कुश्ती वो खेल है, जो भारत के रग-रग में बसा हुआ है। हम-आप सभी अपने बचपन के समय में इस खेल को मस्ती से खेल चुके है। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तयशुधा नियमों के तहत भारत में कुश्ती के खेल का जो क्रेज अभी बना है, वो आज से एक दशक पहले नहीं था। इस खेल को जन-जन तक पहुंचाने में इसके खिलाड़ियों ने महती भूमिका निभाई है। सुशील कुमार, योगेश्वर दत जैसे दिग्गज पहलवानों ने अपने दांव-पेंच की दम पर पूरी दुनिया में भारत का मान बढ़ाया है। यूं तो इस खेल को आम तौर पर पुरूषों का खेल माना जाता है। लेकिन बदलते समय के साथ महिलाओं ने भी इस खेल में अपने आप को साबित किया है। बात भारत के नजरिए से करे तो यहां महिला कुश्ती को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका फोगाट परिवार ने निभाई है। ये वही फोगाट परिवार है, जिसकी कहानी आप मशहूर हिंदी फिल्म दंगल में देख चुके है। महावीर फोगाट की बेटी गीता-बबीता के साथ विनेश ने भी भारत में अपनी पहचान बनाई है। विनेश की उपलब्धि इस मायने में खास है कि वो गीता-बबीता की बहन होने के दबाव को सहते हुए अपना एक खास मुकाम बनाने में सफल रही हैं।
विनेश का जन्म 25 अगस्त 1994 को हरयाणा के बलाली गांव में हुआ था। नौ साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया। फिर उनकी देखभाल उनके अंकल महावीर सिंह फोगाट ने उनकी देखभाल की। वही महावीर सिंह फोगाट, जो रेसलर्स गीता फोगाट और बबिता फोगाट के पिता हैं। महावीर की देखरेख में ही विनेश बड़ी हुई और रेसलिंग के गुण सीखें। अभ्यास के दौरान अक्सर विनेश को पुरुषों से मुकाबला करना पड़ता था। कारण कि गांव में और कोई लड़की कुश्ती नहीं खेलती थी। इसके बावजूद भी विनेश ने हिम्मत नहीं हारी।
लड़कियों को कुश्ती सिखाने वाले महावीर को गांव वालों का काफी विरोध सहना पड़ा। विरोध का सिलसिला यहां तक बढ़ा कि उन्हें अपने परिवार के साथ गांव छोड़ना पड़ा। लेकिन इतने मुश्किल दौर में भी न तो महावीर को हौसले पस्त हुए और न ही विनेश के। महावीर और उनके परिवार वालों पर उनके गांव वालों से काफी दबाब डाला, जब उन्होंने
अपनी लड़कियों को रेसलिंग के लिए आगे किया। यहां तक की उन्हें उनके गांव से भी निकाल दिया गया। लेकिन फोगाट
बहनों की कामयाबी ने आज काफी कुछ बदल दिया है और आज वे पूरे गांव की गौरव हैं। 2010 में गीता के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद महावीर ने विनेश को परिवार के इस विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कहा गया।