अपने सपनों को कैसे पूरा करना है और उससे जीना कैसे है वो हमें मनोज पांडे से सीखना चाहिए क्योंकि उन्होंने कैसे अपने सपनों को जिंदा रखा और पूरा भी किया जो कि तारीफ के लायक है और साथ ही साथ उनसे बहुत कुछ सीखने के लायक भी है।मनोज पाण्डेय का जन्म 25 जून साल 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के रुधा गाँव में हुआ था, मनोज नेपाली क्षेत्री परिवार में पिता गोपीचन्द्र पांडेय और माँ मोहिनी के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे। मनोज की शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ में हुई थी और वहीं से उनमें अनुशासन भाव तथा देश प्रेम की भावना संचारित हुई जिससे उन्हें अपने सपने को पूरा करने कि मदद मिली, इन्हें बचपन से ही वीरता तथा सद्चरित्र की कहानियाँ उनकी माँ सुनाया करती थीं और मनोज का हौसला बढ़ाती थीं कि वह हमेशा जीवन के किसी भी मोड़ पर चुनौतियों से घबराये नहीं और हमेशा सम्मान तथा यश की परवाह करे और किसी भी परिस्थिति में हिम्मत बनाए रखें। इंटरमेडियेट की पढ़ाई पूरी करने के बाद मनोज ने प्रतियोगिता में सफल होने के पश्चात पुणे के पास खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला लिया, प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात वे 11th गोरखा रायफल्स रेजिमेंट की पहली वाहनी के अधिकारी बने। मनोज इतना कुछ कर पाए सिर्फ और सिर्फ अपने घर वालों के सपोर्ट के बदले साथ ही साथ अपने मेहनत से भी, सोल्जर 2 की मूवी एक पॉजिटिव माइंडसेट के साथ तभी हो सकती है जब मेकर इसे थोड़ा सा संघर्ष की लाइन्स ऐड करें कि कैसे और कितने मेहनत के बाद अपने लक्ष्य को पाए द मनोज पांडे, जिस तरह बॉबी देओल को कड़ी मेहनत के बाद पोस्ट मिली थी एक सैनिक की, जिससे दर्शकों ने भरपुर अपना प्यार दिया था।
अब जब मनोज सेना में शामिल हो ही गए तो उन्हें और उनके घरवालों को बहुत ज्यादा खुशी हुई थी क्योंकि जिस तरह से मनोज ने मेहनत की थी उससे एक ना एक दिन रंग लानी ही थी। मनोज की माँ का आशीर्वाद और मनोज का सपना सच हुआ और वह बतौर एक कमीशंड ऑफिसर 11th गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में पहुँच गए थे, उनकी तैनाती कश्मीर घाटी में हुई। ठीक अगले ही दिन उन्होंने अपने एक सीनियर सेकेंड लेफ्टिनेंट पी. एन. दत्ता के साथ एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भरा काम पूरा किया और यही पी.एन दत्ता एक आतंकवाडी गुट से मुठभेड़ में शहीद हो गए थे और उन्हें अशोक चक्र प्राप्त हुआ जो भारत का युद्ध के अतिरिक्त बहादुरी भरे कारनामे के लिए दिया जाने वाला सबसे बड़ा इनाम है। जिस तरह बॉबी देओल की किस्मत एक ऑपरेशन ने बादल दी थी ठीक उसी तरह मनोज की भी किस्मत एक ऑपरेशन ने बदल कर रखा दी। एक बार मनोज को कश्मीर में एक टुकड़ी लेकर गश्त के लिए भेजा गया था लेकिन पता नहीं क्यों उनके लौटने में बहुत देर हो गई जिससे सबको बहुत चिंता होने लगी थी। सबने मिलकर मनोज को बहुत ढूंढा लेकिन वो मिल नहीं पाए और जब वह अपने कार्यक्रम से दो दिन देर कर के वापस आए तो उनके कमांडिंग ऑफिसर ने उनसे देर करने का कारण पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, हमें अपनी गश्त में उग्रवादी मिले ही नहीं तो हम आगे चलते ही चले गए, जब तक हमने उनका सामना नहीं कर लिया। इसी तरह जब इनकी बटालियन को सियाचिन में तैनात होना था, तब मनोज अपने अफसरों की एक ट्रेनिंग पर थे। वह इस बात से परेशान हो गये कि इस ट्रेनिंग की वजह से वह सियाचिन नहीं जा पाएँगे। जब इस टुकड़ी को कठिनाई भरे काम को अंजाम देने का मौका आया, तो मनोज ने अपने कमांडिंग अफसर को लिखा कि अगर उनकी टुकड़ी उत्तरी ग्लेशियर की ओर जा रही हो तो उन्हें बाना चौकी दी जाए और अगर कूच सेंट्रल ग्लोशियर की ओर हो, तो उन्हें पहलवान चौकी मिले। यह दोनों चौकियाँ दरअसल बहुत कठिन प्रकार की हिम्मत की माँग करतीं हैं और यही मनोज चाहते थे, आखिरकार मनोज कुमार पांडेय को लम्बे समय तक 19700 फीट ऊँची पहलवान चौकी पर डटे रहने का मौका मिला था, अगर इस कहानी पर फिल्म बनती हैं तो दर्शकों को एक सोल्जर के ज़िन्दगी के बारे में अच्छा से पता चल पाएगा और वो अच्छे से दर्शकों को फिल्म से जोड़ पाएंगे।
अब मनोज को साल 1999 में कारगिल युद्ध के लिए कश्मीर भेजा गया था, तब मनोज ने सैनिकों कि मदद की थी कि किस तरह से वो पाकिस्तान के बेस कैंप तक पहुंच सकते है, तकी वो उन पर हमला कर सके और कहीं ना कही इनके ही बताए गए रास्ते पर चलकर ही सोल्जर अपने प्लान में सक्सेसफुल हो पाए थे। ये कहानी ऐसे वीर बहादुर सैनिक की है, जिसने बचपन से ही हार मानना नहीं सिखा था तो ये फिल्म आसानी से लोगो से कनेक्ट करेगी और उनके अंदर अपने देश को लेकर देशभक्ति की भावनाएं जगाएंगी। ये कहानी हो सकती है आने वाली फिल्म सोल्जर 2 की, आपको ये कहानी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताइएगा और तब तक आप अपना ध्यान रखीए और हमेशा मुस्कुराते रहीए ।
Chandan Pandit