ब्रिगेडियर उसमान ने अपना भरोसा दिलाते हुए बटवारे के बाद कोट पर जीत हासिल की. इधर 6 फरवरी को सुबह 6 बजकर 40 मिनट पर दुश्मन ने हमला कर दिया. 11 हजार सैनिकों के साथ. 3 हजार पठानों ने तेन धार और 3 हजार ने कोट पर एक साथ हमला किया. लगातार 20 मिनट तक बमबारी जारी रही. करीब 5 हजार कबाइलियों ने कंगोता, रेडियन और आसपास की चौकियों पर धावा बोल दिया. उस्मान को इस बात का शक था कि दुश्मन तेन धार पर हमला करेगा. उन्होंने पहले से ही मेजर गुरदयाल सिंह की लीडरशिप में 3 पैरा राजपूत की एक कपंनी तेन धार की चढ़ाई पर तैनात कर दी थी. लेकिन अब पाकिस्तान का नौशेरा पर एक और अटैक फेल हो गया था. दुश्मन के करीब 2000 सैनिक मारे गए. 33 भारतीय जवानों ने भी शहादत देकर नौशेरा जीत लिया था. ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा के अनाथ बच्चों का इकट्ठा किया था. उस्मान ने इन बच्चों के खाने पीने, रहने और पढ़ाई कराई. नौशेरा की लड़ाई में ये बच्चे किचन से बचाखुचा सामान निकाल कर दुश्मन पर फेंक रहे थे. इसके अलावा युद्ध के दौरान इन बच्चों ने मैसेंजर का काम भी किया था. युद्ध के बाद इनमें से तीन बच्चों को सम्मानित किया गया. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इन तीन बच्चों सोने की घड़ी गिफ्ट दी.
नौशेरा की लड़ाई ने रातों रात उस्मान को देश का हीरो बना दिया था. इस ऑपरेशन के तुरंत बाद जम्मू और कश्मीर डिवीज़न के कमांडिंग ऑफिसर कलवंत सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और जीत का पूरा क्रेडिट ब्रिगेडियर उस्मान को दिया गया. जब ये बात उस्मान को पता चली तो उन्होंने मेजर जनरल कलवंत सिंह को चिट्ठी लिखी. चिट्ठी में उन्होंने लिखा कि इस जीत श्रेय उन्हें नहीं बल्कि जवानों को दिया जाना चाहिए जिन्होंने पूरी ताकत से नौशेरा को बचाया और अपनी शहादत दी. इस लड़ाई की जीत के बाद ब्रिगेडियर उस्मान को ‘नौशेरा का शेर’ कहा गया. नौशेरा की हार के बाद पाकिस्तान इतना बौखला गया था कि उसने ब्रिगेडियर उस्मान पर 50 हजार का इनाम रखा.
दिसंबर 1947 में झंगड़ जब पाकिस्तान के कब्जे में चला गया तो ब्रिगेडियर उस्मान ने प्रण किया कि वो तब तक पलंग पर नहीं लेटेंगे जब तक झंगड़ पर दोबारा कब्जा नहीं हो जाता. नौशेरा पर जीत के बाद अब बारी झंगड़ की आ चुकी थी. 10 मार्च, 1948 ने मेजर जनरल कलवंत ने झंगड़ पर फतह का ऑर्डर दे दिया था. इस ऑपरेशन को नाम दिया गया ‘विजय’. 12 मार्च को ऑपरेशन विजय शुरू हुआ. दो बार 50 पैरा ब्रिगेड ने कूच किया. लेकिन उस वक़्त बारिश हो रही थी और बारिश की वजह से प्लान आगे नहीं बढ़ सका. इसके बाद 17 मार्च 1948 की सुबह साढ़े 7 बजे जवानों ने फिर थल नाका पर हमला बोल दिया. जब भारतीय जवान पाकिस्तानी बंकरों में पहुंचे तो वो खाना बना रहे थे. चूल्हे पर चाय चढ़ी थी. ब्रिगेडियर उस्मान के जवानों ने पाकिस्तानियों को कोई मौका नहीं दिया. इससे पहले कि पाकिस्तानी कुछ समझ पाते काम हो चुका था. 17 मार्च के इस ऑपरेशन में 3 पैरा MLI के किसी जवान को कुछ नहीं हुआ.
3 पैरा MLI के जवानों ने फिर थल नाका पर आराम करना मुनासिब नहीं समझा. ये बटालियन 3 पैरा राजपूत की एक कंपनी के साथ सुस्लोती धार की तरफ कूच कर गई, जिसको दोपहर 1 बजे तक कब्जे में ले लिया गया. 19 इन्फैंट्री ब्रिगेड के जवानों ने 17 मार्च तक गायकोट के जंगल के रास्ते को साफ कर दिया था. अब बारी थी फाइनल असॉल्ट की. 18 मार्च, 1948 की सुबह साढ़े 8 बजे झंगड़ पर 3 पैरा राजपूत, 1 पटियाला और 3 पैरा MLI बटालियन ने तीन तरफा हमला बोला. दोपहर एक बजे 19 इन्फैंट्री ब्रिगेड झंगड़ के अंदर थी. और ऑपरेशन विजय खत्म हो चुका था.
ब्रिगेडियर उस्मान का प्रण पूरा होने के साथ ही झंगड़ भारत का हो चुका था. ब्रिगेडियर के लिए चारपाई चाहिए थी. लेकिन पूरे ब्रिगेड में एक भी एक्स्ट्रा चारपाई नहीं थी. उस दिन एक चारपाई गांव से आई और ब्रिगेडियर उस्मान महीनों पर बाद उस दिन चारपाई पर सोए. रात के अंधेरे का फायदा उठा कर दुश्मन ने हमला बोल दिया. उस रात पाकिस्तानियों ने करीब 800 गोले दागे. एक गोला चट्टान पर जाकर गिरा. वहीं जहां ब्रिगेडियर उस्मान ने आड़ ली थी. उस गोले के टुकड़े उस्मान के शरीर में धंस गए. और उसी समय उनकी मौत हो गई. ब्रिगेडियर उस्मान की शहादत ने पूरे हिन्दुस्तान को गमगीन कर दिया था. ब्रिगेडियर उस्मान के अंतिम संस्कार में आज़ाद भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबैटन, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला भी शामिल हुए. उन्हें दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में सुपर्द-ए-खाक किया गया. ब्रिगेडियर उस्मान को परणोपरांत महावीर चक्र से नवाजा गया.