क्यो हुए Actor Rajkumar kidnap?
कूस मुनिसामी वीरप्पन, जो भारत के एक डाकू से domestic terrorist बन गया। जो 36 वर्षों से एक active terrorist था, जिसने फिरौती के लिए major politicians का अपहरण भी कर लिया था। इतना ही नही उस पर तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल राज्यों में झाड़ियों और जंगलों में चंदन की smuggling और हाथियों के illegal शिकार का आरोप लगाया गया था।
30 जुलाई 2000 को, वीरप्पन ने कन्नड़ सिनेमा actor राजकुमार और तीन अन्य लोगों को तमिलनाडु-कर्नाटक सीमा के पास, सत्यमंगलम तालुक इरोड जिले के एक गाँव डोड्डा गजनूर से अगवा कर लिया। जहाँ फिल्म स्टार अपने गृह प्रवेश programme में भाग ले रहे थे।
30 जुलाई, 2000 को लगभग 9:30 बजे, वीरप्पन ने 10 या 12 आदमियों के साथ तमिलनाडु के गजनूर में राजकुमार के फार्महाउस पर हमला किया। राजकुमार ने 27 जुलाई, 2000 को एक नए घर के लिए गृह-प्रवेश programme organise करने के लिए, वो गजानूर तक आए थे। राजकुमार ने खाना खाया ही था कि वीरप्पन और उसके गुंडे अंदर घुस आए।
राजकुमार की पत्नी पार्वथम्मा राजकुमार ने बताया कि, राजकुमार और उनके परिवार के सदस्य उस वक्त टेलीविजन देख रहे थे, जब वीरप्पन ने घर के अंजर आया। और तब उसने कन्नड़ में पूछा, “हमें सर चाहिए!”
बाहर बहुत तेज हारिश हो रही थी। जब राजकुमार उनके सामने आया, तो वो राजकुमार को घर से बाहर तेज हारिश में ही ले गए।
बाहर जाने के बाद, वीरप्पन ने राजकुमार से घर के बाकी लोगों के बारे में पूछताछ की। और एक बार फिर वीरप्पन घर लौट आया और उसने राजकुमार के दामाद एस.ए. गोविंदराज, एक और रिश्तेदार, नागेश और एक Assistant film director नागप्पा को भी kidnap कर लिया।
एक Rajkumar जैसे actor की kidnapping की बात फैलते ही लोगो ने अपना गनस्सा दिखाना शुरू कर दिया। उनके Fans ने जल्द से जल्द उन्हे ढुंढवाने की मांग की। बंगलौर के साथ-साथ कर्नाटक के दुसरे हिस्सों में public outcry यानी public का गुस्सा और violence बढ गया।
22 सितंबर को बैंगलोर में एक हड़ताल भी हुई। कर्नाटक के मुख्यमंत्री और पुलिस officers ने तमिलनाडु सरकार से मदद मांगी और मदद मांगने के लिए उन्हे चेन्नई तक जाना पड़ा।
बातचीत की गई, शर्ते सुनी गई और तमिल Magazines नक्कीरन के editor, वीरप्पन के साथ काफी वक्त से बातचीत में शामिल थे।
वो Editor इससे पहले, इसी तरह की बातचीत और negotiations के लिए वीरप्पन से मिले भी था। और वीडियोटेप चर्चाओं के लिए कई बार जंगल में भी गए था।
वीरप्पन ने अपनी शर्ते बताई और कावेरी water dispute में तमिलनाडु के लिए justice की मांग की, साथ ही तमिल को कर्नाटक की दूसरी official language बनाने और तमिलनाडु में जेल में बंद कुछ तमिल political prisoners की रिहाई करने की मांग की।
वीरप्पन ने राजकुमार को 108 दिनों के लिए रखा था और आखिरकार नवंबर 2000 में बिना किसी नुकसान के रिहा कर दिया। एक पुलिस officer ने बाद में सुझाव दिया कि उसकी रिहाई के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा 20 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था।
हालाकी राजकुमार के परिवार ने इस बात को झुठ बताया।
Kidnapping के वक्त तमिलनाडु के Inspector General, एम. बालचंद्रन और STF के कमांडर, हर्षवर्धन राजू, गजानूर में राजकुमार के फार्महाउस से 55 किलोमीटर दूर डिंबम में एक बैठक में थे। इस गुप्त सूचना के आधार पर कि वीरप्पन डिंबम में एक हिंदू मंदिर में जाएगा, उन्होंने उसे पकड़ने के लिए एक जाल बिछाया।
वीरप्पन ने अपने चाचा सालवई गौंडर, एक चंदन smuggler की सहायता करके अपना criminal कैरियर शुरू किया था। वीरप्पन ने शुरुआत में एक चंदन और हाथीदांत Smuggler के रूप में काम किया, और हाथियों को उनके दांत के लिए मार डाला। बाद में वो अपने चाचा से अलग हो गया। अगले पच्चीस सालो में, वीरप्पन और अन्य शिकारियों ने मिलकर 2,000 से 3,000 हाथियों को मार डाला।
जिसके लिए उसे पहली बार 1972 में गिरफ्तार किया गया था।
17 साल की उम्र में, अपनी पहली हत्या करने के बाद, उसने अपनी illegal activities को रोकने वालों को मारना शुरू कर दिया। उसके शिकार पुलिस officers, Forest officers होते थे।
Veerappam लगभग 184 लोगों को मारने के लिए wanted था, जिनमें से लगभग आधे पुलिस officers और forest officers थे। और 2000 से अधिक हाथियों के शिकार और यूएस $ 2,600,000 (₹16 करोड़) के हाथी दंत और लगभग 65000 किलोग्राम की लाल चंदन की लडकी की smuggling के लिए भी wanted था।
वीरप्पन को पकड़ने की लड़ाई में तमिलनाडु और कर्नाटक की सरकारों को ₹100 करोड़ से अधिक खर्च करने पड़े।