कर ऋषि मुनि शबरी पर गुस्सा हुए। फिर उन्होंने काफी विद्याए आजमाई तालाब को साफ करने के लिए, पर कुछ भी नहीं हुआ। और यह देखकर शबरी रोते हुए वहां से चली गई।
फिर जब भगवान राम और लक्ष्मण, सीता मां को ढूंढते हुए उस तालाब के पास आए, तब उन्होंने तालाब को देखा। भगवान राम आने के बाद ऋषि मुनि वहां खड़े रहे और उन्होंने भगवान राम को प्रणाम किया। उन्होंने तालाब की ओर इशारा करते हुए भगवान राम से कहा,” गुरु आप इस पानी में अपना पैर रखे, यह तालाब साफ हो जाएगा”। भगवान राम ने पानी में पैर रखा पर पानी साफ नहीं हुआ। फिर उन्होंने यह सब किसकी वजह से हुआ है उसका कारण पूछा और उन्हें शबरी की बात पता चली।
तब तक शबरी वहां पर आती है और भगवान राम को सामने देखकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। ऋषि मुनि शबरी की ओर इशारा करते हैं, तब शबरी को ठेच लगती है। उसके पैर पर लगी मिट्टी तालाब में गिरती है और पूरा तालाब साफ हो जाता है, जिसे देखकर ऋषि मुनि हैरान होते हैं।
भगवान राम इस पर यही कहते हैं कि,” ऋषि मुनि, जाती, पवित्रता और अपवित्रता पर ध्यान मत दीजिए। इंसान की भक्ति और मन पर दीजिए”।
शबरी भगवान राम और लक्ष्मण को अपनी कुटी में ले गई। लाए हुए बेर भगवान राम को खाने के लिए दिए, पर लक्ष्मण को काफी गुस्सा आया क्योंकि वह बेर जूठे थे। पहले से खाए हुए थे।तो भगवान राम ने कहा,” शबरी ने यह बेर खाए जरूर होंगे, पर इसके पीछे भी वजह होगी” तब शबरी ने बताया कि,” हां मैं आपको कोई खराब फल नहीं देना चाहती थी, सिर्फ मीठे फल देना चाहती थी इसलिए मैं हर एक को चखकर इसमें रखती थी”।
फिर भी लक्ष्मण को इस बात का गुस्सा आया। पर भगवान राम ने शबरी की भक्ति को समझा। तब शबरी कोई याद आया कि मतंग ऋषि ने उससे क्या कहा था। उसे याद करते हुए शबरी ने राम से कहा कि, “ऋषि मुनि ने कहा था कि, इस दुनिया में श्रीराम है, जो तुम्हारी रक्षा करेंगे और वह सच भी हो गया। अब मेरी एक इच्छा है। मैं बूढ़ी हो चुकी हूं, मुझे अपने शरीर का त्याग करना है”। और इसी के चलते शबरी की मौत हो गई।
“शबरी के जेठे बेर” यह रामायण का एक बहुत ही अहम किस्सा है और आदिपुरुष फिल्म में यह सीन हमें जरूर ही देखने को मिलेगा।
Trupti