Gorkha regiment की बहादुरी के किस्से!
Gorkha Regiment के इतिहास के बारे में तो हम सब जानते ही है। तो चलिए आज सुनते है कुछ ऐसे किस्से जिनकी वजह से Gorkha Regiment को unbeatable कहा जाता है।
जैसे 2010 में अफगानिस्तान में Acting Sergeant, दीपप्रसाद ने अकेले ही 30 तालिबानी सैनिकों का मुकाबला किया था। जब दीपप्रसाद एक चौकी की छत पर पहरा दे रहा था, तो हमलावर रॉकेट से चलने वाले ग्रेनेड और एके-47 के साथ complex में चारों तरफ से आ गए।
लेकिन Dipprasad को उन सभी को मारने में एक घंटे से भी कम समय लगा। उन्होंने हर Attacker को हराने के लिए अपनी सभी बारूद- 400 राउंड और 17 ग्रेनेड, उसके साथ ही एक mine जिसपर पैर रखते ही विस्फोट हुआ, का use किया।
और जब उसके पास गोला-बारूद खत्म हो गया, तो एक तालिबानी सैनिक छत पर चढ़ गया, लेकिन तभी dipprasad ने मशीन-गन tripod उस पर फेंका, तो उसकी भी वही मौत हो गई।
गोरखा regiment की एक और खासियत ये भी है कि वो किसी आदमी को पीछे नहीं छोड़ते। 2008 में जब अफगानिस्तान में सैनिकों के एक Squad पर openly हमला किया गया, तो एक सैनिक, युवराज राय को चोट लगी और वह गंभीर रूप से घायल हो गया। लेकिन कैप्टन गजेंद्रा अंगदेम्बे और राइफलमैन धन गुरुंग और मंजू गुरुंग भारी आग के बीच से राय को 325 फीट खुले मैदान में ले गए। एक समय पर, सैनिकों में से एक ने दुश्मन पर जवाबी फायर करने के लिए एक ही समय में अपनी राइफल और राय की राइफल दोनों का इस्तेमाल किया।
सन् 1945 में, राइफलमैन लछिमन गुरुंग केवल दो और soldiers के साथ खाई में तैनात थे, जब 200 से ज्यादा जापानी सैनिकों ने उन पर गोलियां चलाईं। गुरुंग के साथी बुरी तरह से घायल हो गए। जैसे ही ग्रेनेड एक के बाद एक उड़े, तो गुरुंग ने हर एक को वापस फेंकने की कोशिश की।
वो पहले दो के साथ सफल रहा, लेकिन तीसरा उनके दाहिने हाथ में फट गया। उनकी उंगलियां उड़ गईं और उनका चेहरा, शरीर और दाहिना हाथ और पैर बुरी तरह जख्मी हो गया।
जैसे ही जापानियों ने खाई पर धावा बोला, गुरुंग ने अपने बाएं हाथ का इस्तेमाल अपनी राइफल को चलाने के लिए किया, और 31 दुश्मनों को हराया और जापानियों को आगे बढ़ने से रोका। गुरुंग बच गए, और उस वर्ष बाद में उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया।
2011 में, 35 साल के retired गोरखा बिष्णु श्रेष्ठ भारत में एक ट्रेन की सवारी कर रहे थे। और तभी वहां 40 लुटेरों ने ट्रेन रोक दी और उन्होने यात्रियों का सामान चुराना शुरू कर दिया। Retire होने का बाद भी Vishnu के पास उसका कुकरी चाकू था। उसके अपना चाकू निकाला और गोरखा ने लुटेरों को पकड़ लिया, जो खुद चाकुओं, तलवारों और पिस्तौलों के साथ लडने के लिए तैयार थे। बिष्णु तीन लुटेरों को मारने और आठ को घायल करने में कामयाब रहा, जिसे देखकर बाकी के लुटेरो ने ना आगे देखा ना पिछे बस सबकुछ छोड़-छाड कर वहां से भाग गए।
1965 में बोर्नियो टकराव के वक्त , कप्तान रामबहादुर लिम्बु ने दुश्मन के इलाके में तीन बार travel किया। पहली trip में, भारी गोलाबारी का सामना करते हुए, लिम्बु के दो लोगों को गोली मार दी गई – एक मारा गया और दूसरा गंभीर रूप से घायल हो गया। इससे पहले कि दुश्मन आगे बढ़ पाता, लिंबू ने उन्हें Grenades से पीछे धकेल दिया। इसके बाद वो युद्ध के मैदान में 100 गज की दूरी पर वापस गोरखा battlefield में रेंगतें हुए गए, ताकी अपने साथियों को सचेत कर सके की उनपर हमला होने वाला है।
लिम्बु फिर injured soldier के पास वापस गए, जो अभी भी आग के नीचे था, और उस आदमी को वापस उसी 100 गज की दूरी पर सुरक्षा के लिए लेकर गए। लड़ाई अभी भी होने के साथ, लिम्बु अपने dead comrade को वापस लाने के लिए तीसरी बार मैदान में लौटा। और फिर उनकी dead body को वापस regiment पर safely लेकर आया।
लिंबू की वीरता ने उन्हें विक्टोरिया क्रॉस दिया गया। उन सभी गोरखाओं में से जिन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया है, उनमे से सिर्फ लिंबू ही जीवित है।
तो ऐसे बहादुर, निडर और loyal regiment, जिसने ना सिर्फ पुरी Indian Army की शान बढाई है, बल्कि
दुसरे देश की Army को कई बार धुल भी चटाई है।
इनकी बहादुरी की कहानी से inspire होकर, कोई कहानी शायद rambo फिल्म नें देखने को मिल जाए।
जिसमे Tiger Shroff एक gorkha regiment से हो और जो उन soldiers की feelings को सारी दुनिया के सामने ला सके।