1947 Partition में आई blood trains!
Britisher के partition की announcement के तुरंत बाद ही इंसानो का इंसानो को मारना शुरू हो गया था। पड़ोसियों ने पड़ोसियों को मार डाला, बचपन के दोस्त दुश्मन बन गए, और इंसानो की इस धरती से इंसानियत का नामोनिशान मिट गया।
Bungalows और mansions को जला दिया गया और लूट लिया गया, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, बच्चों को उनके भाई-बहनों के सामने मार दिया गया। दो नए देशों के बीच passengers से भरी trains, जब destination पर पहुचती तो लोगो से नही बल्कि लाशों से भरी हुई होती थी। उन सबको रास्ते में ही भीड़ ने मार डाला गया।
लाशो का सन्नाटा, और उनकी bodies से बह रहे खुन से लथपथ trains को blood trains का नाम दिया गया, क्योकी उनके दरवाजो से ना जाने कितने मासूम लोगो का खुन बह रहा था।
आज भी जब कोई partition का survivor अपना horrific experience बताता है, तो हमारा रोंग खडा हो जाता है।
जैसे सरदार जोगिंदर सिंह, एक सिक्ख, जो पाकिस्तान के पंजाब province के एक गाँव में रहने वाले एक teenager थे। उन्होंने याद किया कि कैसे Partition के वक्त उनके गांव के लगभग सभी पुरुषों को हमलावरों ने मार डाला था। उन्होने बताया था कि गांव के 25 में से 18 पुरुष एक हमले में मारे गए थे।
और उन्होंने एक सिख महिला को भी याद किया जिसने “अपने सम्मान की रक्षा” के लिए एक गुरुद्वारे के अंदर आत्महत्या कर ली थी।
उस महिला का नाम वीरावाली था। वह बहुत खूबसूरत महिला थी। लेकिन दंगो के दौरान…मुस्लिम उसका पीछा कर रहे थे। उनके गांव में एक गुरुद्वारा था, इसलिए वो शरण लेने के लिए गुरूद्वारे के अंदर भाग गई। वहां पहले तो वीरावासी ने holy books के लिए अपना मत्था टेका। और फिर उसके शरीर पर मिट्टी का तेल डाला और खुद को आग लगा ली।
सरदार जोगिंदर जी कहते है कि, अब जब मैं इसके बारे में सोचता हूं, तो मुझे लगता है जैसे सब कुछ इचानक बदल गया था। और सबको कुछ हो गया था। मानो इंसानियत मर गई हो। हर कोई शैतान बन गया हो।”
एक और कहानी नसीम फातिमा की, जो दिल्ली के करोल बाग में रहती थी। उनका एक खुशहाल बचपन वहीं बीता था। लेकिन partition के दौरान, उसने अपने माता-पिता और भाई-बहनों सहित अपने परिवार के सात सदस्यों को खो दिया।
उनके पिता, माता, दादी और चार भाई-बहन मारे गए। जिससे पूरे परिवार में से वो अकेली थी, जो जिंदा बची थी।
उस दिन को याद करते हुए जब उसने अपने परिवार को खोया, उसने बताया कि उनके परिवार के मारे जाने से पहले उन्हे याद है, वो जब डरते हुए घर के दरवाजे के keyhole ये देख रही थी। बाहर उसके पिता उनसे भीख मांग रहे थे और उसका दो साल का भाई अंदर रो रहा था। Fatima के सिर पर किसी ने मारा था, जिसके निशान अब भी हैं।
उन्हें याद है कि कैसे उनके सिख पड़ोसी, जिन्होंने partition के बाद हुए दंगों के दौरान कहा था कि वो उनकी सबकी रक्षा करेंगे, लेकिन बाद में उन्होने खुद ही उनपर हमला किया था।
मोहिन्द्रा ढल, जिन्हे अपने बरसो के घर को छोडकर भागना पडा था, उन्होने बताया कि कैसे उनके परिवार ने आस-पास के गांवों में लूटपाट और हत्याओं की खबरें सुनने के बाद उन्होने अपना घर छोड़ने का फैसला किया। उनका कहना है कि उनके पास अपना सामान पैक करने और शहर छोड़ने के लिए कुछ ही घंटे थे। इसलिए थोडा बहुत जो हाथ लगा वो pack किया और भारत जाने वाली train पकडने लगे। लेकिन थोडी उनका परिवार भारत जाने वाली ट्रेन में चढ नही पाया, क्योंकि उस समय बहुत भीड़ थी। लोग ट्रेन की छत पर बैठे थे और कम से कम जगह के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे।
उनके पिता ने ट्रेन से बाहर आने का फैसला किया और वो लोग वहीं रुक गए। और अगले दिन उन्हे ये सुनने को मिला कि पूरी ट्रेन की सवारी मारी गई थी। गाँव के उनके जो दोस्त उसी ट्रेन में थे, वो सब मारे गए।
कई ऐसी घटनाएं हुई, जिन्हे आज भी सुनते है तो सुनकर ही डर लगने लग जाता है। क्योकी एक पल था, जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनो देशो में, इनकी मिलती जुलती संस्कृति और भाईचारे की वजह से, बहुत प्यार था। लेकिन जैसे ही partition की बात हुई, दोनो देशो के लोगो के अंदर का दरिंदा जाग गया था।
अपने ही भाईयों, बहनो, माँ-बाप और बच्चो को मारते हुए, काटते हुए और जलते हुए देखना, एक बहुत बुरे सपने की तरह है।
और जिन लोगो ने इन्ही यादो के साथ अपना जीवन आगे बढाया, उन्हे हमारा सलाम है।
Survivors की कहानी कैसी लगी, comment करके जरूर बताएं।