उड़ गई DCP की नीद
2 अप्रैल 1995 का दिन था और आधी रात कब की भी चुकी थी, ज्यादातर मुंबई गहरी नींद में सो रही थी लेकिन मुंबई क्राइम ब्रांच के डीसीपी राकेश मारिया की आंखों में नींद का कोई नामोनिशान नहीं था। करवटें बदल रहे मारिया हर 5 मिनट बाद, बिस्तर से उठते और अपने बेडरूम में रखा फोन उठा चेक करने लगते की उसमें dial tone आ भी रही है या नहीं और अगर आ रही है, तो फिर अब तक उनके पास वह कॉल क्यों नहीं आई जिसका इंतजार ने उनकी नींदे उड़ा रखी है। ऐसी राते कभी-कभी उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया करती थी की यह कैरियर आखिर उन्होंने चुना ही क्यों। रात के 2:00 बिस्तर पर जाग रहे मारिया के मन में अपने काम को ले नकारात्मक विचारों का एक सैलाब सा उमड़ा हुआ था। क्योंकि जब पूरे मुंबई चैन की नींद सो रही थी तब उनके पांच अंडरकवर ऑफीसर्स पंजाब जा रही है ट्रेन में एक अत्यंत खतरनाक मिशन को अंजाम दे रहे थे। DCP मारिया को मिली एक tip के अनुसार डी कंपनी के दो बहुत ही खतरनाक शार्प शूटर पंजाब मेल से दिल्ली जा रहे थे। शार्प शूटर जो पिछले एक साल के दौरान कुल 7 लोगों को ऊपर भेज चुके थे, दाऊद के आदेश पर डी कंपनी द्वारा इन शूटर्स को दिल्ली से नेपाल और फिर नेपाल से दुबई भेजने का प्लान बनाया जा रहा था और राकेश मारिया को हर हाल में इन्हें नेपाल जाने से पहले पहले ही गिरफ्तार करना था. वह किसी भी कीमत पर इन दोनों को हथकड़ी लगा जल्द से जल्द मुंबई वापस लाना चाहते थे. लेकिन यह कहने में आसान था करने में नहीं. क्राइम ब्रांच के पास नहीं शार्प शूटर की कोई फोटोस थी, और ना ही इनके हुलिए के ऊपर कोई जानकारी, वो ट्रेन में कहां से बैठेंगे, उनकी सीट कौन सी बोगी में होंगी? क्या वह अकेले सफर कर रहे होंगे या फिर पुलिस को चकमा देने के लिए उनके साथ औरतों और बच्चों को भी भेजा गया होगा? DCP मारिया और उनकी टीम के पास इनमें से किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं था हा, अगर उनके पास कुछ था तो इन शार्प शूटर के घरेलू नाम जेब में केवल ₹150 और तेज रफ्तार से दौड़ रही पंजाब मेल, उन्हें ढूंढ निकालने का अटूट जज्बा. अप्रैल 1995 में राकेश मारिया को मुंबई क्राइम ब्रांच ज्वाइन करें पूरे 2 साल हो चले थे और इन 2 सालों के दौरान उन्होंने लोकल खबरी यो का एक अच्छा खासा नेटवर्क खड़ा कर लिया था. बिना खबरी क्राइम ब्रांच का एक ऑफिसर बिल्कुल बिना इंजन की ट्रेन की तरह है और राकेश मारिया इस बात को बहुत अच्छे से समझते थे, शायद इसीलिए वह अपने खबरीयो का कुछ ज्यादा ही ख्याल रखा करते थे, उनका कोई भी खबरी उन्हें किसी भी टाइम घर या ऑफिस में बिना किसी संकोच कॉल कर सकता था. 1 अप्रैल 1955 की सुबह भी उनके पास बिल्कुल ऐसे ही कॉल आती है, “हेलो साहब आपसे एक बहुत जरुरी बात करने का है, लेकिन फोन पर नहीं, आप अभी के अभी वो red road वाले लाल गोदाम पर आ सकते क्या??” अपने इस खबरी को मारिया काफी टाइम से जानते थे, इसलिए किसी प्रकार के डबल क्रॉस का तो कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता था, “ठीक है 1 घंटे में पहुंच रहा हूं”, फ़ोन नीचे रखते ही मारिया अपनी गाड़ी में red रोड के लिए निकल जाते हैं, जहा एक बड़े से गोदाम के पास, ट्रकों की पार्किंग में उनका खबरी पहले से खड़ा हुआ था. सलाम साहब हां हां सलाम क्या बात है? कोई कांड वांट तो नहीं किया ना तू? अरे नही सहाब, क्या बात कर रहे हो आई शप्पथ मैं तो एकदम क्लीन लाइफ जी रहा हु आजकल, क्या हुआ फिर कैसे बुलाया? मारिया यह पूछते हैं तो चारों तरफ एक नजर दौड़ाने के बाद अत्यंत दबी हुई आवाज में ये खबरी कहता है, साहब, आजकल आप सेक्शन बहुत गर्म किये ना, इसलिए दाऊद के दो टॉप शूटर को दुबई भेज रहे वो लोग. कौन लोग? कौन भेज रहा है उनको?? मारिया का यह सवाल सुनते ही उनका खबरी अचानक खामोश हो जाता है, एक खामोशी जिसका कारण 90 के दशक की मुंबई में फैला डी कंपनी का बेलगाम आतंक था। मेरे होते हुए डर लग रहा है तेरे को hmm? मेरे एक भी आदमी को आज तक कुछ हुआ है क्या साले?? यह कहते हुए मारिया 100 100 के तीन नोट घबराए हुए इस खबरी की जेब में डाल देते हैं। अरे साहब, नहीं, नहीं, पैसे के लिए थोड़ी ना कर रहा हूं; कोई नहीं रख ले काम आएगा और यह बता की दाऊद गैंग में किसके शूटर है? साहब वो वो sautya’s के। sautya’s जो दाऊद का राइट हैंड था, जिसके बारे में मैं पिछली कई स्टोरीज में बता चुका हूं।
अब इसके आगे की स्टोरी आपको मैंने एक्स वीडियो में बताऊंगा।
Divanshu