Rambo

कैसे जीता Battle of Badgaam?

 

बडगाम की लड़ाई एक defensive encounter था, जो First Kasmir War के शुरुआती stages के वक्त श्रीनगर Airport के करीब Kashmir Valley में Badgaam में हुई थी।  3 नवंबर 1947 को Indian Air force की मदद के साथ Indian Army की एक कंपनी और tribal Lashkar के लगभग 1000 पाकिस्तानी attackers के बीच battle हुआ, जिन्होंने बडगाम पर clearly कब्जा करने की कोशिश की थी।

 

यह balttle उस वक्त हुआ, जब War के शुरुआती stages के दौरान indian soldiers ने श्रीनगर Airfield में अपना फ्लाई-इन शुरू ही किया था। दुसरी तरफ लश्कर पुरी planning के साथ तीन तरफ से आगे बढ़ रहे थे – Wular lake के North से, Main मुज़फ़्फ़राबाद-बारामूला-पाटन-श्रीनगर Axis के साथ, और गुलमर्ग की तरफ से।

खबर ये थी कि गुलमर्ग route के साथ, 700 Terrorists के एक लश्कर को बडगाम की ओर आने के लिए जाना जाता था, लेकिन अभी तक उनसे किसी तरह का कोई contact नहीं किया गया था और जिस तेजी से उनके बढने का अमदाजा लगाया जा रहा था, उसके हिसाब से लश्कर जल्द ही Airfield को जब्त करने और Indian army को वायु सेना में शामिल होने से पहले ही block करने की position में होगा।  लेकिन अंदर दुसरे point of view से सोचे तो, वो South से पाटन defenses को by-pass कर सकते थे और बिना किसी रूकावट के सीधा श्रीनगर पहुँच सकते थे।

उस वक्त दिक्कत तब खडी हुई जब, वहां Indian troops की केवल एक कमजोर ब्रिगेड, जिसे पंजाब में refugees protection duties से हटा गया और फिर जल्दबाजी में उन्हे एयरलिफ्ट किया गया और उस वक्त श्रीनगर की ओर बढ़ रहे tribal लश्करों के groups के सामने बस वो कमजोर troop खडी थी। Indian troops को केवल श्रीनगर airfield, मागम और पट्टन में तैनात किया गया था। महाराजा के अंगरक्षक, राज्य सेना घुड़सवार सेना की एक टुकड़ी ने वुलर झील के उत्तर में फिर से छानबीन की।

 

ब्रिगेडियर एल.पी. सेन, 161 इन्फैंट्री ब्रिगेड के नए कमांडर ने इसके west में बडगाम गांव की देखरेख करने वाली पहाड़ियों पर एक strong fighting Patrol team को भेजने का फैसला किया।  उस Patrol team का काम घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानियों के वहां मौजूद होने के किसी भी sign को ढुंढने के लिए बडगाम के आसपास का Area और बड़गाम और मागम के बीच के area की तलाशी लेना था 

और इस Patrol Team में चौथी बटालियन, कुमाऊं (Kumaon) रेजीमेंट, की दो कंपनियों को शामिल किया जाना था, जिसमें, कुमाऊं रेजीमेंट की पहली बटालियन की एक कंपनी भी शामिल थी।  एक कुमाऊं कंपनी को बडगाम से आगे तलाशी करने और मागम में जाकर पहली बटालियन, पंजाब रेजिमेंट के साथ जोड़ने का काम सौंपा गया था, जिसके बाद वो Road के रास्ते से वापस आ जाएगी और इस बीच अगर कोई contact नहीं किया गया, तो 4 कुमाऊं कंपनियां एक-एक करके पीछे हटेंगी, बडगाम को दोपहर के 2 बजे खाली कर देंगी।

 

3 नवंबर 1947 को 4 कुमाऊं की D कंपनी के कमांडिंग मेजर सोमनाथ शर्मा ने Patrol team को lead किया। हालाकी उनकी पिछली injury की वजह से उन्हें rest करने की सलाह दी गई थी, लेकिन Major Sharma ने जैसे ही सुना कि, terrorist आगे बढ रहे है तो उन्होंने साथ जाने की जिद्द की। Brigadiar L P Sen ने पहले तो बिल्कुल मना कर दिया था, लेकिन Major somnath sharma ने भी हार नही मानी जब तक उन्हें साथ जाने की permission नही मिल गई। बडगाम से वापसी का समय आने तक तलाशी का काम बिना किसी incidents के होने की वजह से, Team planning के according आगे बढ़ी।

शर्मा को एक समय में एक कंपनी, जैसे दोपहर के 2 PM बजते ही एक कंपनी और फिर 03 PM पर अपनी कंपनी के साथ वापस जाने का order दिया गया था। लेकिन 02: 30 PM बजे, tribal की movements, west और बडगाम गांव के पास देखी गई।  शर्मा ने सही अनुमान लगाया था, कि बडगाम गांव में शोर सिर्फ ध्यान बटाने के लिए किया गया था, जब कि असली हमला पहले west से होगा और वही हुआ जब लश्कर ने west से हमला किया। 

 

शर्मा की कंपनी जल्द ही तीनों तरफ से दुश्मन से घिरी हुई थी और उन पर हुई Mortar बमबारी से बहुत नुकसान हुआ और काफी soldiers बुरी तरह घायल हुए। Major Sharma जिन्हें Hockey game में पहले ही एक हाथ fractured था और उस पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था। लेकिन Major Sharma ने अपवी injuries और plaster से ध्यान हटाकर अपना पूरा ध्यान उन्होने इस war में अपनी कंपनी के साथ रहने पर लगा दिया। क्योंकी इस crucial moment में उसकी पूरी team तो सही तरिके से lead करने की जिम्मेदारी उसकी थी और तब शर्मा ने अपनी position पर बने रहने की importance को महसूस किया, क्योंकि श्रीनगर शहर और हवाईअड्डा अगर दोनों पर pakistan अपना कब्जा करने में कामयाब रहा, तो वो जानता था कि, दोनों जगहें कितनी unsafe होंगी और वहां रहने वाले लोग कितने unprotected होंगे।

भारी गोलाबारी के बीच और उनसे outnumber होने के बाद भी एक, सात का सामना करते हुए, उन्होंने अपनी कंपनी को बिना रूके बहादुरी से लड़ने के लिए कहा। अपनी बटालियन को motivate करते हुए, अक्सर वो खुद को खतरे में डालते हुए, एक पोस्ट से दुसरे पोस्ट तक भागने लगे और आगे की दो पलटन गिरने के बावजूद भी, शर्मा desperately पलटन के साथ अपनी position पर अड़े रहे। उस वक्त Major Sharma उनकी पूकी बटालियन की शक्ति बनकर खडे थे और जब वो दुश्मन से लड़ने में लगे हुए थे, तभी उसके पास रखे गोला-बारूद पर एक Mortar Shell explode हो गया, जिसका भारी double impact major Sharma की body पर गया। Major Sharma का control धीरे धीरे उनकी bidy से छुटने लगा, सांस लेने की भी हिम्मत इब नही बची थी और जिस वक्त Major Sharma अपनी आखिरी सांसे गिन रहे थे, उनके मारे जाने से कुछ पल पहले ही ब्रिगेड headquarter को उनका last message recieve हुआ था।

 

 “दुश्मन हमसे केवल 50 गज की दूरी पर हैं और हम hopelessley outnumbered हैं। लेकिन मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा, और आखिरी आदमी से आखिरी Round तक लड़ूंगा।” और अपनी बटालियन को अपने आखिरी वक्त में भी कभी हार ना मानने और अपनी आखिरी सांस तक देश के लिए लड़ने की inspiration देते हुए, Major Somnath Sharma, battle of badgaam में शहीद हो गए। उनकी वीरता से inspired सिपाही दीवान सिंह दानू ने अपनी जान गंवाने से पहले दुश्मन पर निडरता से हमला किया। दीवान सिंह को कम से कम 15 लोगों को घायल करने के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। Battle of Badgaam में Indian Air force का भी एक Major role था, और उनकी मदद से Indian Army ने Majority पाकिस्तानी को हरा दिया था।

 

मेजर सोमनाथ शर्मा ने 25 वर्ष की छोटी सी उम्र में देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया और वो Independent भारत के सबसे पहले “परमवीर चक्र” के reciever बने।  उनकी बहादुरी, Leadership और powerful fighting spirit की गाथा आगे आने वाली पीढ़ी को भी inspire करती रहेगी।

 

ब्रिगेडियर सेन ने defenses के reorganization का आदेश दिया।  1 पंजाब को तुरंत मागम खाली करने और वापस श्रीनगर जाने का आदेश दिया गया।  रात होने तक 1 पंजाब के soldiers श्रीनगर में थे और बडगाम area में जाने के लिए एक टुकड़ी भेजी गई। तब तक कुमाऊं की position काफी लंबी हो चुकी थी। मेजर सोमनाथ शर्मा की leadership में कुमाऊं रेजीमेंट की चौथी बटालियन की एक कंपनी की सफलता से इस लड़ाई का importance बढ़ गया था, जिसने tribal “लश्करों” को आगे बढ़ाने की गति को रोक दिया था, हालांकि lashkars के attackers, Major Sharma की बटालियन से बहुत ज्यादा थे।

 

शर्मा की कंपनी ने, बिना रूके और डट कर सामना करने में हमलावरों के 200 लोगों को मार गिराया था। साथ ही लश्कर के tribal leader के पैर में एक गोली लगी थी। 

हालाकी पाकिस्तानी हमलावरों ने उस रात कमजोरियों का फायदा उठाने और Airfield या श्रीनगर शहर में जाने का कोई प्रयास नहीं किया। ये माना जाता है कि, उनके leader की incapability, भारी नुकसान और उस area में 1 पंजाब के movement की रिपोर्ट ने हमलावरों को उनके इस decision को गलत समझने का कारण बना दिया था, 

जिसकी वजह से Additional indian troops को अगले दिन श्रीनगर हवाई अड्डे में उड़ान भरने, श्रीनगर में enter के सभी routes को reorganize करने और उन्हें block करने का समय मिल गया था।

 

तो कुछ इस तरह जीता Indian Army ने battle of badgaam और इस जीत में सबसे main role निभाने वाले Major Somnath Sharma को हमेशा एक brave fighter के रूप में याद रखा जाएगा। उनका साहसी message “लास्ट मैन, लास्ट राउंड” को उनकी बटालियन के साथ साथ पूरी army force, Follow करेगी। एक ऐसे ही battle और उसके बहादुर soldiers की कहानी से inspired Story हमें Rambo फिल्म में भी देखने को मिल सकती है।

 

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