Jawan
Captain Yogendra Singh का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ था। उनका परिवार भी फौजी परिवार था। उनके पिता राम करण सिंह यादव 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लेकर उन्नाव regiment में सेवा करी थी। पिता से युद्ध की कहानियां बचपन से ही सुनते आए थे। केवल योगेंद्र सिंह ही नहीं उनके बड़े भाई भी भारतीय सेना में भर्ती हुए।
यादव सोलह साल और 5 महीने की उम्र में ही भारतीय सेना में शामिल हो गए थे। इनके छोटे भाई एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हैं । जब कारगिल का युद्ध शुरू हुआ वर्ष 1999 में योगेंद्र शादी करने के लिए अपने घर छुट्टी पर आए हुए थे । 5 मई को उनकी शादी थी और 20 मई को वापस jammu Transit के अंदर पहुंचना था। तो पता चलता है कि उसके बेटेलियन जो कि कश्मीर वाली के अंदर उग्रवादियों के ऊपर एक operation चला रही थी वहां से उठा कर के drass sector में भेज दिया गया है। 22 मई को वह अपने unit को join करते हैं और अपने unit के साथ 22 दिन तक पहाड़ी के ऊपर लड़ाई लड़ते हैं। 22 दिन में बहुत सारे जवानों को खोया और तब जाकर 12 जून 1999 को हिंदुस्तान में पहली सफलता के रूप में पहाड़ी को प्राप्त किया।
लड़ाई के दौरान योगेंद्र और उसके दो साथियों को mission मिला कि अपनी team को नीचे से ऊपर ammunition और राशन पहुंचाना है। 22 दिन में वह तीन ही ऐसे सैनिक चलते थे जो सुबह 5:30 बजे चलते थे और रात को 2:30 बजे पहुंचते। 2 घंटे में वापस आते थे। इसी काम से इन सैनिकों की एक नई पहचान मिली।
इसके बाद नए mission पर इनको भेजा गया। Drass sector की सबसे ऊंची चोटी tiger hill top उसको फतह करने का mission दिया गया । बटालियन commander कुशालचंद ठाकुर को यह mission की कमान सौंपी गई। जो सबसे आगे की पहाड़ी थी उस पर सिर्फ रात को चढ़ाई की जा सकती थी दिन में नहीं क्योंकि दुश्मन दूर से देख कर बर्बाद कर सकता था। इसलिए लड़ाई शुरू की गई और 1 दिन की चढ़ाई चढ़ने के बाद कि वह सुबह जहा रुके थे वही दुश्मानो ने दोनों तरफ से हमला कर दिया। तब तक बस केवल 7 जवान ही पहाड़ी के ऊपर पहुंच पाए थे और 7 जवानों में से एक थे योगेंद्र यादव।
सामने देखते हैं तो सामने दुश्मन की दो बंकर सभी जवानों पर अंधाधुंध फायरिंग कर रहे थे । जवानों ने सामने से हमला किया और सामने बैठे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। Tiger hill वहा से 50-60 मीटर ही दूर था। पर ऊपर बैठे हुए बाकी दुश्मनों ने देखा कि हिंदुस्तान की फौज यहां तक पहुंच गई है। दुश्मनों ने अंधाधुंध firing, गोला बारूद आदि से हमला कर दिया ।
ऐसे मे जवानों ने सोचा कि मरना तो निश्चित है ज्यादा से ज्यादा दुश्मनों को मारे के मरते है। सैनिकों ने कदम आगे बढ़ा कर ही firing शुरू कर दी। 5 घंटे के बाद firing रोक दी क्योंकि ammunition बहुत ही कम बचा था। उन्होंने यह planning बनाई कि firing हम तब खोलेंगे जब दुश्मन नजदीक होंगे। फिर आधे घंटे बाद दुश्मनों को लगा कि भारतीय सैनिक की ओर से कुछ भी हरकत महसूस नहीं हुई तो देखने के लिए जब आगे बढ़े तो दुश्मनों को योगेंद्र यादव की light machine gun दिख गई और उस पर उन्होंने अंधाधुंध firing ki। जिससे योगेंद्र यादव घायल हो गए और खुद ही first aid करने लगे। तब उतने में ही 1 जवान के सिर में आकर गोली लगती है और वह शहीद हो जाता है जो सैनिक उसे उठाता है तो उसके कंधे में गोली लगने से वह भी शहीद हो जाता है । फिर दुश्मनों तरफ से आकर बाकी बचे साथियों को घेर लिया और गोली दागने शुरू कर दिए। और एक ही पल में सब कुछ खत्म हो गया।
दुश्मनों ने जब भारतीय सैनिकों को नजदीक से देखा तो उन्होंने गोली मारनी शुरू की तो पहले वाले को फिर बगल वाले को गोलियां दागी। योगेंद्र को तीन गोलियां मारी। धुआ निकल रहा था, दर्द हो रहा था लेकिन योगेंद्र उस दर्द को चुप चाप सहते रहे थे। जब दुश्मन गोली मार कर चले गए उनको यकीन हो गया कि उनमें से कोई भी जिंदा नहीं है उसके बाद भी दुश्मन ने दोबारा से गोली मारने से शुरू कर दिया। योगेंद्र को सत्रह गोलियां लगी। वो पांच गोलियां जो दुश्मन ने उनके सीने पर मारी थी वो उनके pocket मे रखे purse पर लगी जिसके पांच के सिक्के थे। जब दुश्मन वहा से जाने लगा तब योगेंद्र ने grenade फेंक कर बहुत सारे दुश्मन मार गिराए। इसके बाद उन्होंने जमीन पर घिसते हुए मशीन गन से fire करना चालू किया जिसके चलते बाकी पहाड़ी पे बैठे terrorists को लगा की बाकी भारतीय सेना आ चुकी है। वह वहा से भाग निकले। योगेंद्र किसी तरह खुद को धकेलते हुए पड़ी के नीचे ले और सबको चेतावनी दी।
कुछ दिन बाद जब योगेंद्र की आंख खुली तो वह श्रीनगर के hospital मे अपने परिवार वालो से घिरे हुए थे।
ऐसे ही बेखौफ jawan ji kahani hai shahrukh khan starrer Jawan!
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Apoorva