30 सितंबर 1993 को सुबह के लगभग 4:00 बजे Latur, Usmanabad के अनेकों गांव भूकंप की वजह से पूरी तरह ध्वस्त हो चुके थे। इस हादसे में हजारों लोगों की जान गई और हजारों लोग घायल हुए। उस समय Lt Sumit Bakshi सिपाही के तौर पर 8 या 9 महीने पहले ही भारतीय सेना का हिस्सा बने थे । वहा लोगो को बचाने के लिए एक बचाव team बनाई गई थी। Sumit Bakshi भी उस team का हिस्सा थे । बचाव team laatur पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वह दिल दहला देने वाला मंजर था ।
कोई भी इमारत खड़ी नहीं । जो लोग जिंदा थे वह रो रहे थे । कुछ लोग मलबे में दबे अपने परिवार वालों को ढूंढ रहे थे। बचाव teams इन लोगों को बचाने के काम में जुट गई। Lt Bakshi की बचाव team लोगों को बचाने के काम में जुट गई । लगभग 3 दिनों तक राहत कार्य चलता रहा ।
6 अक्टूबर को बचाव team दोपहर का खाना खाने बैठे तो गांव से पति-पत्नी हाथ जोड़े और आंखों में आंसू लिए उनके पास आए । वह अपनी बेटी के अंतिम शरीर को ढूंढना चाहते थे जो शायद मलबे के नीचे फस गया था । पांच जवानों की team पहले भी उस जगह का दौरा कर चुकी थी । लेकिन वहां कुछ नहीं मिला था । उस आदमी का घर, और उसके साथ घर और एक मंदिर तीनों मलबे के नीचे दबे हुए थे।
भूकंप के दौरान पति पत्नी समय रहते भाग निकलने में कामयाब रहे थे मगर उनकी 18 महीने की बेटी का कोई पता नहीं था। लेफ्टिनेंट बक्शी के सहयोगियों ने दोपहर का भोजन ना करके अपने दिल की आवाज सुनी और आगे बढ़ने का फैसला किया। उस बच्ची के पिता ने अपने मलबे में फंसे घर और एक अंदाजे से बिस्तर के बारे में बताया जहां पर वह लोग सो रहे थे। बचाव team का पहला कदम उस लोहे के पलंग को ढूंढना था जिस पर बच्ची सो रही थी । मलबे के नीचे लोहे के पलंग का एक पैर दिख रहा था ।
उन्होंने मलबे को एक तरफ हटाया और एक छोटा सा छेद बनाने की कोशिश की। पर मलबे के कारण ज्यादा आगे ना बढ़ सके। मलबे की वजह से पलंग के चारों में से एक पैर टूट गया था लेकिन शुक्र था कि एक स्टील के बर्तन वहा था जिसने पूरी तरह से सब ध्वस्त होने से रोक रखा था। दृश्य काफी खतरनाक था क्योंकि जैसी उसके अंदर छेद बनाने की कोशिश की तो मलबा ऊपर से गिरना शुरू कर देता था। अंत में सैनिकों ने एक छेद बनाया जिसके माध्यम से केवल एक ही व्यक्ति आ सकता था । उन्होंने अंदर जाने की कोशिश की लेकिन
असफल रहे।
उस समय लेफ्टिनेंट bakshi 20 साल के थे। उन्होंने अपने दुबले पतले शरीर के साथ अंदर घुसने का प्रयास किया। इसके बाद वह अंधेरे में पहुंच गए और चारों ओर चीजों को देखने और महसूस करने लगे । तभी उनके हाथ में ठंडी शरीर को छुआ। उन्होंने इसे खींचने की कोशिश की । उन्हें तभी खांसी की आवाज सुनाई दी ।
इस बच्ची के माता-पिता और सभी लोग 108 घंटे के बाद बच्ची के बचने की उम्मीद छोड़ चुके थे लेकिन उस बच्ची ने सबकी उम्मीदे तोड़ दिया था। उस बच्ची की सांसे चल रही थी। उसने मौत को हराया था वह अभी भी धीरे-धीरे सांसे ले रहीथी । अब us बच्ची को छाती से लगाकर बाहर निकलना मुश्किल था। Lt bakshi ने अपने company commander साहिब से कहो कि और सैनिक भेजें। यह खबर पूरे latur में जंगल की आग की तरह फैल गई। Company commander और support staff के पहुंचने से पहले 700 गांव वालों की भीड़ इकट्ठा हो गई । batalion और स्थानीय पुलिस भीड़ को रोकने के लिए तथा बचाव कर्ता को बचाने के लिए उस जगह पर पहुंचे । लेफ्टिनेंट bakshi 1 घंटे की मशक्कत के बाद आखिरकार बच्ची को बाहर निकालने में कामयाब रहे ।
ऐसे ही वीर जवान की कहानी होने वाली है शाहरुख खान starrer Jawan!
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