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गुंडाधुर एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिनका नाम आज भी लिया जाता है और उनका नाम देश भक्तों के नाम में भी गिना जाता है। गुंडाधुर का जन्म नेतनार, बस्तर, छत्तीसगढ़ के एक छोटे गाँव में हुआ था। गाँव में पले-बढ़े गुंडाधुर ने अंग्रेजों को इतना परेशान कर दिया कि उन्होंने कुछ समय के लिए गुफाओं में छिपना पड़ा। अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाला यह क्रांतिकारी आज भी बस्तर के लोगों के बीच जीवित है। छत्तीसगढ़ के बस्तर के एक छोटे से गांव में पले-बढ़े गुंडाधुर ने अंग्रेजों को इस कदर परेशान किया था कि कुछ समय के लिए अंग्रेजों को गुफाओं में छिपना पड़ा था, और आरआरआर के पार्ट वन में जूनियर एनटीआर ने भी अंग्रेजों की हाल कुछ ऐसे ही कर दी थी और अगर मार्कर इसके पार्ट टू में भी ये सीन देते हैं तो वो भी थोड़ा सा कॉमेडी का तड़का लगा कर तो दर्शक काफी इंटरेस्ट के साथ इस फिल्म को देखेंगे। अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाला ये क्रांतिकारी आज भी बस्तर के लोगों में जिंदा है. शहीद गुंडाधुर के योगदान को देखते हुए उनके नाम पर तीरंदाजी के लिए उत्कृष्ट पुरस्कार तो दिया जाता है, लेकिन आज भी उनके चाहने वाले उन्हें क्रांतिकारी का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, जो अब तक पूरा नहीं हो सका है.रियासतकालीन वैभव से भरे-पूरे बस्तर का इतिहास काफी समृद्धशाली रहा है. यहां की परम्पराएं, रीति-रिवाज और संस्कृति अपने आप में खास है. देश का ऐसा कोई कोना नहीं होगा जो बस्तर की वैभव सम्पदा को नहीं जानता होगा. चालुक्य और मराठा राजवंशों के शासनकाल से लेकर अंग्रेजों के शासनकाल की दास्तान इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है.इन्हीं इतिहास के पन्नों में एक ऐसा नाम भी आता है, जिसने बस्तर को एक अलग पहचान दिलाई. बस्तर के महान क्रांतिकारी शहीद गुंडाधुर को लोग आज भी बड़ी शिद्दत के साथ याद करते हैं. गुलामी की जंजीरों में जकड़े देश के हर हिस्से के तरह बस्तर भी अंग्रेजों की दासता से मुक्त होना चाहता था. हालांकि उस जमाने में अंग्रेजों के अधीन राजवंश अंग्रेजों की मुखालफत करने की इजाजत नहीं देते थे. लेकिन कुछ आवाजें थीं, जो अंग्रेजों की हुकूमत को उखाड़ फेकना चाहती थी. ऐसी ही एक आवाज थी शहीद गुंडाधुर की.बस्तर के नेतानार में रहने वाले गुडांधुर को उस समय लोग बागा धुरवा के नाम से जानते थे. चूंकि बाहरी दासता के खिलाफ संघर्ष बस्तर की प्रकृति रही है, उसी के अनुरूप शहीद गुंडाधुर ने अंग्रेजों की मुखालफत शुरू की और 1910 में अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़ फेंकने शंखनाद कर दिया.

शहीद गुंडाधुर को करीब से जानने वाले कुमार जयदेव बताते हैं कि शहीद गुंडाधुर ने ही भूमकाल आंदोलन की नींव रखी थी. उस जमाने में बस्तर का राजपाट राजा रूद्रप्रताप के हाथों में था, लेकिन वे अंग्रेजों के अधीन होकर काम रहे थे. ऐसे में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने का बीड़ा शहीद गुंडाधुर ने उठाया. भूमकाल आंदोलन में लाल मिर्च क्रांतिकारियों की संदेश वाहक कहलाती थी, जैसे 1857 की क्रांति के समय रोटी और कमल. जूनियर एनटीआर ने जिस तरह अंग्रेजों की हालत खराब कर दी ठीक उसी तरह आगे फिल्म में एक्शन के साथ-साथ थोड़ा इमोशनल टच अगर दिया जाएगा तो ऐसा हो सकता है कि फिल्म के पार्ट वन में जिस तरह दर्शक कनेक्ट कर पाए थे इस फिल्म में और अच्छे से संबंधित कर पाएंगे।

बस्तर से ब्रिाटिश हुकूमत की नीवें हिलानें के लिए गांव-गांव तक लाल मिर्च, मिट्टी का धुनष-बाण और आम की टहनियां लोगों के घर-घर तक पहुंचाने काम इस मकसद से शुरू किया गया कि लोग बस्तर की अस्मिता को बचाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ आगे आएं. इतिहास इस बात का साक्षी है कि अंग्रेजों के खिलाफ उठाई गई इस आवाज में करीब 25 हजार लोगों ने अपनी कुर्बानी दी थी.भूमकाल की गाथा आज भी बस्तर के लोकगीतों में गाई और सुनाई जाती है. कोई आदिवासी आज भी जब रात के अंधेरे में भूमकाल के गीत छेड़ता है तो आदिवासियों के पांव ठहर जाते हैं. उस सदी में शुरू हुई असफल क्रांति की मर्मान्तक पीड़ा आज भी आदिवासियों को पीड़ा से भर देती है. बस्तर का इतिहास आज भी इतिहास के पन्नों से ज्यादा लोककथाओं, लोकगीतों और जनश्रुतियों में संकलित और जीवित है.शहीद गुंडाधुर को विद्रोहियों का सर्वमान्य नेता माना जाता है. शहीद गुंडाधुर सामान्य आदिवासी थे, जिन्होंने न तो कभी पाठशाला का मुंह देखा था और न ही बाहरी दुनिया में कदम रखा था. 35 साल की उम्र में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ ऐसी लडाई छेड़ी कि कुछ समय तक अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. हालात तो ये हो चले थे कि अंग्रेजों को कुछ समय छिपने के लिए जंगलों में गुफाओं का सहारा लेना पड़ा था.उस जमाने के कई अंग्रेज अफसरों ने अपनी डायरी में भूमकाल आंदोलन को लेकर कई बातें भी लिखी है, जो आज भी इतिहास के पन्नों में अंकित हैं. बस्तर की सम्पदा लूट रहे अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए भूमकाल आंदोलन ने पूरी ब्रिाटिश सत्ता को हिलाकर रखा दिया. ऐसे में इस आंदोलन के कई प्रणेता को उल्टा फांसी पर लटका दिया गया, जिसका गवाह आज भी जगदलपुर के गोलबाजार चौक पर स्थित इमली का पेड़ है, जहां इस आंदोलन से जुड़े लोगों को मौत की सजा दे दी गई थी, और शायद यही डर के साथ वहा के लोग कभी ब्रिटिश के खिलाफ नहीं बोलते थे अगर मेकर्स इसमें एक बदलाव करके ये दिखाते हैं कि इस बार सारे लोग मिलकर ब्रिटिश का विरोध कर रहे हैं तो इससे दर्शकों को एक नैतिक मूल्य भी मिल सकती है । बस्तर के इस वीर क्रांतिकारी बागा धुरवा को अंग्रेजों ने ही गुंडाधुर की उपाधि दी थी. दरअसल शहीद गुंडाधुर के विद्रोह करने के चलते ये नाम अंग्रेजों ने ही उन्हें दिया था. इतिहास के पन्नों में दर्ज शहीद गुंडाधुर का व्यक्तित्व और कृतित्व आज भी लोगों में मन में जिंदा है, लेकिन आज भी उनके चाहने वाले ये मांग कर रहे हैं कि शहीद गुंडाधुर को शहीदों को दर्जा मिले. बस्तर सुकमा जमींदार का कहना है कि बस्तर के आदिवासी हर साल क्रांतिकारी गुंण्डाधुर को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं. बहरहाल, बस्तर के इस माटीपुत्र को तरजीह देने के लिए राज्य सरकार खेल प्रतिभाओं को उनके नाम पर पुरस्कृत करती है. तीरंदाजी के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों को शहीद गुंडाधुर अवार्ड से सम्मानित किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद शहीद गुंडाधुर को जो दर्जा मिलना चाहिए, उसकी दरकार आज भी है. कोशिश यही होनी चाहिए कि ऐसे वीर क्रांतिकारियों के बलिदान को अपनी पहचान के लिए संघर्ष न करना पड़े. ये कहानी हो सकती है आने वाली फिल्म आरआरआरआर की, आपको ये कहानी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताइएगा और तब तक आप अपना ध्यान रखीए और हमेशा मुस्कुराते रहिए ।

 

 

 

Chandan Pandit

 

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