RRRR

Thumbnail title-भारत की आज़ादी में netaji का सहयोग?

 

RRRR- Jyoti Arora 

 

सुभाष चन्द्र बोस भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे।सन् 1933 ,जब भारत में कोलकाता और ढाका के बीच पहले यात्री विमान सेवा की शुरूआत हुई और तब  से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप में रहे। यूरोप में सुभाष ने अपनी सेहत का ख्याल रखते हुए अपना कार्य बदस्तूर जारी रखा। वहाँ वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने उन्हें भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सहायता करने का वचन दिया। आयरलैंड के नेता डी वलेरा सुभाष के अच्छे दोस्त बन गये। जिन दिनों सुभाष यूरोप में थे उन्हीं दिनों जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का ऑस्ट्रिया में निधन हो गया। सुभाष ने वहाँ जाकर जवाहरलाल नेहरू को सान्त्वना दी।बाद में सुभाष यूरोप में विठ्ठल भाई पटेल से मिले। विठ्ठल भाई पटेल के साथ सुभाष ने मन्त्रणा की जिसे पटेल-बोस विश्लेषण के नाम से प्रसिद्धि मिली। इस विश्लेषण में उन दोनों ने गान्धी के नेतृत्व की जमकर निन्दा की। उसके बाद विठ्ठल भाई पटेल जब बीमार हो गये तो सुभाष ने उनकी बहुत सेवा की। मगर विठ्ठल भाई पटेल नहीं बचे, उनका निधन हो गया।विठ्ठल भाई पटेल ने अपनी वसीयत में अपनी सारी सम्पत्ति सुभाष के नाम कर दी। मगर उनके निधन के पश्चात् उनके भाई सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस वसीयत को स्वीकार नहीं किया ,विट्ठल भाई पटेल जो केन्द्रीय असेंबली के सदस्य और बाद में अध्यक्ष भी बने। कांग्रेस छोड़कर उन्होंने ‘स्वराज पार्टी’ की स्थापना भी की सरदार पटेल ने इस वसीयत को लेकर अदालत में मुकदमा चलाया। यह मुकदमा जीतने पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपने भाई की सारी सम्पत्ति गान्धी के हरिजन सेवा कार्य को भेंट कर दी।1934 ,जब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना सिंगापुर में की थी तब सुभाष को उनके पिता के मृत्युशय्या पर होने की खबर मिली। खबर सुनते ही वे हवाई जहाज से कराची होते हुए कोलकाता लौटे। यद्यपि कराची में ही उन्हे पता चल गया था कि उनके पिता की मृत्त्यु हो चुकी है फिर भी वे कोलकाता गये। कोलकाता पहुँचते ही अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और कई दिन जेल में रखकर वापस यूरोप भेज दिया।

 

3 मई 1939  को को जर्मनी के पोलैंड पर हमला करने के साथ second  war शुरू हुआ था कांग्रेस के अन्दर ही फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। कुछ दिन बाद सुभाष को कांग्रेस से ही निकाल दिया गया। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक अपने आप एक स्वतन्त्र पार्टी बन गयी। द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले से ही फॉरवर्ड ब्लॉक ने स्वतन्त्रता संग्राम को और अधिक तीव्र करने के लिये जन जागृति शुरू की।3 सितम्बर 1939 को मद्रास में सुभाष को ब्रिटेन और जर्मनी में युद्ध छिड़ने की सूचना मिली। उन्होंने घोषणा की कि अब भारत के पास सुनहरा मौका है उसे अपनी मुक्ति के लिये अभियान तेज कर देना चहिये। 8 सितम्बर 1939 को युद्ध के प्रति पार्टी का रुख तय करने के लिये सुभाष को विशेष आमन्त्रित के रूप में काँग्रेस कार्य समिति में बुलाया गया। उन्होंने अपनी राय के साथ यह संकल्प भी दोहराया कि अगर काँग्रेस यह काम नहीं कर सकती है तो फॉरवर्ड ब्लॉक अपने दम पर ब्रिटिश राज के खिलाफ़ युद्ध शुरू कर देगा।अगले ही वर्ष जुलाई में कलकत्ता स्थित हालवेट स्तम्भ , जो भारत की गुलामी का प्रतीक था सुभाष की यूथ ब्रिगेड ने रातोंरात वह स्तम्भ मिट्टी में मिला दिया। सुभाष के स्वयंसेवक उसकी नींव की एक-एक ईंट उखाड़ ले गये। यह एक प्रतीकात्मक शुरुआत थी। इसके माध्यम से सुभाष ने यह सन्देश दिया था कि जैसे उन्होंने यह स्तम्भ धूल में मिला दिया है उसी तरह वे ब्रिटिश साम्राज्य की भी ईंट से ईंट बजा देंगे।इसके परिणामस्वरूप अंग्रेज सरकार ने सुभाष सहित फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी मुख्य नेताओं को कैद कर लिया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सुभाष जेल में निष्क्रिय रहना नहीं चाहते थे। सरकार को उन्हें रिहा करने पर मजबूर करने के लिये सुभाष ने जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया। हालत खराब होते ही सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। मगर अंग्रेज सरकार यह भी नहीं चाहती थी कि सुभाष युद्ध के दौरान मुक्त रहें। इसलिये सरकार ने उन्हें उनके ही घर पर नजरबन्द करके बाहर पुलिस का कड़ा पहरा बिठा दिया।

 

नजरबन्दी से निकलने के लिये सुभाष ने एक योजना बनायी। 16 जनवरी 1941,जब नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कवि एवं लेखक रवींद्रनाथ टैगोर का निधन हुआ तभी  वे पुलिस को चकमा देते हुए एक पठान मोहम्मद ज़ियाउद्दीन के वेश में अपने घर से निकले। शरदबाबू के बड़े बेटे शिशिर ने उन्हे अपनी गाड़ी से कोलकाता से दूर झारखंड राज्य के धनबाद जिले (गोमोह) तक पहुँचाया। गोमोह रेलवे स्टेशन(वर्तमान में नेता जी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन, गोमोह) से फ्रण्टियर मेल पकड़कर वे पेशावर पहुँचे। पेशावर में उन्हें फॉरवर्ड ब्लॉक के एक सहकारी, मियाँ अकबर शाह मिले। मियाँ अकबर शाह ने उनकी मुलाकात, किर्ती किसान पार्टी के भगतराम तलवार से करा दी। भगतराम तलवार के साथ सुभाष पेशावर से अफगानिस्तान की राजधानी काबुल की ओर निकल पड़े। इस सफर में भगतराम तलवार रहमत खान नाम के पठान और सुभाष उनके गूँगे-बहरे चाचा बने थे। पहाड़ियों में पैदल चलते हुए उन्होंने यह सफर पूरा किया।काबुल में सुभाष दो महीनों तक उत्तमचन्द मल्होत्रा नामक एक भारतीय व्यापारी के घर में रहे। वहाँ उन्होने पहले रूसी दूतावास में प्रवेश पाना चाहा। इसमें नाकामयाब रहने पर उन्होने जर्मन और इटालियन दूतावासों में प्रवेश पाने की कोशिश की। इटालियन दूतावास में उनकी कोशिश सफल रही। जर्मन और इटालियन दूतावासों ने उनकी सहायता की। आखिर में आरलैण्डो मैजोन्टा नामक इटालियन व्यक्ति बनकर सुभाष काबुल से निकलकर रूस की राजधानी मास्को होते हुए जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुँचे।

 

सुभाष सर्वप्रथम रिबेन ट्रोप जैसे जर्मनी के अन्य नेताओं से मिले। उन्होंने जर्मनी में भारतीय स्वतन्त्रता संगठन और आज़ाद हिन्द रेडियो की स्थापना की। इसी दौरान सुभाष नेताजी के नाम से जाने जाने लगे। जर्मन सरकार के एक मन्त्री एडॅम फॉन ट्रॉट सुभाष के अच्छे दोस्त बन गये।आखिर 29 मई 1942 के दिन, सुभाष जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडॉल्फ हिटलर से मिले। लेकिन हिटलर को भारत के विषय में विशेष रुचि नहीं थी। उन्होने सुभाष को सहायता का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया।अन्त में सुभाष को पता लगा कि हिटलर और जर्मनी से उन्हें कुछ और नहीं मिलने वाला है। इसलिये 8 मार्च 1943 को जर्मनी के कील बन्दरगाह में वे अपने साथी आबिद हसन सफरानी के साथ एक जर्मन पनडुब्बी में बैठकर पूर्वी एशिया की ओर निकल गये। वह जर्मन पनडुब्बी उन्हें हिन्द महासागर में मैडागास्कर के किनारे तक लेकर गयी। वहाँ वे दोनों समुद्र में तैरकर जापानी पनडुब्बी तक पहुँचे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय किन्हीं भी दो देशों की नौसेनाओं की पनडुब्बियों के द्वारा नागरिकों की यह एकमात्र अदला-बदली हुई थी। यह जापानी पनडुब्बी उन्हें इंडोनेशिया के पादांग बन्दरगाह तक पहुँचाकर आयी।

 

पूर्वी एशिया पहुँचकर सुभाष ने सर्वप्रथम वयोवृद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस से भारतीय स्वतन्त्रता परिषद का नेतृत्व सँभाला। सिंगापुर के एडवर्ड पार्क में रासबिहारी ने स्वेच्छा से स्वतन्त्रता परिषद का नेतृत्व सुभाष को सौंपा था।जापान के प्रधानमन्त्री जनरल हिदेकी तोजो ने नेताजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें सहयोग करने का आश्वासन दिया। कई दिन पश्चात् नेताजी ने जापान की संसद (डायट) के सामने भाषण दिया।21 अक्टूबर 1943 के दिन नेताजी ने सिंगापुर में आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द (स्वाधीन भारत की अन्तरिम सरकार) की स्थापना की। वे खुद इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री और युद्धमन्त्री बने। इस सरकार को कुल नौ देशों ने मान्यता दी। नेताजी आज़ाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बन गये।आज़ाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की फौज से पकड़े हुए भारतीय युद्धबन्दियों को भर्ती किया था। आज़ाद हिन्द फ़ौज में औरतों के लिये झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी।पूर्वी एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण देकर वहाँ के स्थायी भारतीय लोगों से आज़ाद हिन्द फौज में भर्ती होने और उसे आर्थिक मदद देने का आह्वान किया। उन्होंने अपने आह्वान में यह सन्देश भी दिया – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।”

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आज़ाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया। अपनी फौज को प्रेरित करने के लिये नेताजी ने ” दिल्ली चलो” का नारा दिया। दोनों फौजों ने अंग्रेजों से अंदमान और निकोबार द्वीप जीत लिये। यह द्वीप आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द के अनुशासन में रहे। नेताजी ने इन द्वीपों को “शहीद द्वीप” और “स्वराज द्वीप” का नया नाम दिया। दोनों फौजों ने मिलकर इंफाल और कोहिमा पर आक्रमण किया। लेकिन बाद में अंग्रेजों का पलड़ा भारी पड़ा और दोनों फौजों को पीछे हटना पड़ा।

जब आज़ाद हिन्द फौज पीछे हट रही थी तब जापानी सेना ने नेताजी के भाग जाने की व्यवस्था की। परन्तु नेताजी ने झाँसी की रानी रेजिमेंट की लड़कियों के साथ सैकड़ों मील चलते रहना पसन्द किया। इस प्रकार नेताजी ने सच्चे नेतृत्व का एक आदर्श प्रस्तुत किया।6 जुलाई 1944 को आज़ाद हिन्द रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से गान्धीजी को सम्बोधित करते हुए नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द तथा आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य के बारे में बताया। इस भाषण के दौरान नेताजी ने गान्धीजी को राष्ट्रपिता कहा तभी गांधीजी ने भी उन्हे नेताजी कहा।

 

RRRR- JYOTI ARORA 

 

RRRR is an epic movie and this story can be of RRRR because the freedom fighters of India would have been seen in this picture so keep watching and stay tuned because this movie is a full package of entertainment and all the fights of our freedom,and all the action were taken by special people can be visualize in this story so all the audience’s  can be engaged and a message and some knowledge can be given to all the people.




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