अपने किले सिंहगढ़ पर मुगलोंं का झंडा लहराते हुआ देखकर रानी जीजाबाई गुस्से से लाल हो गई और उन्होंने दासी से कहा,” शिवा को बुलाओ”। दासी जिजाबाई का गुस्सा देखकर भागते हुए शिवाजी महाराज के पास गई और थोड़ी ही देर में शिवाजी राजे जीजाबाई के सामने आए और कहां, “आऊसाहेब, आपने हमें बुलाया?”। तब जिजाबाई ने बिना मूडे कहा,” सिंहगढ़ हमारा, राज्य हमारा, यहां की प्रजा हमारी और किले पर झंडा किसका? मुगलों का? क्या यह शर्मिंदगी की बात नहीं है?”।
अपनी मां के सवाल पर राजे के पास कोई जवाब नहीं था, पर उन्होंने सिर्फ यही कहा कि,” यह किला हासिल कर पाना हमें मुश्किल लग रहा है”।
महाराष्ट्र राज्य के सिंदखेड़ गाँव में जिनका जन्म हुआ, जो शहाजी राजे भोसले की रानी बनकर राजनीति और रणनिती में शामिल हुई, माहीर बनी, अपने बेटे शिवा की गुरु बनी, ऐसी रानी जिजाबाई को अपने बेटे से इस बात की उम्मीद नहीं थी। “स्वराज का सपना देखते हो और मुश्किल से डरते हो। जो हमारी अमानत है, वो हमारे पास आनी चाहिए। अगर तुम यह नहीं कर सकते, तो मैं तलवार लेकर किले पर आक्रमण करूंगी और वहां पर अपना झंडा लहराऊंगी”। इस बात के साथ जिजाबाई ने सारा वाकया ही खत्म कर दिया।
यह सुनते ही राजे अपनी मां की ओर देखते हुए बस यही कह गए,” ठीक है आऊसाहेब, जल्द ही यह किला हमारा होगा” और शिवाजी राजे चले गए अपने खास लोगों से बातचीत करने।
दरसल सिंहगढ़ कोई मामूली किला नहीं था। पुणे का एक मजबूत किला था। इसका पहला नाम था “कोंढाणा”। इस किले का 2000 साल पुराना इतिहास भी है। पर यह किला मुगलों के पास कैसे गया?
दरसल साल 1649 में शिवाजी राजे के पिता शहाजी राजे विजापुर के मुगल बादशाह आदीलशाह की कैद में थे, तो उन्हें छुड़ाने के बदले यह किला उसे सौंपना पड़ा, इसलिए वहां पर मुगलों का राज था।
पर शिवाजी राजे को यह मंजूर नहीं था और इसी वजह से मुगल सेना और शिवाजी राजे में लडाई हुई।
अब जिस वक्त लडाई हो रही थी, उस वक्त तानाजी मालुसरे जो शिवाजी राजे के सेनापति थे, उनके बेटे की शादी थी। पर जैसे ही उन्हें इस बात की खबर मिली, उन्होंने तुरंत ही शादी से निकलकर राजे के पास जाना सही समझा। फिर रणनीति बनाकर तानाजी और उनके सैनिक रात को किले के पास गए। पर इस किले पर चढना मुश्किल था इसीलिए उन्होंने एक पेड़ को रस्सी बांधी और इसी के सहारे अकेले उपर चढ़ गए। ऊपर जाने के बाद वहां का रखवाला उदयभान राठौड़ और तानाजी में घमासान युद्ध हुआ, जिसमें तानाजी मालुसरे की मौत हो गई। बाद में मराठा सैनिकों ने मुगलों को मार दिया और किला अपने नाम किया।
जब यह बात जीजाबाई को पता चली, तो उन्होंने तुरंत ही राजे को कहा,” शिवा, किला तो मिल गया, पर हीरा चला गया”।
जीजाबाई शिवाजी राजे वह सारी बातें ना कहती, तो शायद किला मिलने में काफी देर हो जाती।
अब ऐसी मर्दानी हमें बाहुबली फिल्म में भी दिखाई थी, यानी कि शिवगामी देवी। तो हो सकता है कि, बाहुबली 3 में बाहू का हौसला बढ़ाने वाली देवसेना और अवंतिका में भी हमें कुछ इसी तरह की खुबिया नजर आए, जिसके कारण बाहुबली अपने राज्य को बचाने के लिए दुश्मन पर टूट पड़े।
Trupti